OBC पर संविधान संशोधन से BJP को क्या मिल सकता है फायदा?  क्या है यूपी चुनाव से कनेक्शन?

यूपी समेत पूरे उत्तर भारत में सियासत का पहिया जाति के आस-पास ही केंद्रित रहा है. राज्य में यादव समाजवादी पार्टी का वोट बैंक रहा है तो कुर्मी और कोइरी फिलहाल बीजेपी के पाले में है. 2017 के यूपी विधान सभा चुनाव में बीजेपी ने अति पिछड़े वर्ग और अति दलित जातियों के वोट की बदौलत ही राज्य में 14 वर्षों की सियासी वनवास खत्म किया था और सत्ता हासिल की थी.

OBC पर संविधान संशोधन से BJP को क्या मिल सकता है फायदा?  क्या है यूपी चुनाव से कनेक्शन?

127वां संविधान संशोधन बिल पारित होने के बाद सभी राज्य, केंद्र शासित प्रदेश अपनी ओबीसी लिस्ट बना सकेंगे.

नई दिल्ली:

केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने लोकसभा में ओबीसी आरक्षण से जुड़े 127वां संविधान संशोधन बिल पेश किया, जिसे सदन ने 10 अगस्त, 2021 को 385 मतों से पारित कर दिया. विपक्षी कांग्रेस समेत सभी दलों ने इस बिल का समर्थन किया. अब यह बिल राज्यसभा से पारित होकर राष्ट्रपति के पास जाएगा.

127वां संविधान संशोधन बिल संविधान के अनुच्छेद 342A के खंड 1 और 2 में संशोधन करेगा और एक नया खंड 3 भी जोड़ेगा. इसके अलावा यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 366 (26c) और 338B (9) में भी संशोधन कर सकेगा. 127वें संशोधन विधेयक को यह स्पष्ट करने के लिए डिज़ाइन किया गया है कि राज्य और केंद्रसासित प्रदेश सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) की "राज्य सूची" बनाने के लिए स्वतंत्र होंगे. 

क्या है ये संविधान संशोधन बिल? क्या बदलेगा?
अनुच्छेद 366 (26c) सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को परिभाषित करता है, जबकि अनुच्छेद 338B राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की संरचना, कर्तव्यों और उसकी शक्तियों से संबंधित है. आर्टिकल 342A राष्ट्रपति की शक्तियों, जिसके अनुसार राष्ट्रपति किसी विशेष जाति को SECB के रूप में नोटिफाई कर सकते हैं और ओबीसी लिस्ट में परिवर्तन करने की संसद की शक्तियों से संबंधित है.

सरकार क्यों लेकर आई ये बिल?
साल 2018 में पारित 102वें संविधान संशोधन के जरिए संविधान में अनुच्छेद 342A, 338B और 366(26C) को जोड़ा गया था. इसी साल 5 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मराठा समुदाय को अलग से पांच फीसदी आरक्षण देने के फैसले को खारिज कर दिया था और कहा था कि 102वें संविधान संशोधन के तहत केवल केंद्र सरकार ही किसी जाति को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग की सूची में जोड़ सकती है. सुप्रीम कोर्ट की इस व्याख्या ने पिछड़े वर्ग की पहचान और उन्हें आरक्षण देने के मामले में राज्यों के अधिकार खत्म कर दिए थे. लिहाजा केंद्र सरकार नया संविधान संशोधन बिल लाई है तैकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटा जा सके.

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बीजेपी को क्या हो सकता है फायदा?
अगले साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने हैं. इन राज्यों खासकर उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जाति की संख्या अधिक है. यूपी में जाट भी पिछड़ा वर्ग में आते हैं जबकि हरियाणा में यह पिछड़ा वर्ग में नहीं है. ऐसे में हरियाणा की बीजेपी सरकार जाटों खासकर किसानों को खुश करने के लिए उसे ओबीसी लिस्ट में डाल सकती है. क्योंकि फिलहाल हरियाणा में किसान आंदोलन की वजह से बीजेपी की स्थिति खस्ताहाल है. अन्य राज्यों में जहां बीजेपी की सरकारें हैं, वहां कई जातियों को लाभ दिलाने के लिए ओबीसी लिस्ट में डाला जा सकता है. इससे अति पिछड़े वर्ग का वोट बीजेपी को मिलने के आसार हैं.

यूपी चुनाव से क्या है कनेक्शन?
यूपी समेत पूरे उत्तर भारत में सियासत का पहिया जाति के आस-पास ही केंद्रित रहा है. राज्य में यादव समाजवादी पार्टी का वोट बैंक रहा है तो कुर्मी और कोइरी फिलहाल बीजेपी के पाले में है. 2017 के यूपी विधान सभा चुनाव में बीजेपी ने अति पिछड़े वर्ग और अति दलित जातियों के वोट की बदौलत ही राज्य में 14 वर्षों की सियासी वनवास खत्म किया था और सत्ता हासिल की थी.  माना जा रहा है कि इस बिल के कानून बनने से उत्तर प्रदेश सरकार पिछड़ा वर्ग सामाजिक न्याय समिति की सिफारिशें लागू कर सकती हैं. योगी सरकार ने जस्टिस राघवेंद्र कुमार की अध्यक्षता में इस कमेटी का गठन किया था.  इस समिति ने राज्य में ओबीसी आरक्षण को तीन वर्गों में बांटने की सिफारिश की थी. माना जाता है कि यूपी में ओबीसी आरक्षण का अधिकांश लाभ यादव, कुर्मी और जाट समुदाय के लोग उठा लेते हैं. यादव और जाट बीजेपी के वोटबैंक नहीं है. 

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ऐसे में ओबीसी को तीन वर्गों- पिछड़ा, अति पिछड़ा और सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग के रूप में विभाजन कर उन्हें 27 फीसदी में से क्रमश: 7, 11 और 9 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की गई थी. यूपी में ओबीसी के तहत 234 जातियां आती हैं. यादव, अहीर, जाट, कुर्मी,  सोनार और चौरसिया जैसी जातियों को पिछड़ा वर्ग में जबकि गिरी, गुर्जर, गोसाईं, लोध, कुशवाहा, कुम्हार, माली, लोहार समेत 65 जातियों को अति पिछड़ा वर्ग और मल्लाह, केवट, निषाद, राई, गद्दी, घोसी, राजभर जैसी 95 जातियों को सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग में शामिल करने की सिफारिश की गई है. अगर यूपी सरकार इसे लागू करने में सफल रही तो अति पिछड़ी और सर्वाधिक पिछड़ी जातियां फिर से बीजेपी का वोटबैंक बन सकती हैं और योगी आदित्यनाथ चुनावी बैतरणी पार कर सकते हैं.