सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार को प्रदूषण (Pollution) को रोकने के लिए तुरंत कदम उठाने के निर्देश दिए हैं. प्रदूषण हालात की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से भी पूछा है कि प्रदूषण को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं. इसके लिए दिल्ली सरकार को हलफनामा दाखिल करने के निर्देश दिए गए हैं. साथ ही हलफनामे को केंद्र, यूपी, हरियाणा और पंजाब सरकार को भी सौंपने के निर्देश हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि याचिकाकर्ता केंद्र की स्टेटस रिपोर्ट को देखे और अपने सुझाव दें. दीवाली की छुट्टियों के तुरंत बाद मामले की सुनवाई होगी. CJI एन वी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया है.
वहीं केंद्र ने SC में याचिका का जवाब दिया है. जिसमें कहा गया है कि वायु प्रदूषण के खिलाफ कई पहल की गई हैं और उच्चतम स्तर पर नियमित समीक्षा की जा रही है. दिल्ली और एनसीआर में पराली जलाने और वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए कई पहल की हैं. पर्यावरण मंत्रालय के उच्चतम स्तर पर दैनिक आधार पर मूल्यांकन और नियमित समीक्षा बैठकें बुलाई जा रही हैं. संबंधित एजेंसियों को उचित निर्देश/ एडवायजरी जारी किए जा रही है. वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने प्रदूषण-पराली जलाने, वाहन, औद्योगिक आदि में योगदान देने वाले प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की और आवश्यक कदम उठाए हैं.
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सरकार ने कहा कि कृषि मंत्रालय ने फसल कटाई की निगरानी और पराली जलाने से रोकने के लिए नियंत्रण कक्ष स्थापित किए हैं. आयोग रोजाना पराली जलाने की घटनाओं की बारीकी से निगरानी कर रहा है और राज्य सरकारों से इस पर अंकुश लगाने के लिए संपर्क कर रहा है. पंजाब में किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन मशीनें उपलब्ध कराई गई हैं. धान की पराली को ईंधन के रूप में प्रयोग करने पर किसानों को वित्तीय प्रोत्साहन दिया जा रहा है. विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा किसानों के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. आयोग ने NCR में पटाखों की बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंधके लिए सर्वोच्च न्यायालय और NGT के आदेशों का कड़ाई से पालन कराने के लिए मुख्य सचिवों और डीजीपी को पत्र लिखा है. दिल्ली में उद्योग स्वच्छ ईंधन में स्थानांतरित हो गए हैं. यूपी और हरियाणा के उद्योगों को भी स्वच्छ ईंधन की ओर शिफ्ट करने के निर्देश जारी किए गए हैं. आयोग ने संबंधित राज्यों और दिल्ली सरकार को पुराने वाहनों को हटाने की व्यवस्था को सख्ती से सुनिश्चित करने को कहा है. दिल्ली सरकार को एक समर्पित टास्क फोर्स गठित करने की सलाह दी गई है.
बता दें कि वकील निखिल जैन के माध्यम से दायर छात्र आदित्य दुबे की याचिका में कहा गया है कि आयोग ने दिल्ली और आसपास के राज्यों की वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. आयोग का काम अभी तक केवल कागजों पर ही अस्तित्व में है. आयोग के गठन के बाद दिल्ली- NCR की वायु गुणवत्ता खराब हुई है. आयोग का दफ्तर कहां है, फोन नंबर, ईमेल या वेबसाइट का नहीं पता. पीड़ित नागरिकों के लिए आयोग से संपर्क करने का कोई रास्ता नहीं. वायु गुणवत्ता आयोग की निष्क्रियता से लोगों की जान को खतरा होगा. दिल्ली-एनसीआर के लोगों को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. जिसमें खराब AQI स्तर और कोविड दोनों के प्रभाव का सामना करना पड़ेगा. आयोग को किसानों के विरोध, राजनीतिक और सामाजिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है. किसानों के आंदोलन के कारण पतला पराली जलाने पर जुर्माना और कारावास को हल्का कर दिया गया.
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गौरतलब है कि आदित्य दुबे द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग का गठन किया गया था. जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया गया है कि वो इस आयोग की निगरानी करे. सुप्रीम कोर्ट में कहा गया है कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के कामकाज की निगरानी करें ताकि दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों के लाखों नागरिक पिछले वर्षों की तरह गंभीर AQI के शिकार ना हों. वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग' को दो सप्ताह के भीतर इस न्यायालय के समक्ष एक विस्तृत योजना प्रस्तुत करने का निर्देश दें, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि 2021-22 की सर्दियों के दौरान, पराली जलाने और वायु प्रदूषण के अन्य स्रोत, जैसे वाहन, औद्योगिक और निर्माण जुड़ा हुआ प्रदूषण, ठीक से प्रबंधित किया जाए और यह सुनिश्चित किया जा सके कि AQI स्तर स्वस्थ श्रेणी में बना रहे.
मांग की गई है कि आयोग के अध्यक्ष को कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दें. आयोग का दिल्ली और आसपास के राज्यों की वायु गुणवत्ता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है और अब तक केवल कागज पर ही अस्तित्व में है और काम करता है. देश के सामने आ रहे वायु प्रदूषण संकट पर प्रतिवादियों की गैर-गंभीरता इस तथ्य से स्पष्ट है कि अध्यादेश के तहत बनाए गए आयोग ने दिल्ली और आसपास के राज्यों की वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाया है. किसी भी पीड़ित नागरिक या पर्यावरण संगठन के पास अपनी शिकायतों या शिकायतों के संबंध में आयोग से संपर्क करने का कोई तरीका नहीं है. अखबारों की रिपोर्टों में इसके बारे में केवल कुछ ही मौकों पर सुना गया है, जिसमें आयोग ने दावा किया कि वायु प्रदूषण को समाप्त करने के लिए दीर्घकालिक कार्रवाई की जाएगी. वास्तव में, आयोग के गठन के बाद 2020-21 की सर्दियों के दौरान URJA और रेस्पिरर लिविंग साइंसेज द्वारा किए गए दो अध्ययनों के अनुसार, दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों की वायु गुणवत्ता पिछले साल की तुलना में और भी खराब हो गई. आयोग के गठन के कारण, दिल्ली के वायु प्रदूषण की निगरानी के लिए SC द्वारा बनाई गई EPCA खत्म हो गई. इसलिए दिल्ली-एनसीआर के नागरिकों द्वारा सामना किए जा रहे वायु प्रदूषण संकट को हल करने के लिए ईपीसीए द्वारा किए जा रहे सीमित प्रयासों का भी अस्तित्व समाप्त हो गया है.
याचिका में कहा गया है कि इस प्रकार दिल्ली की वायु गुणवत्ता में सुधार के प्रयासों के परिणामस्वरूप वास्तव में एक ऐसी स्थिति बन गई है जो पहले से कहीं अधिक खराब है. अब अध्यादेश के निर्माण के लगभग एक वर्ष बीत चुका है, और अगला पराली जलाने का मौसम और सर्दियों का मौसम बस कुछ महीने दूर है. इसलिए यदि आयोग को यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल निर्देश जारी नहीं किए जाएंगे तो आयोग की निष्क्रियता का दिल्ली और आसपास के 4 राज्यों के नागरिकों के लिए गंभीर परिणाम होंगे, क्योंकि उन्हें फिर से कोविड महामारी के साथ-साथ बढ़े AQI का सामना करना पड़ेगा. यह भी प्रस्तुत किया गया है कि आयोग के कामकाज पर राजनीतिक प्रभाव इस तथ्य से स्पष्ट है कि चल रहे किसान आंदोलन के कारण, पराली जलाने के लिए कारावास और जुर्माना लगाने के संबंध में अध्यादेश के प्रावधान पूरी तरह से कमजोर हो गए है.
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