नई दिल्ली:
दूसरों से पैसे निकलवाना कभी भी आसान नहीं होता और बात जब सैलरी बढ़वाने की हो तो खुद ही समझ लीजिए कि ये काम कितना मुश्किल होता होगा। ज्यादातर सैलरी क्लास लोग आज समय पर सैलरी न बढ़ने की समस्या से जूझ रहे हैं। कुछ लोग कई साल एक ही संस्था में सैलरी बढ़ने की आस में गुजार देते हैं, तो कुछ को अच्छी सैलरी न मिल पाने के कारण जॉब ही नहीं मिलती। ऐसे में सैलरी न बढ़ने की टेंशन से बाहर निकलना है तो आपको ये टिप्स जरूर अपनाने चाहिए...
पुरानी नौकरी से तोड़ें नाता
सैलरी क्लास व्यक्ति को अगर वाकई में सैलरी बढ़ानी है तो उसका सबसे अच्छा तरीका है पुरानी का दामन छोड़ किसी नई कंपनी के साथ नई पारी की शुरुआत करना। जब भी ऐसा समय आए की मार्केट की पोजीशन ठीक हो या फिर आपकी कंपनी सैलरी नहीं बढ़ा रही है तो आप जॉब स्विच करने के बारे में सोच सकते हैं। उदाहरण के तौर पर सोचिए अगर कोई व्यक्ति 10 साल में तीन नौकरियां बदलता है तो उसकी सैलरी आमतौर पर किसी एक कंपनी में ही 10 साल तक नौकरी करने वाले व्यक्ति से ज्यादा ही होगी।
ज्यादा पर्सनल न हों
जॉब हाइरिंग का लास्ट प्रोसेस सैलरी डिस्कशन पर ही खत्म होता है। इसलिए जब भी आप अपनी सैलरी डिस्कस करने के लिए जाएं, तो कभी भी डिस्कशन के दौरान ज्यादा पर्सनल न हों। कहने का मतलब ये है कि सैलरी को लेकर चर्चा के दौरान आपको 'मैं हमेशा सप्ताह के अंत तक काम करता हूं, या फिर मेरे पति की जॉब चली गई है, मुझे नौकरी की सख्त जरूरत है' जैसी दलीलों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। अगर आप ऐसा कुछ करते हैं तो नियोक्ता आपको जरूरतमंद समझेगा और कभी भी आपके टैलेंट के हिसाब से सैलरी नहीं देगा।
परफॉर्मेंस बेस्ड बोनस
कई बार ऐसा होता है कि एमप्लॉयर आपको नौकरी पर रखना तो चाहता है, लेकिन वह ये कहते हुए आपको मर्जी की सैलरी नहीं देता है 'हम इतना ही कर सकते हैं, हमारी कंपनी छोटी है'। ऐसी स्थिति में भी अगर आप नौकरी करना चाहते हैं तो सैलरी के लिहाज से आपको परफॉर्मेंस बेस्ड बोनस की बात करनी चाहिए। इसका मतलब ये है कि आप नियोक्ता से किसी टारगेट के बारे में चर्चा कर सकते हैं और उसके पूरा हो जाने पर अपनी सैलरी बढ़ाने की शर्त रख सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि अगर हायरिंग के दौरान नियोक्ता आपकी इस शर्त को मान लेता है तो इसे लिखित में लेना न भूलें।
चेहरे पर रखें मुस्कान
अगर आप अच्छी सैलरी चाहते हैं तो सैलरी को लेकर चर्चा के दौरान अपने ऊपर विश्वास रखें और साथ ही अपने चेहरे पर हल्की मुस्कान भी बनाए रखें। आपको कम्फर्ट में देख टेबल की दूसरी ओर बैठे नियोक्ता को भी ज्यादा कम्फर्ट महसूस होगा और शायद वो आपकी बात को ज्यादा अच्छे से भी समझे। इसलिए जब भी सैलरी की बात करें तो हमेशा अपने चेहरे पर आत्मविश्वास के साथ-साथ मुस्कान भी बनाएं रखें। इसके अलावा सैलरी को लेकर अपनी बात रखने के दौरान नियोक्ता के साथ आई-कॉन्टैक्ट भी आपके काम आता है।
बैकअप प्लान
सैलरी पर चर्चा के दौरान ये जरूरी नहीं है कि हर एक चीज परफेक्ट ही रहे। इसलिए अगर जरूरत पड़े तो आपको अपने स्टैंड पर बने रहना चाहिए और किसी बेहतर अवसर का इंतजार करना चाहिए। क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि जब आप सैलरी डिस्कशन के दौरान किसी बात के न बनने पर उठकर चले जाते हैं तो कंपनी का कॉल ही पलट कर आ जाता है। हालांकि इस फंडे को तभी अपनाना चाहिए जब आपके पास कोई बैकअप प्लान हो।
पुरानी नौकरी से तोड़ें नाता
सैलरी क्लास व्यक्ति को अगर वाकई में सैलरी बढ़ानी है तो उसका सबसे अच्छा तरीका है पुरानी का दामन छोड़ किसी नई कंपनी के साथ नई पारी की शुरुआत करना। जब भी ऐसा समय आए की मार्केट की पोजीशन ठीक हो या फिर आपकी कंपनी सैलरी नहीं बढ़ा रही है तो आप जॉब स्विच करने के बारे में सोच सकते हैं। उदाहरण के तौर पर सोचिए अगर कोई व्यक्ति 10 साल में तीन नौकरियां बदलता है तो उसकी सैलरी आमतौर पर किसी एक कंपनी में ही 10 साल तक नौकरी करने वाले व्यक्ति से ज्यादा ही होगी।
ज्यादा पर्सनल न हों
जॉब हाइरिंग का लास्ट प्रोसेस सैलरी डिस्कशन पर ही खत्म होता है। इसलिए जब भी आप अपनी सैलरी डिस्कस करने के लिए जाएं, तो कभी भी डिस्कशन के दौरान ज्यादा पर्सनल न हों। कहने का मतलब ये है कि सैलरी को लेकर चर्चा के दौरान आपको 'मैं हमेशा सप्ताह के अंत तक काम करता हूं, या फिर मेरे पति की जॉब चली गई है, मुझे नौकरी की सख्त जरूरत है' जैसी दलीलों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। अगर आप ऐसा कुछ करते हैं तो नियोक्ता आपको जरूरतमंद समझेगा और कभी भी आपके टैलेंट के हिसाब से सैलरी नहीं देगा।
परफॉर्मेंस बेस्ड बोनस
कई बार ऐसा होता है कि एमप्लॉयर आपको नौकरी पर रखना तो चाहता है, लेकिन वह ये कहते हुए आपको मर्जी की सैलरी नहीं देता है 'हम इतना ही कर सकते हैं, हमारी कंपनी छोटी है'। ऐसी स्थिति में भी अगर आप नौकरी करना चाहते हैं तो सैलरी के लिहाज से आपको परफॉर्मेंस बेस्ड बोनस की बात करनी चाहिए। इसका मतलब ये है कि आप नियोक्ता से किसी टारगेट के बारे में चर्चा कर सकते हैं और उसके पूरा हो जाने पर अपनी सैलरी बढ़ाने की शर्त रख सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि अगर हायरिंग के दौरान नियोक्ता आपकी इस शर्त को मान लेता है तो इसे लिखित में लेना न भूलें।
चेहरे पर रखें मुस्कान
अगर आप अच्छी सैलरी चाहते हैं तो सैलरी को लेकर चर्चा के दौरान अपने ऊपर विश्वास रखें और साथ ही अपने चेहरे पर हल्की मुस्कान भी बनाए रखें। आपको कम्फर्ट में देख टेबल की दूसरी ओर बैठे नियोक्ता को भी ज्यादा कम्फर्ट महसूस होगा और शायद वो आपकी बात को ज्यादा अच्छे से भी समझे। इसलिए जब भी सैलरी की बात करें तो हमेशा अपने चेहरे पर आत्मविश्वास के साथ-साथ मुस्कान भी बनाएं रखें। इसके अलावा सैलरी को लेकर अपनी बात रखने के दौरान नियोक्ता के साथ आई-कॉन्टैक्ट भी आपके काम आता है।
बैकअप प्लान
सैलरी पर चर्चा के दौरान ये जरूरी नहीं है कि हर एक चीज परफेक्ट ही रहे। इसलिए अगर जरूरत पड़े तो आपको अपने स्टैंड पर बने रहना चाहिए और किसी बेहतर अवसर का इंतजार करना चाहिए। क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि जब आप सैलरी डिस्कशन के दौरान किसी बात के न बनने पर उठकर चले जाते हैं तो कंपनी का कॉल ही पलट कर आ जाता है। हालांकि इस फंडे को तभी अपनाना चाहिए जब आपके पास कोई बैकअप प्लान हो।
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