बॉम्बे हाईकोर्ट में एड हॉक जज जस्टिस पुष्पा वी गनेडीवाला स्थाई जज नहीं बनेंगी . सूत्रों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने फैसला लिया है. बता दें कि पॉक्सो मामले में ‘ स्किन टू स्किन' फैसले पर विवाद हुआ था. कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को रद्द कर दिया था. बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में जस्टिस गनेडीवाला नियुक्त हैं .
18 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के लिए स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट जरूरी नहीं है. स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट के बिना बच्चों के नाजुक अंगों को छूना पॉस्को (POSCO) कानून के तहत यौन शोषण होगा . यौन उद्देश्य से बच्चे के यौन अंगों को छूना पोक्सों के तहत अपराध है. पॉक्सो का उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण से बचाना है. ऐसी संकीर्ण व्याख्या हानिकारक होगी .
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सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को रद्द किया था. मामले के आरोपी को तीन साल की सजा दी गई थी. स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट के बिना POSCO एक्ट नहीं लागू होता है या नहीं इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था. जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रविंद्र भट्ट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ का फैसला था. सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सभी पक्षों की दलीले सुनने के बाद 30 सितबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. दरअसल बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ द्वारा पारित विवादास्पद फैसले के खिलाफ AG केके वेणुगोपाल द्वारा दाखिल याचिका समेत इस याचिका का समर्थन करते हुए महाराष्ट्र राज्य महिला आयोग सहित कई अन्य पक्षकारों की ओर से दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था.
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इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया गया था कि "एक नाबालिग के स्तन को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना टटोलना POCSO के तहत यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता है. - इसका मतलब कि यदि यौन उत्पीड़न के आरोपी और पीड़िता के बीच सीधे स्किन टू स्किन का संपर्क नहीं होता है, तो POSCO के तहत यौन उत्पीड़न का कोई अपराध नहीं बनता है .