साधक रविवार को इन विशेष मंत्रों से करते हैं ग्रहों-नक्षत्रों के स्वामी सूर्य की स्तुति

हिन्दू वैदिक और पौराणिक आख्यानों में कहा गया है कि सूर्य समस्त जीव-जगत के आत्मस्वरूप हैं. इन्हीं से सब कुछ उत्पन्न हुआ है अर्थात वे सृष्टि के आदि-कारण हैं.

साधक रविवार को इन विशेष मंत्रों से करते हैं ग्रहों-नक्षत्रों के स्वामी सूर्य की स्तुति

आदिकाल से प्रायः सभी सभ्यताओं और धर्मों में सूर्य पूजा को विशेष स्थान मिला है. जहां प्राचीन उपासकों ने सूर्य को केवल प्रकाश देनेवाला ही नहीं माना है, बल्कि इसके तेज (चमक) से ज्ञान-प्राप्ति, निरंतर गति से कर्मशीलता, पथ और दिशा से अनुशासन की प्रेरणा ली है, वहीं धार्मिक दृष्टि से सूर्य उपासना को निरोगी जीवन के साथ यश, सम्मान व प्रतिष्ठा देने वाली मानी गई है. हिन्दू वैदिक और पौराणिक आख्यानों में कहा गया है कि सूर्य समस्त जीव-जगत के आत्मस्वरूप हैं. इन्हीं से सब कुछ उत्पन्न हुआ है अर्थात वे सृष्टि के आदि-कारण हैं.
 
ज्योतिषशास्त्र में सूर्य को सभी ग्रहों और नक्षत्रों का स्वामी माना गया है. इनकी गति उत्तरायण और दक्षिणायण गति से सम्पूर्ण पृथ्वी प्रभावित होती है. उल्लेखनीय है कि हिन्दू पंचांग में सप्ताह का प्रथम दिन रविवार सूर्य को समर्पित है और सूर्यसाधक इस दिन उनकी विशेष आराधना करते हैं. यहां प्रस्तुत है हिन्दू धर्मग्रंथों से कुछ चुनींदा सूर्य आराधना, पूजा और ध्यान मंत्र जो सूर्यसाधकों में विशेष प्रचलित है.
 
1.
श्रीसूर्य मंत्र
आ कृष्णेन् रजसा वर्तमानो निवेशयत्र अमतं मर्त्य च।
हिरणययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन॥

2.
सूर्य अर्घ्य मंत्र
ॐ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर: ॥
ॐ सूर्याय नम:, ॐ आदित्याय नम:, ॐ नमो भास्कराय नम:।
अर्घ्य समर्पयामि॥

3.
सूर्य गायत्री मंत्र
ॐ आदित्याय विद्महे मार्तण्डाय धीमहि तन्न सूर्य: प्रचोदयात्।
4.
सूर्य उपासना मंत्र
ॐ जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
तमो रि सर्वपषपघ्नं सूर्यमषवषह्याम्यहम्॥

5.
सूर्य बीज मंत्र
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:।
 

6.
सूर्य जाप मंत्र
ॐ ह्रीं घृणि सूर्य आदित्य श्रीं ॐ।
7.
सूर्य नमस्कार के 12 मंत्र
ॐ सूर्याय नम:। ॐ भास्कराय नम:। ऊं रवये नम:। ऊं मित्राय नम:। ॐ भानवे नम:। ॐ खगय नम:। ॐ पुष्णे नम:। ॐ मारिचाये नम:। ॐ आदित्याय नम:। ॐ सावित्रे नम:। ॐ आर्काय नम:। ॐ हिरण्यगर्भाय नम:।
8.
सूर्य ध्यान मंत्र
ध्येय सदा सविष्तृ मंडल मध्यवर्ती।
नारायण: सर सिंजासन सन्नि: विष्ठ:॥
केयूरवान्मकर कुण्डलवान किरीटी।
हारी हिरण्यमय वपुधृत शंख चक्र॥
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाधुतिम्।
तमोहरि सर्वपापध्‍नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्॥
सूर्यस्य पश्य श्रेमाणं योन तन्द्रयते।
चरश्चरैवेति चरेवेति!

 
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