
जब बॉलीवुड में हर कोई स्टारडम के पीछे भाग रहा हो, तब कोई एक इंसान ऐसे भी होता है, जो कैमरे के पीछे रहकर समाज को रोशनी देने का काम करता है. डॉ. अविनाश वी. राय की कहानी ऐसी ही एक यात्रा है, जहां कला है, लेकिन ग्लैमर नहीं, शोहरत है, लेकिन शांति के साथ. मंगलोर की सादगी से लेकर मुंबई की रफ्तार तक, डॉ. राय का सफर बेहद खास रहा. एक सैन्य परिवार में पले-बढ़े, लेकिन दिल में था आर्ट का ज़ज्बा. उन्होंने थिएटर को केवल परफॉर्मेंस नहीं, बल्कि सामाजिक संवाद का मंच बनाया. दिल-ए-नादान, इकोज ऑफ साइलेंस और कुर्सी का खेल जैसे नाटकों से उन्होंने दिखाया कि थिएटर सिर्फ स्क्रिप्ट नहीं, सिस्टम का आइना हो सकता है.
दो लफ्जों की कहानी के निर्माता हैं अविनाश
2016 में जब उन्होंने बतौर निर्माता ‘दो लफ्ज़ों की कहानी' बनाई, तो यह सिर्फ एक फिल्म नहीं थी. यह उनके विज़न का सिनेमाई रूप था. उनके लिए सिनेमा वह माध्यम है जो सोच को झकझोरता है, नजरिया बदलता है और समाज में छोटी-छोटी लहरें पैदा करता है, जो आगे चलकर बदलाव की सुनामी बनती हैं. कला में गहराई के साथ-साथ डॉ. राय समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भी उतना ही गंभीरता से निभाते हैं. RK HIV AIDS Research and Care Centre के साथ मिलकर उन्होंने लाखों लोगों की ज़िंदगी को बेहतर किया है, न दिखावे के लिए, न सेल्फी के लिए, बल्कि सच में ज़रूरतमंदों की मदद के लिए.
‘वेंक्या' से फेस्टिवल्स में धमाल, अब दो नई फिल्मों की तैयारी
उनकी फिल्म वेंक्या ने फिल्म फेस्टिवल सर्किट में खूब तारीफें बटोरीं और अब वे दो नए प्रोजेक्ट्स पर निर्देशक सागर के साथ काम कर रहे हैं. हर स्क्रिप्ट उनके लिए एक समाजिक स्टेटमेंट है, हर फिल्म एक मिशन. जहां फिल्में आजकल सिर्फ बिजनेस बन गई हैं, वहां डॉ. अविनाश वी. राय जैसे निर्माता और निर्देशक इस इंडस्ट्री की आत्मा को जिंदा रखते हैं. उनकी कहानी बताती है- सच्चा स्टार वही होता है जो कैमरे के पीछे भी चमकता है.
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