लोगों को मुफ्त सौगात दिए जाने के खिलाफ उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) में दायर एक जनहित याचिका के अनुसार राजनीतिक दलों को अपने चुनावी वादों या नीतियों के आर्थिक प्रभाव और लाभार्थियों की अपेक्षित संख्या के बारे में निर्वाचन आयोग को जानकारी देने के लिए निर्देश दिया जा सकता है. उच्चतम न्यायालय मुफ्त सौगातों के संबंध में चुनावों के दौरान की जाने वाली घोषणाओं के मुद्दे पर गौर करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने पर विचार कर रहा है. न्यायालय ने इस मुद्दे पर केंद्र, निर्वाचन आयोग, वित्त आयोग और नीति आयोग सहित सभी पक्षों से सुझाव मांगे हैं. जनहित याचिका पर 22 अगस्त को सुनवाई होगी.
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया और वकील अश्विनी दुबे के जरिए शुक्रवार को अतिरिक्त दलीलें पेश कीं और कहा कि पंजीकृत राजनीतिक दलों को मुफ्त या कल्याणकारी योजनाओं से संबंधित चुनावी वादों से जुड़ी जानकारी निर्वाचन आयोग को पेश करने के लिए कहा जाना चाहिए.
उपाध्याय ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि राजनीतिक दल लोगों के कल्याण के लिए अपनी योजनाओं की घोषणा कर सकते हैं. हालांकि, यह आवश्यक है कि राजनीतिक दलों द्वारा अपने चुनावी घोषणा पत्र में घोषित योजनाओं के वित्तीय प्रभाव की जानकारी मतदाताओं को होनी चाहिए.
उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का भी जिक्र किया जिनमें निर्देश दिया गया है कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्येक उम्मीदवार को निर्वाचन आयोग द्वारा उपलब्ध कराए गए एक फॉर्म को भरना होगा जिसमें उनके खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का विवरण होगा.
याचिका में कहा गया है कि इस संबंध में निर्वाचन आयोग को जागरूकता अभियान चलाने का निर्देश दिया गया था. उन्होंने दलील दी कि इस मामले में भी न्यायालय द्वारा निर्देश जारी किया जा सकता है जिससे राजनीतिक दलों के लिए आर्थिक प्रभाव आकलन के बारे में जानकारी देना जरूरी हो जाए.
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