देश में वाहन दुर्घटनाओं (Road Accidents) में कमी लाने और यात्रियों की सुविधाओं को बढ़ाने के लिए 1 सितंबर 2019 से मोटर वाहन का नया कानून लागू किया गया था. नया मोटर वहिकल ऐक्ट लागू होने के 23 महीनों मे करीब 8 करोड़ ट्रैफिक चालान (Traffic Challan) किए गए हैं. लेकिन इन दो वर्षों में रोड सेफ्टी बोर्ड के गठन, सड़क सुरक्षा पर खर्च, राज्यों में रोड सेफ्टी अथॉरिटी बनाने और यात्रियों को सुविधाएं बढ़ाने के नाम पर निराशाजनक प्रगति देखने को मिली है. सड़क सुरक्षा, सुविधा और अधिकारों पर पर्याप्त फोकस नहीं है. रोड सेफ्टी से जुड़े एनजीओ और लाखों ट्रक चालकों से जुड़ी ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस ने सरकार को कठघरे में खड़ा किया है. जानिए 10 बड़ी चुनौतियां...
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संसद के मानसून सत्र में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री (Ministry of Road Transport and Highways) नितिन गडकरी ने बताया था कि नए मोटर वाहन कानून (Motor Vehicles (Amendment) Act 2019) के पहले के 23 महीने यानी करीब दो साल की बात करें तो 1,96, 58, 897 ट्रैफिक चालान हुए थे, जबकि नया कानून लागू होने के बाद इनकी तादाद बढ़कर 7,67,81,726 हो गई है. यानी पिछले दो साल में चालान करीब चार गुना बढ़ गए हैं. मंत्रालय (MoRTH) अपनी पीठ थपथपा रहा है कि आधुनिक कैमरे, स्पीड गन आधारित ऑटोमैटिक ट्रैफिक उल्लंघन सिस्टम लगाकर ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वालों को पकड़ा जा रहा है, लेकिन सड़क सुरक्षा पर फोकस नहीं है.
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1. चालान काटने की जगह रोड सेफ्टी पर हो फोकस
सड़क सुरक्षा से जुड़े संगठन ट्रैक्स (TRAX) का कहना है कि ट्रैफिक चालान ज्यादा होने का मतलब तो यह भी निकलता है कि यातायात नियमों का उल्लंघन बढ़ गया है. ट्रैफिक पुलिस इंस्पेक्टर अब ट्रैफिक नियमों का पालन कराने की बजाय ज्यादा से ज्यादा चालान काटने की प्रवृत्ति दिखाई दे रही है, जो कानून की मंशा को गलत दिशा में ले जाता है. देश में आज भी 80 फीसदी इलाकों में ट्रैफिक पुलिस का कोई ढांचा ही नहीं है.
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2. राज्यों में अलग-अलग जुर्माने हैं चुनौती
नए (New Motor Vehicle Act 2019) को पूरे देश में मॉडल कानून की तरह लागू होने का मकसद पूरा नहीं हुआ. हजारों रुपये के ट्रैफिक चालान (Traffic Violation) सुर्खियां बनते ही उत्तराखंड, केरल, कर्नाटक गुजरात जैसे तमाम राज्यों ने चालान राशि 50 से 60 फीसदी तक घटा दी. इससे नए कानून की जटिलताएं बढ़ गईं.
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3. रोज हाईवे तो बन रहे, पुलिसकर्मी नहीं बढ़ रहे
ट्रैक्स की प्रतिनिधि रजनी गांधी ने कहा, देश में रोज 35-40 किलोमीटर का हाईवे बन रहा है, उसी हिसाब से पुलिसकर्मी बढ़ने चाहिए. लेकिन हाईवे पुलिसिंग राज्यों के पास है. यह केंद्र के जिम्मे होना चाहिए था. रजनी गांधी के मुताबिक, नियम के हिसाब से 300 आबादी पर एक पुलिसकर्मी होना चाहिए. भारत में यह अनुपात एक हजार है. एक की तीन हजार वाहन पंजीकृत हो रहे हैं, लेकिन कर्मचारी उतने ही हैं. रोड सेफ्टी का काम कैसे देखेंगे, जब काम का इतना बोझ है.
3. जुर्माना बढ़ने से बढ़ा भ्रष्टाचार-AIMTC
ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (All India Motor Transport Congress) के अध्यक्ष कुलतारण सिंह अटवाल और महासचिव नवीन गुप्ता का कहना है कि ट्रैफिक चालान की जुर्माना राशि बढ़ाने से भ्रष्टाचार बढ़ा है. 5-10 हजार के चालान की जगह 1-2 हजार रुपये घूस देने का दबाव बढ़ा है. मध्य प्रदेश, राजस्थान समेत कई राज्यों में बिना चेक पोस्ट के ट्रकों का आगे बढ़ना संभव नहीं है. खड़े ट्रकों की भी तस्वीरें खींचकर चालान को भेज दी जाती हैं और जब फिटनेस टेस्ट या किसी अन्य काम के लिए आरटीओ जाते हैं तो चालान का पता लगता है. गलत चालान की शिकायत भी नहीं कर पाते क्योंकि चालान मध्य प्रदेश के भिंड में हुआ लेकिन 2-3 दिन में ही गाड़ी चेन्नई पहुंच गई. ऐसे में एमपी के कोर्ट जाकर कोर्ट में प्रतिवाद की जगह चालान भरने का विकल्प ही बचता है.
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4. वीडियो आधारित साक्ष्यों का इस्तेमाल क्यों नहीं
एआईएमटीसी (AIMTC) का कहना है कि कोर्ट चालान में डिजिटल सुनवाई (Challan Virtual hearing) का प्रावधान हो और फोटो बेस्ड ट्रैफिक चालान की जगह वीडियो बेस्ड एविडेंस (Video Evidence) पर चालान होने चाहिए, ताकि किसी भी वाहनमालिक या चालक के साथ गलत या जबरदस्ती चालान की आशंका न हो. ट्रैक्स की रजनी गांधी का कहना है कि हर राज्य का अलग सिस्टम होने की वजह से केंद्र सरकार इसमें काफी कुछ नहीं कर सकती. ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस या ऐसे अन्य संगठनों को सरकार के समक्ष आवाज उठाने चाहिए.
5. शिकायत करने का उचित प्लेटफॉर्म नहीं
ट्रैक्स (Trax) के अध्यक्ष अनुराग कुलश्रेष्ठ का कहना है कि नए कानून के तहत खराब रोड, डिजाइन या अन्य असुविधाओं को लेकर निर्माणकर्ता कंपनी पर जुर्माने का प्रावधान था, लेकिन रियल एस्टेट के रेरा जैसा कोई उचित सुलभ मंच या प्लेटफॉर्म नहीं है, जहां आम जनता भी आसानी से शिकायत कर सके. रजनी गांधी ने कहा कि ऑटो, कैब चालकों का कहना है कि गलती पर हमारे चालान तो ठीक हैं, लेकिन गलत रेड लाइट सिग्नल (Traffic Signal) , मार्किंग या लाइट खराब हैं या ऐसी किसी वजह से कोई हादसा होता है तो निर्माणकर्ता कंपनियां, एजेंसियां पर जुर्माना क्यों नहीं लगता. ऐसे तमाम ब्लैक स्पॉट (Black Spot) ऐसे भी जो चिन्हित नहीं हो पाए हैं. अगर चालान के इतनी भारी राशि वसूली जारी रही हैं तो अच्छी सड़क भी यात्रियों का अधिकार है. एनजीओ और वालंटियर भी ये मुद्दा उठा रहे हैं, लेकिन सुनवाई नहीं है.
6. बिना टेक्निकल स्टॉफ के हो रहा काम
कुलश्रेष्ठ का कहना है कि मोटर वाहन का नया कानून कहता है कि आपके यहां तकनीकी स्टॉफ टेक्निकल नालेज के साथ है, जिसमें एएमवीआई, एमवीआई, एआरटीओ और आरटीओ. बाकी राज्यों में 70 से 80 फीसदी नॉन टेक्निकल स्टॉफ है, जो मोटर वाहन कानून के खिलाफ काम कर रहे हैं. जैसे इंजीयनिरिंग के कार्य में इंजीनियरिंग की डिग्री जरूरी है. लेकिन इस केंद्रीय कानून के तहत इसमें ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग या मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमाधारक कर्मचारी हैं ही नहीं.
7. रोड सेफ्टी अथॉरिटी हाथ पर हाथ धरे बैठीं
राज्यों में रोड सेफ्टी अथॉरिटी (Road Safety Authority) की जिम्मेदारी सड़क सुरक्षा पर नीति निर्माण और क्रियान्वयन का है, लेकिन साल में एक बार बैठक से क्या निगरानी और क्या अनुपालन होगा. सवाल है कि इन एजेंसियों के पास वो अधिकार है, जो दूसरे विभाग के अधिकारियों, आईएएस आईपीएस को निर्देशित कर पाएं.नौ साल लंबी कवायद के बाद वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) रोड सेफ्टी कमेटी गठित हुई. 8-9 राज्यों में रोड सेफ्टी अथॉरिटी बन पाई है. जिला स्तर रोड सेफ्टी कमेटी का काम तो न के बराबर है.
8. रोड सेफ्टी फंड का सही जगह खर्च नहीं
अनुराग ने कहा कि केंद्र सरकार रोड सेफ्टी के लिए राज्यों को कुछ न कुछ फंड आवंटित करती है, लेकिन राज्यों के पास नीति, एजेंसी नही हैं तो वो कहां खर्च करेंगे. तो वो बस रस्मअदायगी के तौर पर पोस्टर, होर्डिंग रैली, जागरूकता कार्यक्रम खर्च कर देते हैं. जमीनी धरातल पर सड़क डिजाइन, पुलिसिंग या ट्रैफिक मैनेजमेंट का ऑडिट कौन करेगा. ट्रैफिक पुलिस को यातायात प्रबंधन के लिए पर्याप्त ट्रेनिंग, संसाधन पर कुछ नहीं हो रहा. वे सिर्फ जाम खुलवाने, लाल हरी बत्ती, नेता की ड्टूयी या चालान तक सीमित है. मॉडर्न टेक्नोलॉजी, पोस्ट क्रैश इनवेस्टीगेशन का काम ट्रैफिक पुलिस नहीं करती, ताकि फिर वैसे ही हादसे न हों क्या है.
9. हाईवे पर ट्रैफिक प्रबंधन की अलग एजेंसी हो
नेशनल हाईवे, राज्यों के राजमार्ग, एक्सप्रेसवे (National Highway Expressway)पर रोजाना सड़क दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं. खड़े वाहनों पर पीछे से भिड़ंत, लाइटें न होना, जानवरों के कारण दुर्घटनाओं के वाकये हैं. गोल्डन ऑवर में इलाज के लिए सुविधाएं सिर्फ बड़े हाईवे के चुनिंदा स्थानों तक सीमित हैं. क्या बेहतरी होनी चाहिए. ट्रैक्स की रजनी गांधी ने कहा कि सड़क सुरक्षा के फंड का उचित खर्च का दारोमदार राज्यों पर है. हाईवे पर पुलिसिंग, एंबुलेंस, अस्पतालों में इलाज पर एक पूरा मैकेनिज्म होगा, तभी दुर्घटनाएं कम होंगी और जानें बचाई जा सकेंगी. अगर स्टेट हाईवे पर गाड़ी खराब हुई तो उसे हेल्पलाइन से तुरंत मदद मिले. टोइंग वाहन मिले. क्या उसको लेकर कोई जागरूकता वाहन चालकों में इसके लिए है क्या. क्या वाहनों को पार्किंग की जगह है या नहीं.
10. कानूनों की धज्जियां उड़ा रहीं ऑटोमोबाइल कंपनियां
एमपी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बाइक में हैंड ग्रिप और सारी गार्ड अनिवार्य किया गया था, लेकिन 25 सालों में सारी कंपनियों ने अपने वाहनों से इसे गायब कर दिया है. इसके लिए किसे दोषी ठहराया जाए. रजनी गांधी ने बताया कि मोटर वाहन कानून के रूल 138 एफ4 में लिखा है कि टू व्हीलर के साथ हेलमेट देना है. कुछ राज्यों ने अब शुरू किया है. 1989 का यह आदेश है, लेकिन राज्यों को पता ही नहीं है. वाहन कंपनियां, डीलर भी कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं.
11. घटिया नकली हेलमेट पर रोक नहीं
टू व्हीलर हेलमेट मैन्युफैक्चर एसोसिएशन (Two Wheeler Manufacture Association) के प्रेसिडेंट राजीव कपूर का कहना है कि 85 फीसदी हेलमेट में घटिया हैं, नकली माल बिक रहा है. 20-25 फीसदी महिलाओं के सिर पर नकली हेलमेट है. हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद राज्य सरकारें, पुलिस और बीआईएस कोई कदम नहीं उठाता. इसकी मैन्युफैक्चरिंग ही रुक जाए तो घटिया हेलमेट पहनने की बात क्यों आएगी. गांधी ने कहा कि इसको लेकर हेलमेट इंडिया कोएलिशन बनाया गया है, पर कार्रवाई तो राज्यों को ही करनी है.
12. खराब वाहन पर जुर्माना या वापस लेने का क्या हुआ
देश में खराब गुणवत्ता के वाहन पर जुर्माना या उन्हें वापस लेने पर सरकारों ने कंपनियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाए. अनुराग कुलश्रेष्ठ का कहना है कि वहिकल स्टार रेटिंग या रिकॉलिंग की बात छलावा है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे जोखिम वाला वाहन कार है. बाइक के लिए अलग ट्रैक. है.जबकि हमारे यहां 75 फीसदी बाइक सड़क पर चलती हैं, जिसे हम नजरअंदाज करते हैं. देश में 35 फीसदी बाइक सवार सड़क दुर्घटना में मर रहे हैं, कार से महज 4 फीसदी.
यात्रियों के इन अधिकारों पर बात की जाए...
1. राइट टू रोड सेफ्टी का अधिकार मिले
सड़क सुरक्षा के अधिकार (Right to Road safety) पर ट्रैक्स का कहना है कि सड़क की खराबी, रोड मार्किंग, लाइट न होने, लाइट, पुल-अंडर पास, हाईवे पर पेट्रोलिंग, पार्किंग सुविधाएं, हादसे के दौरान आपात सहायता में दिक्कतों की शिकायतों के लिए रेरा जैसा प्लेटफॉर्म सही दिशा में कदम होगा. रोड सेफ्टी अथॉरिटी और जिलों में रोड सेफ्टी कमेटी के जरिये ऐसा हो सकता है, लेकिन नौकरशाही हावी है. सड़ुक सुरक्षा एजेंसियों, मीडिया, एनजीओ और जनता की भागीदारी के बगैर ये मंच नाकाम साबित होंगे.
2. सारी सड़क दुर्घटनाएं दर्ज हों
भारत में 2014 से 2018 के बीच सालाना 4.5 लाख से 5 लाख के करीब सड़क दुर्घटनाएं अधिकृत तौर पर दर्ज हुईं. जबकि 1.3 लाख से 1.5 लाख सालाना मौतें हुईं. लेकिन 2018 में सड़क हादसों में मौतों का डब्ल्यूएचओ का आंकड़ा 3 लाख और सरकार का 1.5 लाख के करीब है. सड़क दुर्घटना की अंडर रिपोर्टिंग यानी सारे मामलों का दर्ज न होना भी समस्या है. लिहाजा एक डेडीकेटेड पोर्टल हो, जिस पर सड़क दुर्घटनाओं को वाहन मालिक खुद दर्ज करा सके. कानून कार्रवाई की जिम्मेदारी उस पर ही छोड़ी जाए. इससे देश में सड़क हादसों की सही तस्वीर मिलेंगी और ट्रैफिक पर भारी बोझ का वास्तविक आंकड़ा सामने आएगा.
3. सारथी पोर्टल को अपडेट करें
ट्रैक्स का कहना है कि सारथी (Sarthi) पोर्टल पर सभी राज्यों का डेटा अभी तक अपडेट नहीं हो पाया है. कितनी गाड़ियां हर महीने पंजीकृत होती हैं और कितनी बार्ड होती हैं, उसका डेटा भी जिले स्तर पर होना चाहिए. जब तक ये डेटा अपडेशन नहीं होगा, पूरी मदद आम नागरिकों को नहीं मिल पाएगी. यह राज्य स्तर पर समस्या है. सेंट्रल पोर्टल से जुड़ जाएंगे.
4. भारत सीरीज से जुड़ें राज्य
भारत सीरीज (Bharat Series) के तहत केंद्रीकृत नंबर है, जिसके तहत वाहनों का ट्रांसफर (Vehicle Transfer) या चालान वगैरा कहीं भी कभी भी भर सके. लेकिन ये अब राज्यों के पाले में है कि वो अपने राज्यों के नंबर खत्म करें. इससे निजी वाहनों (Passenger Vehicles) और व्यावसायिक वाहनों (Commercial Vehicles) को फायदा मिलेगा. हिट एंड रन केस में मुआवजा राशि बढ़ाने के साथ तुरंत मुआवजा जारी करने का केंद्र ने आदेश दिया है, लेकिन राज्य सरकारें इन मामलों में उदासीन हैं.
भयावह आंकड़े....
13.5 लाख लोग मरते हैं हर साल सड़क दुर्घटना में दुनिया में
93 फीसदी मौतें इनमें से कम आय वाले गरीब देशों में हो रहीं
3 गुना ज्यादा मौतें गरीब देशों में विकसित देशों की तुलना में
1.5 लाख सालाना मौतें सड़क हादसों में भारत में
4.5 लाख के करीब सड़क दुर्घटनाएं हर साल भारत में