नई दिल्ली:
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि विश्वविद्यालयों और अकादमिक संस्थानों को निर्बाध बौद्धिक बहस के लिए पूर्वाग्रह, हिंसा या किसी कट्टर सिद्धांत से अवश्य ही मुक्त होना होगा. अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन के विदाई सत्र में मुखर्जी ने कहा कि नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला के प्राचीन शिक्षण केंद्रों ने छात्रों और शिक्षकों के रूप में दुनिया भर से मेधावी लोगों को आकषिर्त किया.उन्होंने नालंदा जिले में राजगीर के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन केंद्र में कहा कि ये सब महज शिक्षण के स्थान नहीं हैं बल्कि चार सभ्यताओं..भारतीय, फारसी, यूनानी और चीनी के संगम हैं.
उन्होंने कहा कि इन विश्वविद्यालयों का गुण यह था कि वहां खुले दिमाग से स्वतंत्र चर्चा होती थी. आचार्यों ने किसी कथन को स्वीकार करने और उसका अनुसरण करने से पहले छात्रों को सवाल करने के लिए प्रोत्साहित किया था.
मुखर्जी ने कहा कि यदि विश्वविद्यालय में स्वतंत्र माहौल नहीं होगा तो अकादमिक संस्थान में हम अपने छात्रों को किस तरह की सबक दे सकते हैं. शिक्षा का मतलब है कि मस्तिष्क का विकास, शिक्षकों और सहपाठियों से लगातार संवाद हो. पूर्वाग्रह, रोष, हिंसा, अन्य सिद्धांतों से मुक्त माहौल अवश्य होना चाहिए. बौद्धिक विचारों के मुक्त प्रवाह के लिए अवश्य ही सौहार्द होना चाहिए.
आतंकवाद के बारे में राष्ट्रपति ने कहा कि यह सिर्फ एक हरकत नहीं है, बल्कि यह एक मानसिक पथभ्रष्टता और विकृत मनोदशा है. राष्ट्रों को एकजुट हो कर अवश्य ही सोचना चाहिए कि इस बुराई से कैसे निपटा जाए. उन्होंने अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा बौद्ध स्थलों को नष्ट किए जाने का जिक्र करते हुए कहा कि यह समस्या आतंकवाद व्यापक है यह सिर्फ साथी नागरिकों को चोट पहुंचाने तक सीमित नहीं है बल्कि यह मूल्यों, धरोहर को और पीढ़ियों की बनाई परिसंपत्ति को नष्ट कर रहा है .
उन्होंने कहा कि इन विश्वविद्यालयों का गुण यह था कि वहां खुले दिमाग से स्वतंत्र चर्चा होती थी. आचार्यों ने किसी कथन को स्वीकार करने और उसका अनुसरण करने से पहले छात्रों को सवाल करने के लिए प्रोत्साहित किया था.
मुखर्जी ने कहा कि यदि विश्वविद्यालय में स्वतंत्र माहौल नहीं होगा तो अकादमिक संस्थान में हम अपने छात्रों को किस तरह की सबक दे सकते हैं. शिक्षा का मतलब है कि मस्तिष्क का विकास, शिक्षकों और सहपाठियों से लगातार संवाद हो. पूर्वाग्रह, रोष, हिंसा, अन्य सिद्धांतों से मुक्त माहौल अवश्य होना चाहिए. बौद्धिक विचारों के मुक्त प्रवाह के लिए अवश्य ही सौहार्द होना चाहिए.
आतंकवाद के बारे में राष्ट्रपति ने कहा कि यह सिर्फ एक हरकत नहीं है, बल्कि यह एक मानसिक पथभ्रष्टता और विकृत मनोदशा है. राष्ट्रों को एकजुट हो कर अवश्य ही सोचना चाहिए कि इस बुराई से कैसे निपटा जाए. उन्होंने अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा बौद्ध स्थलों को नष्ट किए जाने का जिक्र करते हुए कहा कि यह समस्या आतंकवाद व्यापक है यह सिर्फ साथी नागरिकों को चोट पहुंचाने तक सीमित नहीं है बल्कि यह मूल्यों, धरोहर को और पीढ़ियों की बनाई परिसंपत्ति को नष्ट कर रहा है .
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