महात्मा गांधी और उनके गांधीवाद को पूरी दुनिया में पहचाना जाता है. जरा सोचिए, अगर हमारे देश में महात्मा गांधी जैसा कोई शख्स हुआ ही न होता तो भला क्या होता? दरअसल, गांधी जी के बिना हम अपने स्वाधीनता आंदोलन और भारत की कल्पना भी नहीं कर पाते हैं. लेकिन बैरिस्टर मोहनदास शायद कभी बापू या महात्मा गांधी न बन पाते यदि दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेज उन्हें अपमानित कर ट्रेन के बाहर न फेंकते. ये घटना आज से ठीक 128 साल पहले घटी थी. यूं कहा जा सकता है कि मोहनदास के महात्मा गांधी बनने का सफर बरसों पहले आज ही के दिन (7 जून) से शुरू हुआ.
वह 7 जून 1893 का दिन था. बैरिस्टर मोहनदास अपने क्लाइंट अब्दुल्ला सेठ का केस लड़ने के लिए डरबन से प्रिटोरिया ट्रेन से सफर कर रहे थे. उनके पास फर्स्ट क्लास का टिकट था. लेकिन कुछ गोरों ने उन्हें फिर भी ट्रेन के तीसरे दर्जे में जाने को कहा. जाहिर है कि गांधीजी ने इसका विरोध किया. नतीजा अगले स्टेशन पीटरमैरिट्सबर्ग में गांधीजी को ट्रेन बाहर फेंक दिया गया. इसी घटना ने गांधी जी को बुरी तरह से झकझोर कर रख दिया. इस घटना के बाद उन्होंने हर तरह के भेदभाव के खिलाफ लड़ने की ठानी. पहले दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ उन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी और फिर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को एक ऐसा नायक मिला जो पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गया.
क्या होता अगर उस दिन गांधीजी को ट्रेन के बाहर न फेंका जाता..? जाहिर है कि ये एक काल्पनिक प्रश्न है और अपनी समझ के अनुसार हर कोई इसका अलग अनुमान लगा सकता है. कहा जा सकता है कि इस घटना ने गांधी जी के अंदर पहले से ही मौजूद विचारों, देश और मानवता के लिए काम करने के लिए उनके समर्पण को बाहर ला दिया. या फिर कोई ये मानने के लिए भी स्वतंत्र है कि ये घटना न होती तो शायद भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का मुख्य नायक कोई और होता. लेकिन इतनी अवश्य है कि 7 जून 1893 को दक्षिण अफ्रीका के छोटे से स्टेशन पीटरमैरिट्सबर्ग के स्टेशन पर जो कुछ हुआ उसने हिन्दुस्तान के इतिहास में बहुत ही अहम भूमिका निभाई है.
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