प्रमुख वैश्विक साख रेटिंग एजेंसी मूडीज ने आगाह किया है कि रुपये की गिरावट देश की वित्तीय साख पर नए सवाल खड़े कर सकती है क्यों कि इससे ‘मुद्रास्फीति तथा राजकोषीय दबाव और बढ़ेगा।’
मूडीज ने हालांकि, यह भी कहा है कि सरकार के कुल कर्ज में विदेशी मुद्रा कर्ज मात्र छह प्रतिशत ही है जो ज्यादा नहीं है।
मूडीज ने चालू वित्त वर्ष के दौरान रुपये की स्थिति में सुधार की धुंधली तस्वीर पेश करते हुए कहा है कि वैश्विक बाजारों में लगातार होते उतार चढ़ाव और 2014 में होने वाले आम चुनावों से पहले की राजनीतिक अनिश्चित के चलते रुपये में सुधार की ज्यादा गुंजाश नहीं लगती तथा इससे आर्थिक वृद्धि पर और बुरा असर पड़ेगा।
एजेंसी ने कहा है ‘सरकार के कुल ऋण में विदेशी मुद्रा वाला कर्ज मात्र छह प्रतिशत ही है इसलिए रुपये के अवमूल्यन का सरकार के कर्ज भुगतान पर ज्यादा असर नहीं होगा। लेकिन अवमूल्यन से मुद्रास्फीति और राजकोषीय दबाव और बढ़ेगा, इन दोनों ही कारणों से देश की मौजूदा बीएए-3 रेटिंग में बाधा खड़ी होगी।’
मूडीज ने चेतावनी देते हुए कहा ‘रुपये के अवमूल्यन और उसके मुद्रास्फीति और वित्तीय स्थायित्व पर संभावित असर से घरेलू उधार की लागत ऊंची होगी और मौजूदा सुस्ती का दौर और लंबा खिंच सकता है।’
एजेंसी के अनुसार 15 मई से लेकर 15 जुलाई के बीच डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर 9.3 प्रतिशत तक गिर चुकी है। मुद्रा में गिरावट से कुछ कंपनियों के विदेशी मुद्रा कर्ज का भुगतान मुश्किल हो सकता है और कच्चे माल की लागत बढ़ जाएगी। यह आर्थिक चिंता को और बढ़ाएगा।
मूडीज ने कहा है कि वर्ष 2008 के वैश्विक संकट के समय रुपये में 27 प्रतिशत गिरावट आई थी जबकि वर्ष 2011 में वैश्विक और स्थानीय मिले-जुले कारणों से रुपया और 12 प्रतिशत घटा।
मूडीज ने यह भी कहा है कि रुपये की गिरावट से भारत के चालू खाते के घाटे को कम करने में ज्यादा मदद नहीं मिलेगी। वर्ष 2012-13 में यह घाटा जीडीपी का 4.8 प्रतिशत रहा है।