राज्य या केंद्र सरकार के मंत्रियों की अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ को सौंपा गया है. पांच जजों की पीठ इस मामले पर 15 नवंबर से सुनवाई करेगा. जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस भूषण आर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी राम सुब्रमण्यम और जस्टिस बी वी नागरत्ना की संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि कब किसके अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार को किस हद तक अंकुश लगाना है. इस बाबत पर कोई आम आदेश नहीं दिया जा सकता है. ये तो हर केस पर निर्भर करता है.
जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "जब पहले से ही संविधान में अधिकार और कर्तव्य के साथ पाबंदी का भी प्रावधान है तो अलग से निषेध का कोई अर्थ नहीं रह जाता है. दरअसल, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने चार सवालों पर ही सुनवाई रखने की बात कही थी. पहला मुद्दा तो ये कि क्या अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी पर अंकुश लगाया जा सकता है? अगर हां तो किस हद तक और कैसे? दूसरा मसला ये कि अगर प्रशासनिक या शासन में तैनात उच्च पद पर तैनात कोई अपनी आजादी का दुरुपयोग करता है तो अंकुश लगाना कैसे संभव होगा?
अनुच्छेद 12 के मुताबिक किसी व्यक्ति, प्राइवेट निगम या अन्य संस्थान इसका अतिक्रमण करें तो पर संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के कवच के बावजूद ये कैसे पाबंदी के दायरे में आएंगे? चौथा और अंतिम मुद्दा ये कि क्या सरकार को इसका वैधानिक प्रावधान के तहत अधिकार है?
अब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को फैसला करना है कि क्या अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किसी भी आपराधिक मामले में सरकार के मंत्री या जनप्रतिनिधि कानून के उलट कुछ भी बयान दे सकते हैं या नहीं. 2017 में सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश की तीन सदस्यीय पीठ ने मामले को संविधान पीठ के पास भेजने की सिफारिश की थी.
दरअसल, बुलंदशहर गैंग रेप मामले में आजम खान के विवादित बयान पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था. आजम ने इस घटना को सिर्फ राजनीतिक साजिश करार दिया था. हालांकि खान ने कोर्ट से बिना शर्त माफी मांग ली थी. कोर्ट ने माफीनामा मंजूर भी कर लिया था. तब कोर्ट ने कहा भी था कि बोलने की आजादी के नाम पर क्या आपराधिक मामलों में सरकार के मंत्री या जनप्रतिनिधि नीतिगत मामलों और कानून के विपरीत बयान देना उचित है?
सुनवाई के दौरान एमाइकस क्यूरी हरीश साल्वे ने कहा था कि मंत्री संविधान के प्रति जिम्मेदार है और वह सरकार की पॉलिसी और नीति के खिलाफ बयान नहीं दे सकता. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कई संवैधानिक सवाल उठाए जिनका परीक्षण किया जाना है. ये याचिका भी 2016 में ही कौशल किशोर बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के नाम से दाखिल की गई थी.
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