19th कांग्रेस में प्रेसिडेंट शी जिनपिंग की विचारधारा को कॉस्टीट्यूशन में शामिल कर लिया.
नई दिल्ली:
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) ने 19th कांग्रेस में प्रेसिडेंट शी जिनपिंग की विचारधारा (Thought) को कॉस्टीट्यूशन में शामिल कर लिया. उन्हें चीन के पहले कम्युनिस्ट नेता और फादर ऑफ नेशन कहे जानेवाले माओत्से तुंग के बराबर दर्जा दिया गया है. यानी वो मौजूदा वक्त में चीन के सबसे ताकतवर नेता बन गए हैं. कांग्रेस में सीपीसी के सभी 2 हजार 287 मेंबर्स ने कॉन्स्टीट्यूशन में ‘शी जिनपिंग थॉट' को शामिल करने के फेवर में वोट दिया. विरोध में एक भी वोट नहीं पड़ा. शी जिनपिंग का बचपन गरीबी में बीता है. वो खेतों में मेहनत कर सत्ता के शिखर पर पहुंचे हों. आज हम आपको बताने जा रहे हैं प्रेसिडेंट शी जिनपिंग के बारे ऐसी बातें जो बहुत कम लोग जानते हैं...
पढ़ें- चीन के स्कूलों में पढ़ाए जाएंगे राष्ट्रपति शी जिनपिंग के विचार
कभी किसानी करते थे शी जिनपिंग
पंद्रह बरस के लड़के शी जिनपिंग ने देहात में मुश्किल भरी जिंदगी की शुरुआत की थी. चीन के अंदरूनी इलाके में जहां चारों तरफ पीली खाइयां थीं, ऊंचे पहाड़ थे, वहां से जिनपिंग की जिंदगी की जंग शुरु हुई थी. जिस इलाके में जिनपिंग ने खेती-किसानी की शुरुआत की थी, वो गृह युद्ध के दौरान चीन के कम्युनिस्टों का गढ़ था.
पढ़ें- चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का सम्मेलन शुरू, शी जिनपिंग के राष्ट्रपति बने रहने पर होगा फैसला
येनान के लोग अपने इलाके को चीन की लाल क्रांति की पवित्र भूमि कहते थे. शी जिनपिंग की अपनी कहानी को काफी हद तक काट-छांटकर पेश किया जाता है. दिलचस्प बात ये है कि जहां चीन के तमाम अंदरूनी इलाकों का तेजी से शहरीकरण हो रहा है, वहीं राष्ट्रपति शी के गांव को जस का तस रखा गया है. कम्युनिस्ट पार्टी के भक्तों के लिए वो एक तीर्थस्थल है.
पढ़ें- ट्रंप का चीन दौरा ‘सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय कार्यक्रम’ : चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग
किसानों से सीखा जीने का सलीखा
1968 में चेयरमैन माओ ने फरमान जारी किया था कि लाखों युवा लोग शहर छोड़कर गांवों में जाएं. जहां उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. जहां उन्होंने किसानों और मजदूरों से वहां रहने का सलीखा सीखा. शी का कहना है कि आज वो जो कुछ भी हैं, वो उसी दौर की वजह से हैं. उनका किरदार उसी गुफा वाले दौर ने गढ़ा.
रखते थे पढ़ाई का शौक
साठ के दशक में चीन के गांवों की ज़िंदगी बहुत कठिन थी. बिजली नहीं हुआ करती थी. गांवों तक जाने का रास्ता भी पक्का नहीं होता था. खेती के लिए मशीनें भी नहीं थीं. उस दौर में शी ने खाद ढोने, बांध बनाने और सड़कों की मरम्मत का काम सीखा था. वो जिस गुफा में रहते थे, वहां कीड़े-मकोड़ों का डेरा होता था.
उस में वो ईंटों वाले बिस्तर पर तीन और लोगों के साथ सोया करते थे. उस वक्त खाने के लिए उन्हें दलिया, बन और कुछ सब्ज़ियां मिला करते थे. उनके एक किसान साथी लू होउशेंग ने बताया था कि भूख लगने पर ये कोई नहीं देखता था कि खाने में मिल क्या रहा है. रात में शी जिनपिंग अपनी गुफा में ढिबरी की रौशनी में पढ़ा करते थे. उन्हें पढ़ने का शौक था.
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कभी किसानी करते थे शी जिनपिंग
पंद्रह बरस के लड़के शी जिनपिंग ने देहात में मुश्किल भरी जिंदगी की शुरुआत की थी. चीन के अंदरूनी इलाके में जहां चारों तरफ पीली खाइयां थीं, ऊंचे पहाड़ थे, वहां से जिनपिंग की जिंदगी की जंग शुरु हुई थी. जिस इलाके में जिनपिंग ने खेती-किसानी की शुरुआत की थी, वो गृह युद्ध के दौरान चीन के कम्युनिस्टों का गढ़ था.
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येनान के लोग अपने इलाके को चीन की लाल क्रांति की पवित्र भूमि कहते थे. शी जिनपिंग की अपनी कहानी को काफी हद तक काट-छांटकर पेश किया जाता है. दिलचस्प बात ये है कि जहां चीन के तमाम अंदरूनी इलाकों का तेजी से शहरीकरण हो रहा है, वहीं राष्ट्रपति शी के गांव को जस का तस रखा गया है. कम्युनिस्ट पार्टी के भक्तों के लिए वो एक तीर्थस्थल है.
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किसानों से सीखा जीने का सलीखा
1968 में चेयरमैन माओ ने फरमान जारी किया था कि लाखों युवा लोग शहर छोड़कर गांवों में जाएं. जहां उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. जहां उन्होंने किसानों और मजदूरों से वहां रहने का सलीखा सीखा. शी का कहना है कि आज वो जो कुछ भी हैं, वो उसी दौर की वजह से हैं. उनका किरदार उसी गुफा वाले दौर ने गढ़ा.
रखते थे पढ़ाई का शौक
साठ के दशक में चीन के गांवों की ज़िंदगी बहुत कठिन थी. बिजली नहीं हुआ करती थी. गांवों तक जाने का रास्ता भी पक्का नहीं होता था. खेती के लिए मशीनें भी नहीं थीं. उस दौर में शी ने खाद ढोने, बांध बनाने और सड़कों की मरम्मत का काम सीखा था. वो जिस गुफा में रहते थे, वहां कीड़े-मकोड़ों का डेरा होता था.
उस में वो ईंटों वाले बिस्तर पर तीन और लोगों के साथ सोया करते थे. उस वक्त खाने के लिए उन्हें दलिया, बन और कुछ सब्ज़ियां मिला करते थे. उनके एक किसान साथी लू होउशेंग ने बताया था कि भूख लगने पर ये कोई नहीं देखता था कि खाने में मिल क्या रहा है. रात में शी जिनपिंग अपनी गुफा में ढिबरी की रौशनी में पढ़ा करते थे. उन्हें पढ़ने का शौक था.
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