आसान नहीं है बच्चों को Breastfeeding करवाना, पार करनी पड़ती हैं चार कठिन स्टेज, हर Mom के लिए समझना है जरूरी

Breastfeeding Stages: ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली हर मां को ये जान लेना जरूरी है कि ब्रेस्टफीडिंग की चार अलग अलग स्टेज होती हैं. हर स्टेज पर बच्चा कुछ नया सीखता है जिसके साथ मां को एडजस्ट करना पड़ता है.

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Breastfeeding Stages: ब्रेस्टफीडिंग करवाने के लिए मां को गुज़रना पड़ता है इन 4 स्टेजेस से.

बच्चे को जन्म देने के बाद उसे गोद में उठा कर कलेजे से लगाना हर मां का अरमान होता है. ये अरमान पूरा करना इतना भी आसान नहीं होता. क्योंकि कलेजे से लगाना सिर्फ एक इमोशन नहीं है. एक ड्यूटी भी है. जिसे हर मां को भूख और नींद गंवा कर पूरा करना होता है. हालांकि हर मां खुशी खुशी इस काम के लिए तैयार होती है. परेशानी तो तब होती है जब हर तीसरे महीने बच्चों के दूध पीने की आदत में बदलाव आ जाता है. बमुश्किल एक आदत के  साथ एडजस्टमेंट होता नहीं है कि नया तरीका अपनाने की नौबत आ जाती है. हर ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली मां को ये जान लेना जरूरी है कि ब्रेस्ट फीडिंग की चार अलग अलग स्टेज होती हैं. हर स्टेज पर बच्चा कुछ नया सीखता है जिसके साथ मां को एडजस्ट करना पड़ता है.

ब्रेस्टफीडिंग में इन चीर स्टेज से गुजरना पड़ता है हर मां को-

1. पहली स्टेज- न्यू बोर्न को दूध पिलाना-
ब्रेस्टफीडिंग की ये पहली स्टेज है. जब नए नए बच्चे को दूध पीना सिखाना बड़ा चैलेंज होता है. नवजात का सिर्फ एक काम होता है. सोना,  जगकर दूध पीना, सोना, जगकर दूध पीना. बस यही सिलसिला चलता रहता है. बीच बीच में डायपर बदलने की जिम्मेदारी आपकी होती है. इस वक्त में बच्चे के सोने जागने के साथ अपना टाइम एडजस्ट करना जरूरी होता है. 

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2. दूसरी स्टेज- तीन से छह माह-
ये दूसरी स्टेज है जब आपके नन्हें बच्चे दुनिया को पहचानना सीख जाते हैं. उन्हें ये अहसास होने लगता है कि इस दुनिया में कुछ आवाजे हैं कुछ शक्ले हैं. दुनिया से ये दोस्ती मां पर बहुत भारी पड़ती है. हर आवाज के साथ दूध पीते पीते बच्चा डिस्ट्रेक्ट हो जाता है. नतीजा ये होता है कि फिडिंग टाइम बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. इस स्टेज में दूध पिलाने का ऐसा समय तय किया जाना चाहिए जब आस पास कम आवाजें हो. जिससे बच्चों का ध्यान न भटके. 

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3. तीसरी स्टेज-7 से 12 महीने-
इस उम्र के बच्चे या तो क्रोलिंग करने लगते हैं या फिर चलने लगते हैं. ऐसे बच्चों को खाने पीने से कोई मतलब नहीं रह जाता. उनका पेट भरना मां की गरज हो जाती है. इस अवस्था में फीडिंग कराना बहुत मुश्किल होता है. गनीमत ये है कि इस वक्त तक बच्चा ऊपर की डाइट पर आ जाता है. इस अवस्था में ऑन डिमांड ब्रेस्टफीडिंग के लिए हमेशा तैयार रहें. हालांकि ऊपर  की डाइट से काम चल रहा हो तो बहुत फोर्स करके फीडिंग न करवाएं. 

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4. चौथी स्टेज- एक साल  के बाद-
एक साल के बाद बच्चे की ईटिंग और फीडिंग हैबिट में काफी अंतर आता है. अधिकांश बच्चों की डाइट बढ़ जाती है. साथ ही वो एक बार फिर ब्रेस्टफीडिंग करने लगते हैं. हालांकि ऐसा सबके साथ नहीं होता लेकिन ज्यादातर केस में ऐसा ही होता है. इस स्टेज में अपनी डाइट पर बहुत ध्यान दें. क्योंकि जब आपका पेट पूरा भरा होगा और पोषण पूरा होगा तभी आप बच्चे का पेट भर सकेंगी. इस स्टेज पर ये कोशिश भी करें कि बच्चों को ज्यादा से ज्याद ऊपर की डाइट दें. जिससे उनका पेट भरा रहे.

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अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.

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