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33 साल का करियर, 750 से ज्यादा फिल्में फिर भी एक अवॉर्ड के लिए तरस गया था ये एक्टर, 2025 में पूरा हुआ सपना

इस एक्टर के लिए मुंबई में शुरुआती दिन आसान नहीं थे. छोटे-मोटे रोल, बी-ग्रेड फिल्में और कई बार भूखे पेट सोना...रवि ने यह सब देखा. 1992 में उनकी पहली फिल्म पीतांबर रिलीज नहीं हो सकी लेकिन इन्होंने ने हिम्मत नहीं हारी.

33 साल का करियर, 750 से ज्यादा फिल्में फिर भी एक अवॉर्ड के लिए तरस गया था ये एक्टर, 2025 में पूरा हुआ सपना
33 साल एक अवॉर्ड को तरसा ये एक्टर
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नई दिल्ली:

रवि किशन, जिनका पूरा नाम रविंद्र शुक्ला (Ravi Kishan) है, भारतीय सिनेमा और राजनीति में एक ऐसा नाम है जो मेहनत, जुनून और जज्बे की मिसाल हैं. उत्तर प्रदेश के जौनपुर में एक साधारण परिवार में पले बढ़े रवि ने 33 साल के अपने फिल्मी करियर में 750 से ज्यादा फिल्मों में काम किया. भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार और बॉलीवुड के चमकते चेहरे के तौर पर उन्होंने दर्शकों का दिल जीता फिर भी लंबे समय तक कोई बड़ा अवॉर्ड उनके हिस्से नहीं आया. इसके बावजूद उनकी पॉपुलैरिटी और परफॉर्मेंस की धमक ने उन्हें जनता का चहेता बनाया. सिनेमा के साथ-साथ उन्होंने राजनीति में भी अपनी अलग पहचान बनाई.

कठिनाइयों से शुरू हुआ सफर

रवि का बचपन गरीबी और संघर्षों से भरा था. उनके पिता एक छोटे से गांव में मंदिर के पुजारी थे और दूध का कारोबार चलाते थे. परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी और रवि को कम उम्र में ही कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. एक बार रामलीला में सीता का किरदार निभाने की वजह से उनके पिता ने उन्हें इतना मारा कि रवि को घर छोड़ना पड़ा. मां के दिए 500 रुपये लेकर वे मुंबई की राह पर निकल पड़े जहां सपनों की दुनिया में कदम रखने की शुरुआत हुई.

मुंबई में शुरुआती दिन आसान नहीं थे. छोटे-मोटे रोल, बी-ग्रेड फिल्में और कई बार भूखे पेट सोना...रवि ने यह सब देखा. 1992 में उनकी पहली फिल्म पीतांबर रिलीज नहीं हो सकी लेकिन रवि ने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने छोटे-छोटे किरदारों से अपने करियर की शुरुआत की और धीरे-धीरे अपनी जगह बनाई.

भोजपुरी सिनेमा के बेताज बादशाह

जब बॉलीवुड में बड़ी सफलता नहीं मिली तो रवि ने भोजपुरी सिनेमा की ओर रुख किया. 2002 में उनकी फिल्म सैंया हमार ने उन्हें भोजपुरी सिनेमा का सुपरस्टार बना दिया. इसके बाद पंडित जी बताईं न बियाह कब होई, देवरा बड़ा सतावे, और ससुरा बड़ा पैसावाला जैसी फिल्मों ने उनकी पॉपुलैरिटी को आसमान पर पहुंचाया. उनकी सहज एक्टिंग, दमदार डायलॉग्स और देसी अंदाज ने उत्तर भारत के दर्शकों को दीवाना बना दिया. उनकी एक फिल्म को कान्स फिल्म फेस्टिवल में भी प्रेजेंट किया गया, जो भोजपुरी सिनेमा के लिए गर्व का पल था.

हालांकि रवि ने भोजपुरी सिनेमा में बढ़ती अश्लीलता पर चिंता जताई और इसे साफ-सुथरा बनाने की वकालत की. वे कहते हैं, “भोजपुरी सिनेमा हमारी संस्कृति का आइना है. हमें ऐसी कहानियां लानी चाहिए जो परिवार के साथ देखी जा सकें.”

बॉलीवुड और ओटीटी की दुनिया में चमक

2003 में सलमान खान की फिल्म तेरे नाम में पंडित जी के किरदार ने रवि को बॉलीवुड में एक नई पहचान दी. इसके बाद मुक्काबाज, लक बाय चांस और बटालियन 609 जैसी फिल्मों में उनके काम ने लोगों का ध्यान खींचा. 2024 में आई लापता लेडीज में उनके पुलिसवाले किरदार को खूब तारीफ मिली और इस फिल्म ने उन्हें 2025 में पहला IIFA अवॉर्ड दिलाया. अवॉर्ड लेते समय रवि ने कहा, “यह मेरे 33 साल के संघर्ष का सम्मान है. मैंने हर कदम पर मेहनत की और आज यह पल मेरे लिए अनमोल है.”

ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर भी रवि ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई. मामला लीगल है, रंगबाज, और खाकी: द बिहार चैप्टर में उनके किरदारों ने दर्शकों को इंप्रेस किया. अब वे सन ऑफ सरदार-2 में नजर आने वाले हैं.

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