रुपये पर दबाव कम करने के लगातार प्रयासों के बीच रिजर्व बैंक ने सामान और सॉफ्टवेयर निर्यात करने वाली फर्मों के लिए अपने निर्यात की कीमत को वसूल कर अधिक से अधिक नौ माह में देश लाना अनिवार्य कर दिया है। इससे पहले उन्हें निर्यात की वसूली और प्रत्यावर्तन के लिए 12 माह का समय मिला हुआ था।
रिजर्व बैंक के इस निर्णय से देश में विदेशी मुद्रा का प्रवाह बढ़ने की संभावना है। केंद्रीय बैंक ने पिछले नवंबर में वैश्विक नरमी के मद्दे नजर निर्यातकों को निर्यात की कमाई वसूलने और उसे देश में लाने के लिए 12 महीने तक का समय दिया गया था। पहले उन्हें 6 माह में कमाई वापस लानी पड़ती थी।
हालांकि उद्योग विशेषज्ञों ने कहा कि देश के बढ़ते चालू खाते के घाटे (कैड) और डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी के कारण इसे धन लाने की समयसीमा घटा दी है।
आरबीआई ने एक अधिसूचना में कहा, भारत सरकार के साथ परामर्श के बाद निर्यात की कीमत की वसूली और उक्त प्राप्ति अवधि को निर्यात की तिथि के 12 महीने से घटाकर नौ महीने करने का फैसला किया गया, जो 30 सितंबर 2013 तक वैध रहेगा। इसमें यह भी कहा गया है कि विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) की इकाइयों और भारत से बाहर स्थापित भडारणगृहों से निर्यातित सामान व सॉफ्टवेयर की आय की वसूली और प्रत्यावर्तन संबंधी प्रावधानों में कोई बदालव नहीं किया गया है। जून में भारत का निर्यात 4.6 प्रतिशत गिरकर 23.79 अरब डॉलर रहा। इससे पिछले माह भी इमें गिरावट आई थी।