भारत की अमेरिका के साथ न्यूक्लियर एनर्जी संबंधी योजनाओं के बाबत हुई महत्वपूर्ण डील को करारा झटका लगा है. वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक ने 9.8 बिलियन डॉलर की देनदारियों के साथ आज खुद को दिवालिया घोषित करने के लिए याचिका दाखिल की है. वेस्टिंगहाउस जापानी समूह तोशिबा की अमेरिकी न्यूक्लियर यूनिट है.
साल 2008 में भारत और अमेरिका के बीच हुई न्यूक्लियर को-ऑपरेशन डील को लागू करने के लिए नरेंद्र मोदी और तत्कालीन अमेरिकी प्रेजिडेंट बराक ओबामा ने दो साल पहले मानक तय किए गए थे. दोनों ने जून 2017 तक आंध्र प्रदेश में वेस्टिंगहाउस व न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) द्वारा छह न्यूक्लियर रिएक्टर्स बनाए जाने संबंधी अरेंजमेंट्स लागू करने पर सहमति जताई थी. इन रिएक्टरों का निर्माण वेस्टिंगहाउस करना था.
पिछले साल जून में वॉइट हाउस की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि दोनों नेताओं ने परियोजना के लिए प्रतिस्पर्धी वित्त पोषण पैकेज को लेकर भारत तथा यूएस एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बैंक के साथ मिलकर काम करने के इरादे को भी रेखांकित किया. परियोजना पूरी होने के बाद यह सबसे बड़ी परियोजनाओं में से एक होगी और अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौते के वादे को पूरा करेगा. साथ ही यह भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने तथा जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के लिए साझा प्रतिबद्धता को पूरा करेगी.
भोपाल गैस ट्रैजेडी 1984 के कांड को ध्यान में रखते हुए भारत ने ऐसे किसी एक्सिडेंट की संभावना के मद्देनजर यह साफ कर दिया था प्लान ऑपरेटर की जिम्मेदारी होगी मुआवजों और खर्चों की लेकिन साथ ही यह भी तय हुआ था कि सप्लायर या उपकरण मुहैया करवाने वाले को इससे पूरी तरह से मुक्त नहीं किया जाएगा. राज्य सरकार के वित्त पोषण वाला 1500 करोड़ रुपये का बीमा भारत द्वारा बनाया जाता.
भारत चाहता अपनी न्यूक्लियर कैपेसिटी को 2024 तक तिगुना करना चाहता है. वेस्टिंगहाउस और एनपीसीआईएल की अरबों डॉलर की डील के लिए श्रीकाकुलम के पूर्वी तटीय जिले में 2 हजार एकड़ पर इन्हें बनाया जाना था. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने कुछ हफ्ते पहले कहा था कि कंपनी पर मंडरा रहे वित्तीय संकट के बादलों के चलते कंपनी छह यूनिटों के लिए केवल रिएक्टर्स प्रोवाइड कर सकती है. वह संपूर्ण प्रोजेक्ट के लिए सिविल इंजीनियरिंग से जुड़ा कोई काम नहीं करेगी.
यूएस की मदद से बनने वाले ये न्यूक्लियर पावर प्लांट Ap1000 होंगे, ऐसा कंपनी ने प्रचारित किया था, जिनसे 1117 मेगावॉट पावर बनती है. इसे उसने सबसे सुरक्षित और सबसे कम खर्चीला न्यूक्लियर पावर प्लांट कहा था. रॉयटर्स के मुताबिक, कुछ दिन पहले कंपनी के सीईओ जोस गुटिरेज भारत आए थे और इस बाबत संबंधित विभागों से बातचीत हुई थी. वेस्टिंगहाउस के साथ एमओयू साइन करने वाली लार्सन ऐंड टुब्रो को अब भी लगता है कि इस प्रोजेक्ट पर काम किया जा सकता है. रॉयटर्स के ही मुताबिक, जब तक गारंटीज यथावत हैं तब तक मैं इन प्रोजेक्ट्स के रुकने का कोई कारण नहीं देखता. यह कहना है एलएंडटी के पावर बिजनेस के हेड शैलेंद्र रॉय का. हालांकि उन्होंने इन गारंटीज के बारे में कुछ खास नहीं बताया.