Subhash Chandra Bose: आजाद हिंद बैंक ने एक लाख रुपये का नोट जारी किया था.
नई दिल्ली:
सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में 21 अक्टूबर 1943 को 'आजाद हिंद सरकार' का गठन हुआ था. आज 'Azad Hind Sarkar' की 75वीं वर्षगांठ है. सुभाष चंद्र बोस (Subhas Chandra Bose) ने आजाद हिंद फौज के कमांडर की हैसियत से भारत की अस्थायी सरकार बनायी, जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दी थी. सुभाष चंद्र बोस (Subhas Chandra Bose) का मानना था कि अंग्रेजों के मजबूत शासन को केवल सशस्त्र विद्रोह के जरिए ही चुनौती दी जा सकती है. 1921 में प्रशासनिक सेवा की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़कर देश की आजादी की लड़ाई में उतरे सुभाष चंद्र बोस को उनके उग्र विचारों के कारण देश के युवा वर्ग का व्यापक समर्थन मिला और उन्होंने आजाद हिंद फौज (Azad Hind Fauj) में भर्ती होने वाले नौजवानों को ‘‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा.'' का ओजपूर्ण नारा दिया. आजाद हिंद सरकार ने देश से बाहर अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और आजादी की लड़ाई में एक तरह से परोक्ष रूप से अहम भूमिका निंभाई थी. इसका नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस (Subhas Chandra Bose) कर रहे थे. जर्मनी से एक 'यू बॉट' से दक्षिण एशिया आए, फिर वहां से जापान गये. जापान से वें सिंगापुर आये जहां आजा़द हिन्द की आस्थाई सरकार की नींव रखी गयी. साल 1943 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में प्रातीय आजाद हिंद सरकार (Azad Hind Government) की स्थापना की थी. उस समय 11 देशों की सरकारों ने आजाद हिंद सरकार को मान्यता दी थी. उस सरकार ने कई देशों में अपने दूतावास भी खोले थे. इसके अलावा आजाद हिंद फौज (Azad Hind) ने बर्मा की सीमा पर अंग्रेजों के खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ी थी.
आजाद हिंद सरकार (Azad Hind Sarkar) में छपा था 1 लाख रुपये का नोट
आजाद हिंद सरकार की अपनी बैंक थी, जिसका नाम आजाद हिंद बैंक था. आजाद हिंद बैंक की स्थापना साल 1943 में हुई थी, इस बैंक के साथ दस देशों का समर्थन था. आजाद हिंद बैंक ने दस रुपये के सिक्के से लेकर एक लाख रुपये का नोट जारी किया था. एक लाख रुपये के नोट पर सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर छपी थी.
आजाद हिन्द फौज के लिए जारी हुए थे डाक टिकट
सुभाष चंद्र बोस ने जापान-जर्मनी की मदद से आजाद हिंद सरकार (Azad Hind Sarkar) के लिए नोट छपवाने का इंतजाम किया था. इतना ही नहीं नाजी जर्मनी ने आजाद हिन्द फौज के लिए कई डाकटिकट जारी किए थे, जिन्हें आजाद डाक टिकट कहा जाता है. वेर्नर और मारिया वॉन एक्सटर-हेडटलस ने इन डाक टिकटों को डिजाइन किया था. ये टिकट आज भारतीय डाक के स्वतंत्रता संग्राम डाक टिकटों में शामिल हैं.
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कैसे हुई थी 'आजाद हिंद फौज' (Azad Hind Fauj) की स्थापना?
साल 1942 में जापान के टोक्यो में रासबिहारी बोस ने 'आजाद हिंद फौज' की स्थापना की थी. 'आजाद हिंद फौज' (Azad Hind Fauj) की स्थापना का उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना था. जापान ने 'आजाद हिंद फौज' के निर्माण ने अपना सहयोग दिया था. बाद में सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज की कमान संभाल ली थी. उन्होंने 1943 में टोक्यो रेडियो से घोषणा की, 'अंग्रेजों से यह आशा करना बिल्कुल व्यर्थ है कि वे स्वयं अपना साम्राज्य छोड़ देंगे, हमें भारत के भीतर और बाहर से स्वतंत्रता के लिए स्वयं संघर्ष करना होगा.'
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आजाद हिंद सरकार (Azad Hind Sarkar) में छपा था 1 लाख रुपये का नोट
आजाद हिंद सरकार की अपनी बैंक थी, जिसका नाम आजाद हिंद बैंक था. आजाद हिंद बैंक की स्थापना साल 1943 में हुई थी, इस बैंक के साथ दस देशों का समर्थन था. आजाद हिंद बैंक ने दस रुपये के सिक्के से लेकर एक लाख रुपये का नोट जारी किया था. एक लाख रुपये के नोट पर सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर छपी थी.
1 लाख रुपये का नोट जिस पर सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर छपी थी.
आजाद हिन्द फौज के लिए जारी हुए थे डाक टिकट
सुभाष चंद्र बोस ने जापान-जर्मनी की मदद से आजाद हिंद सरकार (Azad Hind Sarkar) के लिए नोट छपवाने का इंतजाम किया था. इतना ही नहीं नाजी जर्मनी ने आजाद हिन्द फौज के लिए कई डाकटिकट जारी किए थे, जिन्हें आजाद डाक टिकट कहा जाता है. वेर्नर और मारिया वॉन एक्सटर-हेडटलस ने इन डाक टिकटों को डिजाइन किया था. ये टिकट आज भारतीय डाक के स्वतंत्रता संग्राम डाक टिकटों में शामिल हैं.
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साल 1942 में जापान के टोक्यो में रासबिहारी बोस ने 'आजाद हिंद फौज' की स्थापना की थी. 'आजाद हिंद फौज' (Azad Hind Fauj) की स्थापना का उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना था. जापान ने 'आजाद हिंद फौज' के निर्माण ने अपना सहयोग दिया था. बाद में सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज की कमान संभाल ली थी. उन्होंने 1943 में टोक्यो रेडियो से घोषणा की, 'अंग्रेजों से यह आशा करना बिल्कुल व्यर्थ है कि वे स्वयं अपना साम्राज्य छोड़ देंगे, हमें भारत के भीतर और बाहर से स्वतंत्रता के लिए स्वयं संघर्ष करना होगा.'
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