राष्ट्रपति के मुहर लगाते ही जस्टिस डॉ धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ देश के पहले ऐसे CJI बनेंगे, जिनके पिता भी पहले देश के मुख्य न्यायाधीश रहे हो. न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार पिता- पुत्र की जोड़ी होगी, जो देश के मुख्य न्यायाधीश रहे होंगे. इतना ही नहीं दो बार उन्होंने अपने पिता जस्टिस वीवाई चंद्रचूड़ के फैसलों को भी पलटा है.
निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित करने वाला सुप्रीम कोर्ट का 9 जजों संविधान पीठ का फैसला एक अनोखे कारण के लिए ऐतिहासिक था. क्योंकि जस्टिल डी वाई चंद्रचूड़ ने आपातकाल के दौरान दिए गए प्रसिद्ध ADM जबलपुर मामले में अपने पिता वाईवी चंद्रचूड़ द्वारा लिखे गए फैसले को पलट कर दिया था.
28 अप्रैल, 1976 को, जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़, जो पांच- जजों के संविधान पीठ का हिस्सा थे, ने 4:1 बहुमत से फैसला सुनाया था कि आपातकाल के दौरान सभी मौलिक अधिकार निलंबित हो जाते हैं और व्यक्तियों को सुरक्षा के लिए संवैधानिक अदालतों से संपर्क करने का अधिकार नहीं है. इसके 41 साल बाद, उनके बेटे जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने फैसले को खारिज करते हुए कहा कि एडीएम जबलपुर में बहुमत बनाने वाले सभी चार जजों द्वारा दिए गए फैसले गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण हैं.
एडीएम जबलपुर के फैसले द्वारा पैदा की गई अधिकांश समस्याओं को 44 वें संविधान संशोधन द्वारा ठीक कर दिया गया था. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने मामले में जस्टिस एच आर खन्ना द्वारा दिए गए अल्पसंख्यक फैसले को सही ठहराते हुए कहा था कि जस्टिस खन्ना द्वारा लिए गए विचार को स्वीकार किया जाना चाहिए और इसके विचारों की ताकत और इसके दृढ़ विश्वास के साहस के लिए सम्मान में स्वीकार किया जाना चाहिए.
जस्टिस खन्ना का स्पष्ट रूप से यह मानना सही था कि संविधान के तहत जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मान्यता इसके अलावा उस अधिकार के अस्तित्व को नकारती नहीं है और न ही यह एक गलत धारणा हो सकती है कि संविधान को अपनाने में भारत के लोगों ने मानव व्यक्तित्व के सबसे कीमती पहलू, जीवन, स्वतंत्रता और स्वतंत्रता को उस राज्य को सौंप दिया, जिसकी दया पर ये अधिकार निर्भर होंगे.
दूसरे व्याभिचार कानून मामले में भी जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और उनके पिता, भारत के पूर्व CJI चंद्रचूड़ शामिल थे. 1985 में, तत्कालीन CJI वाईवी चंद्रचूड़ ने जस्टिस आरएस पाठक और एएन सेन के साथ धारा 497 की वैधता को बरकरार रखा.
33 साल बाद उनके बेटे जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने मामले में कहा कि हमें अपने फैसलों को आज के समय के हिसाब से प्रासंगिक बनाना चाहिए.
कामकाजी महिलाओं के उदाहरण देखने को मिलते हैं, जो घर की देखभाल करती हैं, उनके पतियों द्वारा मारपीट की जाती है, जो कमाते नहीं हैं. वह तलाक चाहती है. लेकिन यह मामला सालों से कोर्ट में लंबित है. अगर वह किसी दूसरे पुरुष में प्यार, स्नेह और सांत्वना ढूंढती है, तो क्या वह इससे वंचित रह सकती है. अक्सर, व्यभिचार तब होता है जब शादी पहले ही टूट चुकी होती है और युगल अलग रह रहे होते हैं.
किसी अन्य व्यक्ति के साथ यौन संबंध रखता है, तो क्या उसे धारा 497 के तहत दंडित किया जाना चाहिए? व्यभिचार में कानून पितृसत्ता का एक संहिताबद्ध नियम है. यौन स्वायत्तता के सम्मान पर जोर दिया जाना चाहिए. विवाह स्वायत्तता की सीमा को संरक्षित नहीं करता है. धारा 497 विवाह में महिला की अधीनस्थ प्रकृति को अपराध करता है.
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