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इस प्राइवेट बैंक ने MCLR दरों में की बढ़ोतरी, महंगा किया होम लोन और ऑटो लोन

देश के सबसे बड़े प्राइवेट बैंकों में से एक HDFC बैंक ने अपने ग्राहकों के लिए रिटेल लोन को महंगा कर दिया है. बैंक ने सभी अवधि में MCLR रेट्स में 5-15 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी की है. HDFC बैंक की वेबसाइट के मुताबिक, नई लोन ब्याज दरें 8 मई 2023 से लागू कर दी गई हैं.
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NDTV Profit हिंदी03:46 PM IST, 08 May 2023NDTV Profit हिंदी
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देश के सबसे बड़े प्राइवेट बैंकों में से एक HDFC बैंक ने अपने ग्राहकों के लिए रिटेल लोन को महंगा कर दिया है. बैंक ने सभी अवधि में MCLR रेट्स में 5-15 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी की है. HDFC बैंक की वेबसाइट के मुताबिक, नई लोन ब्याज दरें 8 मई 2023 से लागू कर दी गई हैं.

HDFC Bank ने महंगा किया लोन

ओवरनाइट: 7.95 प्रतिशत

1 महीना: 8.10 प्रतिशत

3 महीना: 8.40 प्रतिशत

6 महीना: 8.80 प्रतिशत

1 साल: 9.05 प्रतिशत

2 साल: 9.10 प्रतिशत

3 साल: 9.20 प्रतिशत

बैंक की वेबसाइट के मुताबिक ओवरनाइट MCLR अब 7.95 प्रतिशत हो गया है. वहीं, एक महीने के लिए MCLR की दर 8.10 प्रतिशत हो गई है. जबकि 3 तीन महीने और 6 महीने की MCLR दरें 8.40 प्रतिशत और 8.80 प्रतिशत हो गई हैं.

कंज्यूमर लोन से जुड़ी एक साल की MCLR अब 9.05 प्रतिशत, दो साल की MCLR 9.10 प्रतिशत और तीन साल की MCLR 9.20 प्रतिशत होगी.

मई 2022 से भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की रेपो रेट में बढ़ोतरी के बाद, होम लोन लेने वालों की समस्या बढ़ गई है. बैंक लगातार लेंडिंग रेट में बढ़ोतरी कर रहे हैं. हालांकि बीती मॉनिटरी पॉलिसी में रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया था.

क्या होती है एमसीएलआर दर (MCLR Rate) 
बैंकिंग शब्दावली में एमसीएलआर (MCLR) यानि मार्जिनल कॉस्ट ऑफ लेंडिंग रेट क्या होता है. आइए इसे समझें. इस रेट (MCLR) को भारतीय रिजर्व बैंक ( Reserve Bank Of India) ने आरंभ किया था. यह इतनी महत्वपूर्ण है कि इस रेट के तय हो जाने पर इससे कम रेट पर कोई भी बैंक ग्राहकों को लोन नहीं दे सकता है. अमूमन इस MCLR रेट से ज्यादा रेट पर ही बैंक लोन देता है. यह रेट (MCLR) कमर्शियल बैंकों द्वारा ग्राहकों को लोन रेट निर्धारित करने में इस्तेमाल किया जाता है. इससे साफ हो गया होगा कि इसके बढ़ने के साथ ही लोन का महंगा होना तय हो जाता है. देश में नोटबंदी के बाद से इसे (MCLR) लागू किया गया था. बैंकों से लोन रेट तय करने के लिए इस रेट की शुरुआत आरबीआई ने साल 2016 में की थी. 

बैंकों को इस रेट (MCLR) की जरूरत क्यूं पड़ती है
किसी भी बैंक द्वारा ग्राहक को दिए लोन के पैसे पर भी बैंक को लागत उठानी पड़ती है. यानी बैंक का खर्चा होता है. यही नहीं लोन का पैसा वसूलने पर भी बैंक को लागत वहन करना होता है. इस प्रकार की सभी लागतों को जोड़ने के बाद एक मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड तैयार किया जाता है. बैंक इस तरह हर 100 रुपये को रखने, जारी करने, वसूलने पर उठाई जाने वाली कुल लागत को बैंक एमसीएलआर (MCLR)  के रूप में पेश करता है. इसे (MCLR) प्रतिशत के रूप में पेश किया जाता है.

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