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This Article is From Jan 18, 2016

2 रु प्रति पेज के हिसाब से उत्तर पुस्तिकाएं उपलब्ध कराएं विश्वविद्यालय: CIC

2 रु प्रति पेज के हिसाब से उत्तर पुस्तिकाएं उपलब्ध कराएं विश्वविद्यालय: CIC
प्रतीकात्मक तस्वीर
नयी दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा प्रति उत्तर पुस्तिका  750 रुपए शुल्क लगाने को खारिज करते हुए केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने व्यवस्था दी है कि विश्वविद्यालय और परीक्षा निकाय मूल्यांकित उत्तर पुस्तिका की प्रतियां देने के लिए दो रुपए प्रति पेज से अधिक नहीं वसूल सकते।

'समानता के अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन'
एक कड़े आदेश में सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने आरटीआई कानून के तहत उत्तर पुस्तिकाएं प्रदान करने के लिए 750 रुपए का ऊंचा शुल्क लगाकर विद्यार्थियों की दो श्रेणियां बना दी हैं, एक जो उत्तर पुस्तिका लेने के लिए 750 का भुगतान कर सकती हैं और दूसरी श्रेणी जो यह राशि भुगतान नहीं कर सकती, यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत दिए गए समानता के अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के आरटीआई नियमों का हवाला देते हुए आचार्युलू ने कहा कि उसने इस पारदर्शिता कानून के तहत मांगी गयी उत्तर पुस्तिकाओं की प्रतियों के लिए उनका इस्तेमाल नहीं किया और वह विद्यार्थी से उत्तर पुस्तिकाओं की प्रतियों के लिए ऊंचा मूल्य तथा अन्य दस्तावेजों के लिए महज दो रुपए प्रति पन्ने मांग कर भेदभाव नहीं कर सकता।

उन्होंने कहा, ‘‘यदि हम यह दलील मान लेते हैं कि प्रतिवादी प्राधिकार (दिल्ली विश्वविद्यालय) अपने नियम एवं विनियम बनाने के लिए स्वायत्त एवं सक्षम है तो भी प्राधिकार को सूचना तक पहुंच सीमित करने का अधिकार नहीं हैं क्योंकि इसकी गारंटी तो आरटीआई कानून में है।’’ 

'पांच उत्तर पुस्तिकाओं के मांगे 3750 रुपए'
आचार्युलू दिल्ली विश्वविद्यालय के विद्यार्थी अब्ने इंगटी की शिकायत पर सुनवाई कर रहे हैं जिसने आरटीआई कानून के तहत उत्तर पुस्तिकाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रति उत्तर पुस्तिका 750 रुपए का शुल्क लगाने को चुनौती दी है। इंगटी से पांच प्रश्नपत्रों की उत्तर पुस्तिकाएं हासिल करने के लिए 3750 रुपए देने को कहा गया था। उन्होंने कहा कि उन्हें इंगटी की इस बात में दम नजर आता है कि अतार्किक दाम और समय की बंदिश लगाना विद्यार्थियों को उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर सूचना से पूर्णत: वंचित करने जैसा होगा।

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय या कोई अन्य प्राधिकार विद्यार्थियों एवं नागरिकों के कानूनी एवं संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करने के लिए अधीनस्थ नियम बनाने के लिए अपने प्राधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकता है।

'सूचना से वंचित कर रहा है विश्वविद्यालय'
आचार्युलू ने कहा, ‘‘यह बड़ी दुखद बात है कि विश्वविद्यालय जैसा शिक्षण संस्थान मूल तथ्य को ध्यान में रखता है और वह उंची कीमत लगाकर विद्यार्थियों को सूचना से वंचित कर रहा है जिसका मतलब है कि यदि आप इतना नहीं खर्च कर सकते तो आपको सूचना नहीं मिल सकती।’’ उनके अनुसार साढ़े सात सौ रूपए लेना आरटीआई कानून की धारा 3, 6, 7 का उल्लंघन जैसा है।

उन्होंने कहा, ‘‘शिक्षा का मंदिर खर्च सामर्थ्य के आधार पर सूचना पाने के अधिकार के सिलसिले में विद्यार्थियों के बीच भेद नहीं कर सकता।’’ उन्होंने कहा कि उत्तर पुस्तिका की प्रति हासिल करने के लिए 750 रुपए प्रति उत्तर पुतिस्का की ऊंची कीमत और यह शर्त कि अपीलकर्ता को परीक्षा परिणाम घोषित होने के 61 दिन बाद और 75 वें दिन से पहले संपर्क करना, उत्तर पुस्तिका हासिल करने के अधिकार को गैर तार्किक ढंग से प्रतिबंधित कर देगा।

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