NEP 2020: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने सोमवार को कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) को लागू करने में ‘‘अधिकतम ल चीलापन'' अपनाना होगा और इस बारे में सभी पक्षों की राय और सवालों को खुले मन से सुना जा रहा है. उन्होंने कहा कि शिक्षा नीति किसी सरकार की नीति नहीं बल्कि देश की नीति होती है. पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा कि नीति देश के संघीय ढांचे को कमजोर करती है और फिलहाल उनके राज्य में लागू नहीं की जाएगी. वहीं दिल्ली के उनके समकक्ष मनीष सिसोदिया ने दावा किया कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) में इसे लागू करने का खाका नहीं है और बेहतर योजना की जरूरत है, ताकि यह केवल अद्भुत विचार बनकर नहीं रह जाए.
गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (NEP 2020) को जुलाई में मंजूरी दी थी और यह 34 साल पहले यानी 1986 में बनी शिक्षा नीति का स्थान लेगी. इसका लक्ष्य भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाने के लिए स्कूली और उच्च शिक्षा में परिवर्तनकारी सुधार का रास्ता साफ करना है. उच्च शिक्षा में बदलाव में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की भूमिका विषय पर राज्यपालों के सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, " हमें सामूहिक रूप से सभी आशंकाओं को दूर करना होगा. जिस प्रकार के लचीली दृष्टि लेकर यह नीति आई है, उसी प्रकार अधिकतम लचीलापन हम सभी को भी इसे लागू को लेकर भी दिखाना होगा.''
इस सम्मेलन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों के शिक्षा मंत्री, कुलपति तथा राज्यपालों ने हिस्सा लिया. राष्ट्रपति ने कहा कि 1968 की शिक्षा नीति से लेकर इस शिक्षा नीति तक, एक स्वर से निरंतर यह स्पष्ट किया गया है कि केंद्र व राज्य सरकारों को मिलकर सार्वजनिक शिक्षा के क्षेत्र में जीडीपी के छह प्रतिशत निवेश का लक्ष्य रखना चाहिए. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति केवल एक नीतिगत दस्तावेज नहीं है, बल्कि भारत के शिक्षार्थियों एवं नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिबिंब है और यह 21वीं सदी की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं के अनुरूप देश के लोगों, विशेषकर युवाओं को आगे ले जाने में सक्षम होगी. प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षा नीति किसी सरकार की नीति नहीं बल्कि देश की नीति होती है.
मोदी ने कहा कि जब किसी भी प्रणाली में इतने व्यापक बदलाव होते हैं और एक नई व्यवस्था बनाने की तरफ हम बढ़ते हैं, तब कुछ आशंकाएं होना स्वाभाविक ही हैं. हम इन सभी सवालों का जवाब देने के लिए काम कर रहे हैं. मोदी ने उनसे अनुरोध किया कि नई शिक्षा नीति पर 25 सितंबर से पहले विश्वविद्यालयों में डिजिटल सम्मेलन करें. उन्होंने कहा कि यह शिक्षा नीति पूरे देश से प्राप्त सम्मति पर आधारित है, इसलिए गांव के शिक्षक से लेकर शिक्षाविद तक ने इसका स्वागत किया है.
मोदी ने कहा, ‘‘ हम सभी का यह सामूहिक दायित्व है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी-2020) की इस भावना को हम अक्षरश: लागू कर सकें. मेरा आप सभी से विशेष आग्रह है कि 25 सितंबर से पहले अपने राज्यों, केन्द्र शासित प्रदेशों की विश्विवद्यालयों में ज्यादा से ज्यादा इस प्रकार के डिजिटल सम्मेलन आयोजित किए जाएं.'' उन्होंने कहा कि जब शुरूआती स्तर पर ही बच्चों को उनकी संस्कृति, भाषा, परंपरा से जोड़ा जाएगा तो शिक्षा अपने-आप ही प्रभावी होगी, सहज होगी और बालमन उससे खुद को जुड़ा हुआ पाएगा. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सही मायने में बिना दबाव के, बिना अभाव के और बिना प्रभाव के सीखने के लोकतांत्रिक मूल्यों को शिक्षा व्यवस्था का हिस्सा बनाया गया है. मिसाल के तौर पर संकाय को लेकर जो बच्चों पर दबाव रहता था, वो अब हटा दिया गया है.
नई शिक्षा नीति की आलोचना करते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि इस नीति को बनाने में सहकारी संघवाद की भावना को चोट पहुंचायी गयी है. उन्होंने कहा, ‘‘नई शिक्षा नीति निजीकरण एवं व्यापारीकरण को बढ़ावा दे रही है जिससे अवसर की समानता के मौलिक अधिकार पर आघात होगा. समवर्ती सूची का विषय होने के बाद भी केंद्र सरकार ने इसे बनाने से पहले राज्यों से इस सम्बन्ध में बात नहीं की. इसे लागू करना सहकारी संघवाद की भावना को चोट पहुंचाना है."
बंगाल के शिक्षा मंत्री चटर्जी ने शास्त्रीय भाषाओं की सूची में बांग्ला को शामिल नहीं करने के केंद्र के फैसले पर विरोध जताया. उन्होंने कहा कि फिलहाल राज्य में एनईपी लागू करने का कोई सवाल नहीं है. इस विषय पर सभी पक्षों के साथ और विचार-विमर्श की जरूरत है. हमने एनईपी के कुछ पहलुओं पर अपनी आपत्ति जताई है जिन्हें पश्चिम बंगाल को विश्वास में लिये बिना तैयार किया गया है.'' उन्होंने पत्रकारों से कहा, ‘‘ये पहलू देश के संघीय ढांचे और राज्यों की भूमिका को कमजोर करते हैं.''
दिल्ली में शिक्षा मंत्रालय का प्रभार संभाल रहे उपमुख्यमंत्री सिसोदिया ने कहा कि ‘‘नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसके लागू करने की कार्ययोजना की कमी है." सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले सिसोदिया ने कहा, "इस नीति को लागू करने के लिए सावधानीपूर्वक योजना बनानी चाहिए ताकि यह केवल अद्भुत विचार बनकर नहीं रह जाए. राष्ट्रीय शिक्षा नीति को विचारों तक सीमित करने की जगह अमल में लाना जरूरी है.''
दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने मौजूदा उच्च शिक्षा व्यवस्था के समक्ष चुनौतियों के विषय पर अपने संबोधन में नई शिक्षा नीति 2020 की सराहना करते हुए इसे समग्र और भविष्यवादी और प्रभावी बताया. मोदी ने कहा कि चाहें केंद्र हो या राज्य, सरकारों की शिक्षा नीति और व्यवस्था बनाने में भूमिक होती है, लेकिन यह भी सच्चाई है कि शिक्षा नीति तैयार करने में उनका न्यूनतम हस्तक्षेप और प्रभाव होना चाहिए . उन्होंने कहा कि शिक्षा नीति भी कौन सी सरकार में है, किसकी सरकार है, कौन बैठा है, कौन नहीं बैठा है, उसके आधार पर नहीं चलती है, शिक्षा नीति देश की ही नीति है. प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति सिर्फ पढ़ाई-लिखाई के तौर-तरीकों में ही बदलाव लाने के लिए नहीं है. यह नीति 21वीं सदी के भारत के सामाजिक और आर्थिक जीवन को नई दिशा देने वाली है.
उन्होंने कहा, ‘‘ यह नीति आत्मनिर्भर भारत के संकल्प और सामर्थ्य को आकार देने वाली है. ज़ाहिर है, इस बड़े संकल्प के लिए हमारी तैयारियां, हमारी जागरूकता भी उतनी ही बड़ी होनी चाहिए.'' उन्होंने कहा कि नई नीति में पहुंच और मूल्यांकन को लेकर भी व्यापक सुधार किए गए हैं. इसमें हर छात्र को सशक्त बनाने का रास्ता दिखाया गया है. सम्मेलन में राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने सुझाव दिया कि नई नीति में कंप्यूटर साइंस और कृषि को शामिल करने से उच्च शिक्षा और रोजगार उन्मुख हो जाएगा. असम के राज्यपाल जगदीश मुखी ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन का रोडमैप सुझाने के लिए कुछ विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की एक समिति गठित की है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं