Uttarakhand Glacier: उत्तराखंड (Uttarakhand) के जोशीमठ (Joshimath) में प्रकृति का कहर देखने को मिला है. चमोली जिले के तपोवन इलाके में रविवार को ग्लेशियर फटने (Glacier burst) भारी तबाही हुई है. जिसके कारण धौलीगंगा नदी में बाढ़ आ गई है. पानी तेजी से आस पास इलाकों में फैल गया है.
#WATCH| Uttarakhand: ITBP personnel approach the tunnel near Tapovan dam in Chamoli to rescue 16-17 people who are trapped.
— ANI (@ANI) February 7, 2021
(Video Source: ITBP) pic.twitter.com/DZ09zaubhz
वहीं ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट को नुकसान पहुंचने की खबर है. राज्य में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है और रेस्क्यू टीम को मौके पर भेजा गया है. आपको बता दें, ये तबाही साल 2013 केदारनाथ त्रासदी की याद दिला दी. वहीं लोगों के मन में सबसे पहला सवाल ये उठ रहा है आखिर ये ग्लेशियर कैसे टूटा, मौसम विभाग को इसकी जानकारी क्यों नहीं हुई, वहीं ग्लेशियर टूटने की आखिर क्या वजह होती है. आइए जानते हैं इन सभी सवालों के जवाब.
कितने प्रकार के होते हैं ग्लेशियर
ग्लेशियर बर्फ के एक जगह जमा होने के कारण बनता है. ये दो प्रकार के होते हैं. पहला अल्पाइन ग्लेशियर और दूसरा आइस शीट्स. जो ग्लेशियर पहाड़ों पर होते हैं वह अल्पाइन कैटेगरी में आते हैं.
#WATCH | Water level in Dhauliganga river rises suddenly following avalanche near a power project at Raini village in Tapovan area of Chamoli district. #Uttarakhand pic.twitter.com/syiokujhns
— ANI (@ANI) February 7, 2021
बता दें, पहाड़ों पर ग्लेशियर टूटने की कोई एक वजह नहीं होती है. इसकी कई वजहें हो सकती हैं. ये ग्लेशियर गुरुत्वाकर्षण और ग्लेशियर के किनारों पर टेंशन बढ़ने की वजह से टूट सकते हैं.
आपको बता दें, ग्लेशियर का ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बर्फ पिघलने सकती है, इसके साथ ही ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटकर अलग हो सकता है. जब ग्लेशियर से बर्फ का कोई टुकड़ा अलग होता है तो उसे काल्विंग कहते हैं. हालांकि अभी ये साफ नहीं हुआ है कि उत्तराखंड में ग्लेशियर के टूटने का क्या कारण है.
ग्लेशियर बाढ़ आने का क्या है कारण
सबसे पहले आपको बता दें, ग्लेशियर से टूटने और फटने के कारण आने वाली बाढ़ का नतीजा काफी भयानक होता है. ऐसा माना जाता है ये स्थिति उस समय पैदा होती है जब ग्लेशियर के भीतर ड्रेनेज ब्लॉक होती है और फिर पानी निकलने का रास्ता तलाश लेता है.
ऐसे में जब पानी भारी मात्रा में ग्लेशियर के बीच से बहता है तो बर्फ पिघलने की गति में तेजी आ जाती है. आमतौर पर ग्लेशियर की बर्फ धीरे- धीरे पिघलती है, लेकिन बीच से पानी बहने के कारण बर्फ तेजी से पिघलने लगती है. ऐसे में धीरे- धीरे पानी निकलने का रास्ता बड़ा होता जाता है और पानी के बहाव में तेजी आने लगती है, इसी के साथ पानी के साथ बर्फ के टूकडे़ भी पिघलकर बहने लगती है. इंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के अनुसार, इसे आउटबर्स्ट फ्लड (Outburst flood) कहा जाता है. ये बाढ़ आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में आती है.
आपको बता दें, कुछ ग्लेशियर हर साल टूटते हैं तो कुछ दो या तीन साल के अंतर में टूटते हैं. वहीं कुछ ऐसे ग्लेशियर भी होते हैं जिनका अंदाजा लगाना नामुमकीन होता है कि वह कब टूट सकते हैं.
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