महाराष्ट्र के मेडिकल कॉलेज को स्टूडेंट्स को देने होंगे 20-20 लाख रुपये
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र स्थित एक मेडिकल कॉलेज को निर्देश दिया है कि वह उन सभी 19 स्टूडेंट्स को 20-20 लाख रुपये का जुर्माना दे जिन्हें 6 साल पहले एडमिशन देने से अवैध और गलत तरीके से मना कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेज से कहा कि वह तीन महीने के अंदर प्रवेश नियंत्रण समिति (पी एन एस) के पास पैसा जमा करे. पी एन एस राज्य सरकार द्वारा गठित एक समिति है जो मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन और इनके नियमन से जुड़े काम देखती है. कॉलेज ने 19 स्टूडेंट्स को 2012-13 शैक्षिक वर्ष में एम बी बी एस और बी डी एस कोर्सेज में एडमिशन देने से अवैध और गलत तरीके से मना कर दिया था.
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न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति यू यू ललित की पीठ ने डा. उल्हास पाटिल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल , जलगांव महाराष्ट्र को मान्यता रद्द किए जाने से बख्श दिया और बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ के आदेश को कमतर तथा दरकिनार कर दिया क्योंकि संस्थान स्टूडेंट्स को जुर्माना अदा करने को सहमत हो गया.
पीठ ने कहा , ‘‘क्योंकि कॉलेज ने 19 स्टूडेंट्स को भुगतान करने की इच्छा जताई है , जिन्हें एडमिशन से वंचित कर दिया गया था, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि कई साल गुजर चुके हैं और बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स कॉलेज से पास हो चुके हैं तथा वहां बहुत से स्टूडेंट्स शिक्षा अर्जित कर रहे हैं , ऐसे में एक बार अर्थ दंड लगाए जाने के बाद मान्यता और संबद्धता खत्म करना उचित नहीं होगा.’’
पीठ ने हालांकि स्पष्ट किया कि यदि पी एन एस के पास तीन महीने में जुर्माना जमा नहीं किया जाता है और सुप्रीम कोर्ट को अनुपालन रिपोर्ट दायर नहीं की जाती है तो सुप्रीम कोर्ट का 27 मार्च का आदेश जस का तस बरकरार रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च के अपने आदेश में कहा था कि संबंधित मेडिकल कॉलेज ने 19 योग्य छात्रों को दाखिला देने से अवैध और गलत तरीके से मना कर दिया और मुनाफाखोरी के लिए उनकी जगह कम योग्य स्टूडेंट्स को दाखिला दे दिया.
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कॉलेज ने यहां तक कि एम बी बी एस और बी डी एस पाठ्यक्रमों में छात्रों के ए़डमिशन के लिए पी एन एस द्वारा निर्धारित प्रक्रिया और कैलेंडर का भी उल्लंघन किया. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि कॉलेज एडमिशन से वंचित किए गए सभी 19 स्टूडेंट्स को 20- बीस लाख रुपये का जुर्माना प्रदान करे , कम योग्य स्टूडेंट्स के एडमिशन निरस्त किए जाएं , कॉलेज की मान्यता खत्म की जाए और कॉलेज के पदाधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने कम योग्य स्टूडेंट्स के ए़डमिशन निरस्त करने के हाई कोर्ट के आदेश को दरकिनार कर दिया.
ए़डमिशन से वंचित किए गए स्टूडेंट्स ने कलेक्टर , पी एन एस और अन्य संबंधित अधिकारियों से अनियमितताओं के बारे में शिकायत की थी और राहत के लिए हाई कोर्ट का द्वार भी खटखटाया था. कॉलेज ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
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पीठ ने कहा , ‘‘क्योंकि कॉलेज ने 19 स्टूडेंट्स को भुगतान करने की इच्छा जताई है , जिन्हें एडमिशन से वंचित कर दिया गया था, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि कई साल गुजर चुके हैं और बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स कॉलेज से पास हो चुके हैं तथा वहां बहुत से स्टूडेंट्स शिक्षा अर्जित कर रहे हैं , ऐसे में एक बार अर्थ दंड लगाए जाने के बाद मान्यता और संबद्धता खत्म करना उचित नहीं होगा.’’
पीठ ने हालांकि स्पष्ट किया कि यदि पी एन एस के पास तीन महीने में जुर्माना जमा नहीं किया जाता है और सुप्रीम कोर्ट को अनुपालन रिपोर्ट दायर नहीं की जाती है तो सुप्रीम कोर्ट का 27 मार्च का आदेश जस का तस बरकरार रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च के अपने आदेश में कहा था कि संबंधित मेडिकल कॉलेज ने 19 योग्य छात्रों को दाखिला देने से अवैध और गलत तरीके से मना कर दिया और मुनाफाखोरी के लिए उनकी जगह कम योग्य स्टूडेंट्स को दाखिला दे दिया.
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कॉलेज ने यहां तक कि एम बी बी एस और बी डी एस पाठ्यक्रमों में छात्रों के ए़डमिशन के लिए पी एन एस द्वारा निर्धारित प्रक्रिया और कैलेंडर का भी उल्लंघन किया. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि कॉलेज एडमिशन से वंचित किए गए सभी 19 स्टूडेंट्स को 20- बीस लाख रुपये का जुर्माना प्रदान करे , कम योग्य स्टूडेंट्स के एडमिशन निरस्त किए जाएं , कॉलेज की मान्यता खत्म की जाए और कॉलेज के पदाधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाए.
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