दिल्‍ली हाईकोर्ट ने स्‍वतंत्रता सेनानी को 40 साल बाद दिलाया हक, कहा - आजादी के लिए लड़ने वालों के प्रति असंवेदनशीलता पीड़ादायक

अदालत ने दो नवंबर के अपने फैसले में कहा, ‘‘ढुलमुल रवैये के लिए, यह अदालत भारत सरकार पर 20,000 रुपये की लागत लगाना उचित समझती है. आज से छह सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को लागत का भुगतान किया जाए.’’

विज्ञापन
Read Time: 23 mins
अदालत ने कहा कि यह अदालत भारत सरकार पर 20,000 रुपये की लागत लगाना उचित समझती है. (फाइल)
फटाफट पढ़ें
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार पर 20,000 रुपये की लागत लगाई है
  • स्वतंत्रता सेनानी को पेंशन पाने के लिए 40 साल तक इंतजार करना पड़ा
  • कोर्ट ने केंद्र को 1980 से ब्याज सहित पेंशन भुगतान का निर्देश दिया
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही? हमें बताएं।
नई दिल्ली :

दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने 96 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी को पेंशन देने में ‘‘उदासीन रवैया'' अपनाने के लिए केंद्र सरकार पर 20,000 रुपये की लागत लगाई है. उच्च न्यायालय ने कहा कि यह मामला ‘‘दुखद स्थिति'' को दर्शाता है क्योंकि स्वतंत्रता सेनानी उत्तम लाल सिंह को अपनी उचित पेंशन पाने के लिए 40 साल से अधिक समय तक दर-दर भटकते हुए इंतजार करना पड़ा. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह सिंह को 1980 से ब्याज सहित स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन का भुगतान करे. उन्होंने 12 सप्ताह के भीतर राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया. 

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘देश की आजादी के लिए लड़ने वालों के प्रति केंद्र द्वारा दिखाई गई असंवेदनशीलता पीड़ादायक है.''

अदालत ने दो नवंबर के अपने फैसले में कहा, ‘‘ढुलमुल रवैये के लिए, यह अदालत भारत सरकार पर 20,000 रुपये की लागत लगाना उचित समझती है. आज से छह सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को लागत का भुगतान किया जाए.''

अदालत ने कहा कि बिहार सरकार ने याचिकाकर्ता के मामले की सिफारिश की थी और मूल दस्तावेज मार्च 1985 में केंद्र सरकार को भेज दिए थे. हालांकि, केंद्र सरकार के पास से दस्तावेज खो गए. 

Advertisement

अदालत सिंह की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने कहा है कि उनका जन्म 1927 में हुआ था और उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े अन्य आंदोलनों में भाग लिया था. 

Advertisement

याचिका में कहा गया कि ब्रिटिश सरकार ने उन्हें आरोपी बनाया और सितंबर 1943 में भगोड़ा घोषित कर दिया था. 

याचिकाकर्ता ने मार्च 1982 में स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन के लिए आवेदन किया था और उनका नाम फरवरी 1983 में बिहार सरकार ने केंद्र को भेजा था. 

Advertisement

ये भी पढ़ें :

* महुआ मोइत्रा द्वारा दायर मानहानि मामले में दिल्‍ली हाईकोर्ट में अगली सुनवाई 5 दिसंबर को...
* शराब घोटाला : मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट से झटका, नहीं मिली जमानत
* राष्ट्रीय राजधानी में प्याज में तेजी जारी, अखिल भारतीय औसत दर 53.75 रुपये प्रति किलो

Advertisement
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
Featured Video Of The Day
Ahmedabad Plane Crash: कैसे अहमदाबाद क्रैश में बची विश्‍वास कुमार की जान | Explainer | NDTV India
Topics mentioned in this article