वकील विक्टोरिया गौरी को मद्रास हाईकोर्ट की जज नियुक्त करने के फैसले में नया पेंच आ गया है. केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति की मुहर के बाद विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. लेकिन उनकी नियुक्ति को चुनौती दी गई है, जिसपर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को सुनवाई करेगा. सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार ऐसा होगा जब वो अपने ही कॉलेजियम की सिफारिश पर जज नियुक्ति के मामले में न्यायिक पक्ष पर विचार करेगा. चीफ जस्टिस की पीठ ने इसे मंगलवार के लिए सूचीबद्ध करने को कहा है.
CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कॉलेजियम को सिफारिश के बाद शिकायत संबंधी सामग्री मिली है, जिस पर विचार किया जा रहा है. ऐसे में मंगलवार को उचित बेंच के समक्ष सुनवाई होगी. मद्रास हाईकोर्ट के कुछ वकीलों ने अपनी अर्जी में कहा है कि विक्टोरिया इस पद के योग्य नहीं हैं. उनकी नियुक्ति को चुनौती देते हुए दलील दी है कि उनका जाहिर तौर पर एक राजनीतिक दल से जुड़ाव रहा है. उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स से पता चलता है कि वो भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा की महासचिव भी रह चुकी हैं.
याचिका में कहा गया कि कुछ साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ खुद को जोड़ते हुए विक्टोरिया ने अपने नाम के पीछे चौकीदार शब्द भी लगा लिया था. उसके अलावा अपनी पार्टी की विचारधारा के मुताबिक ही विक्टोरिया गौरी कई अवसरों पर लव जिहाद और अन्य साम्प्रदायिक मुद्दों पर सार्वजनिक तौर पर मुसलमानों और ईसाइयों के प्रति नफरत और विद्वेष बढ़ाने वाले बयान भी दे चुकी हैं.
याचिका में कहा गया है कि गौरी ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से ऐसी ही कई बातें छुपाई हैं. ऐसे में उनकी नियुक्ति रोकी जाए. वहीं, देश के इतिहास में दूसरी बार होगा जब इस तरह का मामला आया है. सर्वोच्च न्यायालय के पूरे इतिहास में, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति को रद्द करने का केवल एक ही उदाहरण है. वह असाधारण कार्रवाई 1992 के कुमार पद्म प्रसाद बनाम भारत सरकार मामले में हुई, जहां सुप्रीम कोर्ट ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में शपथ लेने से पहले के एन श्रीवास्तव के मामले में सुनवाई कर आदेश जारी किया था.
अब एल विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति को चुनौती देने के लिए 1992 की इस मिसाल का हवाला दिया गया है. 1992 के मामले में विवाद तब पैदा हुआ जब बार के एक वर्ग ने श्रीवास्तव की नियुक्ति पर आपत्ति जताई थी. उनका कहना था उन्होंने कभी वकील के रूप में अभ्यास नहीं किया और कभी न्यायिक कार्यालय नहीं संभाला. वह गुवाहाटी हाईकोर्ट के न्यायाधीश होने के लिए संविधान के अनुच्छेद 217 के तहत निर्धारित मूल योग्यता को पूरा नहीं करते.
श्रीवास्तव वास्तव में मिजोरम सरकार के कानून और न्यायिक विभाग में सचिव स्तर के अधिकारी थे और उस क्षमता में कुछ ट्राइब्यूनल और आयोगों के सदस्य थे. जब एक वकील ने उनकी नियुक्ति को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की, तो गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक अंतरिम आदेश के माध्यम से निर्देश दिया कि श्रीवास्तव के लिए राष्ट्रपति के नियुक्ति वारंट को प्रभावी नहीं किया जाना चाहिए.
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने आगे केंद्र सरकार को उनकी नियुक्ति पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया. मामला अंततः सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और अदालत ने नियुक्ति रद्द कर दी. लेकिन विक्टोरिया गौरी के मामले की खास बात ये है कि 1992 मामला कॉलेजियम से पहले का था. विक्टोरिया गौरी की तो खुद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने ही जज बनाने की सिफारिश की थी. ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट को कॉलेजियम की सिफारिश पर हुई नियुक्ति पर न्यायिक पक्ष पर विचार करना होगा.
यह भी पढ़ें -
-- भूकंप से दहले तुर्की में तलाश-राहत टीमें और राहत सामग्री भेजेगा भारत
-- सुप्रीम कोर्ट ने कैदियों की समय पूर्व रिहाई को लेकर यूपी सरकार को दिया बड़ा आदेश