
ग्रेटर नोएडा में बिल्डर द्वारा नोएडा में आवासीय परियोजना को छोड़ने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरण से घर खरीदारों के साथ सहयोग करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण को निर्देश दिया कि वह बिल्डर द्वारा छोड़ी गई आवासीय परियोजना को पुनर्जीवित करने में घर खरीदारों के साथ सहयोग करे. सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण से उस मांग का ब्यौरा देने को कहा जो प्राधिकरण ने मूल बिल्डरों द्वारा परियोजना पूरी किए जाने की स्थिति में उठाई होती. ताकि हर घर खरीदार के आनुपातिक शुल्क को उनके द्वारा लिए जा रहे अपार्टमेंट के आकार के आधार पर तय किया जा सके. प्राधिकरण से पट्टे पर भूखंड लेने वाली सहकारी आवास सोसायटी द्वारा घर खरीदारों से पैसे लेने के बावजूद पट्टे की बकाया राशि का भुगतान न करने के बाद परियोजना को छोड़ दिया गया था.
'घर खरीदारों को बिल्डर द्वारा धोखा दिया गया'
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा, अदालत इस बात से खुश नहीं है कि प्राधिकरण मृत परियोजना को पुनर्जीवित करने में सहयोग नहीं कर रहा है. हम इस तथ्य से खुश नहीं हैं कि ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण एक मृत परियोजना को पुनर्जीवित करने की पूरी प्रक्रिया में सहयोग नहीं कर रहा है. जहां घर खरीदारों को बिल्डर द्वारा धोखा दिया गया है, जो दशकों पहले गायब हो गया है. और कुछ घर खरीदार पूरी परियोजना को आंशिक रूप से पुनर्जीवित करने के लिए एक साथ आ गए हैं और अन्य घर खरीदार परियोजना के शेष हिस्से को पुनर्जीवित करने के लिए आगे आ रहे हैं.
प्राधिकरण के लिए वरिष्ठ वकील रवींद्र कुमार ने मांग का विवरण प्रदान करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा ताकि अपार्टमेंट के आकार के आधार पर प्रत्येक घर खरीदार के आनुपातिक शुल्क का फैसला किया जा सके. गोल्फ कोर्स सहकारी आवास समिति लिमिटेड सोसाइटी ने भूमि के आवंटन के लिए प्राधिकरण को आवेदन किया था, जिसे 2004 में प्लॉट नंबर 7, सेक्टर पी-2, ग्रेटर नोएडा, गौतम बुद्ध नगर के रूप में आवंटित किया गया था.
घर खरीदारों ने आरोप लगाया कि सोसायटी ने वित्तीय संस्थानों के साथ मिलकर घर खरीदारों को ठगा है, क्योंकि कुछ समय बाद सोसायटी द्वारा प्राधिकरण को कोई भुगतान नहीं किया गया. घर खरीदारों ने सोसायटी द्वारा पेश किए गए फ्लैट खरीदने के उद्देश्य से प्रतिवादी बैंकों से ऋण लिया था. उन्होंने सबसे पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर कर प्राधिकरण द्वारा 2011 में लीज डीड को समाप्त करने के आदेश को रद्द करने की मांग की थी. इसके बाद, हाउसिंग सोसायटी के निदेशकों के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 17 मई, 2016 के आदेश के माध्यम से लीज को रद्द करने के प्राधिकरण के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, क्योंकि हाउसिंग सोसायटी द्वारा लीज किराया और अन्य बकाया राशि जमा नहीं की गई थी.इसके खिलाफ घर खरीदारों ने SC का दरवाजा खटखटाया था.