7 जून की तारीख का भारत की अनमोल धरोहर ताज महल के साथ गहरा नाता है. इसी दिन मुगल बादशाह शाहजहां की पत्नी मुमताज महल का इंतकाल हुआ था. हालांकि, मुमताज महल के निधन को लेकर अलग-अलग तारीखें सामने आती हैं. कहीं 7 जून तो कहीं 17 जून. लेकिन इन सब में खास बात ये है कि शाहजहां की पत्नी का निधन आगरा में नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश के बुरहानपुर नाम के शहर में साल 1631 में हुआ था. उनकी मृत देह को भी पहले यहीं दफनाया गया था. बाद में उनकी कब्र को आगरा शिफ्ट किया गया.
बुरहानपुर मुगल काल का एक बहुत महत्वपूर्ण शहर था. इसे मुगलों की दूसरी राजधानी भी कहा जाता था. दक्षिण के इलाकों पर नज़र रखने के लिए मुगल बादशाह इसी शहर में मुकाम करते थे. मुमताज महल की मौत के बाद शाहजहां को उसकी याद में ताज महल बनाने का ख्याल यहीं पर आया. मुगल बादशाह ने उस वक्त के बेहतरीन वास्तुकारों को बुलाया और सफेद संगमरमर का एक अद्भुत मकबरा बनाने की इच्छा जाहिर की. लेकिन वास्तुकारों ने बुरहानपुर में ताप्ती के किनारे की जमीन को इस तरह के निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं पाया. ये भी कहा जाता है कि यहां कि मिट्टी में दीमक की समस्या अधिक थी, जो निर्माण के लिए ठीक नहीं थी. साथ ही राजस्थान के यहां संगमरमर लाना भी एक पेचीदा काम था. इन्हीं कारणों से ताजमहल को बुरहानपुर के बजाय आगरा में बनाया गया, जिसकी चमक आज भी पूरी दुनिया देख रही है.
इतिहासकारों के मुताबिक, ताजमहल बनाने का ख्याल शाहजहां को बुरहानपुर में शाहनवाज का मकबरा देखकर आया था. इसे स्थानीय लोग ‘काला ताजमहल' के नाम से भी जानते हैं. ताजमहल का डिजाइन काफी हद तक इस मकबरे से मिलता है.
शाहनवाज, अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ानां के पुत्र थे, जिन्हें मुगल दरबार में काफी सम्मान हासिल था. उनकी मौत के बाद उनके सम्मान में ये मकबरा बनवाया गया था. कहा जाता है कि बुरहानपुर में स्थित इस काले ताजमहल को देखकर ही शाहजहां से संगमरमर के सफेद ताजमहल की परिकल्पना की थी.
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