बैंक ऑफ बड़ौदा (BOB) की एक शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि ऊंची ब्याज दरों से घरों की मांग प्रभावित नहीं हुई है क्योंकि खरीदारों को यह पता है कि उनकी ऋण अवधि के दौरान दरें बढ़ सकती हैं और कम भी हो सकती हैं. इस वर्ष मई में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने लंबे अंतराल के बाद पहली बार रेपो दर बढ़ाई थी. तब से रेपो दर में 1.40 प्रतिशत की वृद्धि की जा चुकी है.बैंक ऑफ बड़ौदा की रिपोर्ट ‘भारत में आवास ऋण परिदृश्य' में कहा गया कि महामारी के बाद आवास क्षेत्र ने जुझारूपन दिखाया है. सार्वजिनक क्षेत्र के बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा आवास ऋण में मजबूत रफ्तार भी कुछ ऐसा ही संकेत देती है. सरकार और आरबीआई ने इस क्षेत्र को समर्थन देने के लिए जो कदम उठाए हैं उनकी वजह से और कम कीमतें तथा ब्याज दरों से भी इस क्षेत्र को समर्थन और कोविड-19 के प्रभाव को कम करने में मदद मिली है.
यह रिपोर्ट बैंक ऑफ बड़ौदा में अर्थशास्त्री अदिति गुप्ता ने तैयार की है. इसमें कहा गया है कि आवास ऋण की मांग और बढ़ने वाली है और इसकी वजह आर्थिक गतिविधियां सामान्य होना और वृद्धि में तेजी आना रहेगी. इसमें कहा गया, ‘‘वहीं दूसरी ओर, ऊंची ब्याज दर की वजह से कुछ लोग आवास बाजार से दूरी बना सकते हैं. हालांकि, सुरक्षित निवेश के तौर पर घरों की मांग इसके असर को कम कर देगी.'' रिपोर्ट में आगे कहा गया, ‘‘वहीं, निजी घर खरीदार अपनी ऋण अवधि के दौरान ब्याज दरों में बढ़ोतरी और कमी के लिए भी तैयार रहेंगे और हो सकता है कि वे खरीद को टालने का विचार नहीं करें.''
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वाणिज्यिक बैंकों और आवास वित्त कंपनियों (एचएफसी) द्वारा बकाया व्यक्तिगत गृह ऋण का अनुपात पिछले दस वर्षों में काफी बढ़ गया है. 2010-11 में यह जीडीपी का 6.8 प्रतिशत था जो 2020-21 में बढ़कर 9.5 प्रतिशत हो गया. यहां तक कि 2019-22 में जब कोविड-19 के प्रकोप से आवासीय क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित था तब यह भी यह अनुपात बढ़ा और 9.8 प्रतिशत हो गया. इसमें कहा गया है कि आवास क्षेत्र महामारी से उल्लेखनीय तरीके से उबरा और जीडीपी में आवास ऋण का अनुपात बढ़कर 11.2 प्रतिशत हो गया. वित्त वर्ष 2010-11 में बैंकों का आवास ऋण पोर्टफोलियो 3.45 लाख करोड़ रुपये था जो 2020-21 में बढ़कर 15 लाख करोड़ रुपये हो गया.
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