"कोर्ट का फैसला गलत", राहुल गांधी की याचिका खारिज होने पर अभिषेक मनु सिंघवी

राहुल गांधी ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ 3 अप्रैल को सत्र अदालत का रुख किया था. उनके वकीलों ने दो आवेदन भी दाखिल किए थे.

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नई दिल्ली:

कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मोदी सरनेम मामले में गुजरात की सेशंस कोर्ट से राहत नहीं मिली है. अदालत द्वारा दिए गए फैसले को लेकर कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दुख जताया है और कहा है कि सेशन कोर्ट का फ़ैसला ग़लत है. साथ ही उन्होंने कहा कि हम अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग करेंगे. जल्द से जल्द इस्तेमाल करेंगे. राहुल गांधी जी के वक्तव्य को तोड़फोड कर नया आयाम दिया गया है.

निर्णय मे जो कारण दिए गए हैं वो संदिग्ध हैं. OBC समुदाय के लोगों ने समझ लिया है उनके नाम को भुनाने का काम मोदी जी और भाजपा कर रही हैं. राहुल गांधी सही रूप से बोलते हैं. जनता के दरबार मे राहुल गांधी बोलते हैं. राहुल गांधी गलत नही बोलते है उन्हें बोलने से रोक नही सकते हैं. उन्होंने कहा कि हम कानूनी कदम उठाते रहेंगे.

कानूनी विकल्प पर करेंगे विचार : जयराम रमेश 

फैसले पर कांग्रेस के महासचिव प्रभारी संचार जयराम रमेश ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "कानून के तहत जो भी विकल्प हमारे लिए उपलब्ध होंगे, हम उन सभी विकल्पों का लाभ उठाना जारी रखेंगे. अभिषेक मनु सिंघवी आज शाम 4 बजे राहुल गांधी की अपील पर मीडिया को जानकारी देंगे."

राहुल गांधी की तरफ से 3 अप्रैल को दी गई थी अर्जी

राहुल गांधी ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ 3 अप्रैल को सत्र अदालत का रुख किया था. उनके वकीलों ने दो आवेदन भी दाखिल किए थे. जिनमें एक सजा पर रोक के लिए और दूसरा अपील के निस्तारण तक दोषी ठहराये जाने पर स्थगन के लिए था. अदालत ने राहुल को जमानत देते हुए शिकायती पूर्णेश मोदी और राज्य सरकार को नोटिस जारी किए थे. कोर्ट ने पिछले गुरुवार को दोनों पक्षों को सुना और फैसला 20 अप्रैल तक के लिए सुरक्षित रख लिया था. सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट आरएस चीमा ने राहुल गांधी का पक्ष कोर्ट के सामने रखा था. 

मानहानि का केस उचित नहीं: राहुल के वकील

राहुल गांधी के वकील ने कोर्ट में तर्क दिया था कि राहुल की मोदी सरनेम पर टिप्पणी को लेकर मानहानि का केस उचित नहीं था. साथ ही केस में अधिकतम सजा की भी जरूरत नहीं थी. सीनियर एडवोकेट आरएस चीमा ने कहा था कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 389 में अपील लंबित होने पर सजा के निलंबन का प्रावधान है. उन्होंने कहा था सत्ता एक अपवाद है, लेकिन कोर्ट को सजा के परिणामों पर विचार करना चाहिए. उन्होंने कहा था कि कोर्ट को इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या दोषी को अपूरणीय क्षति होगी. ऐसी सजा मिलना अन्याय है.

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