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रहमान डकैत, जिसने 15 साल की उम्र में अपनी मां को मार डाला, जानें क्यों उसकी मौत आज भी है एक पहेली

1976 में अब्दुल रहमान के रूप में जन्में रहमान डकैत कराची के सबसे पुराने और सबसे गरीब इलाकों में से एक ल्यारी में पला-बढ़ा.  यह इलाका लंबे समय से अपराध, गैंग वॉर के लिए जाना जाता है.  

रहमान डकैत, जिसने 15 साल की उम्र में अपनी मां को मार डाला, जानें क्यों उसकी मौत आज भी है एक पहेली
रहमान डकैत, जिसने 15 साल की उम्र में अपनी मां को मार डाला
नई दिल्ली:

धुरंधर में सबसे ज़ोरदार सीटियां किसी हीरो की स्लो-मोशन एंट्री या पंचलाइन से भरे मोनोलॉग के लिए नहीं बजतीं. वे तब बजती हैं, जब अक्षय खन्ना चुपचाप रहमान डकैत के रूप में फ्रेम में आते हैं. एक ऐसा विलेन जिसकी मौजूदगी ही थिएटर में काफी होती है. जहां आदित्य धर की फ़िल्म रहमान डकैत को एक डरावने विलेन के रूप में पेश करती है, वहीं इस किरदार के पीछे की असली कहानी फिक्शन से कहीं ज़्यादा क्रूर, जटिल और परेशान करने वाली है.

1976 में अब्दुल रहमान के रूप में जन्में रहमान डकैत कराची के सबसे पुराने और सबसे गरीब इलाकों में से एक ल्यारी में पला-बढ़ा.  यह इलाका लंबे समय से अपराध, गैंग वॉर के लिए जाना जाता है.  पिता मोहम्मद और उनके भाई ड्रग्स का धंधा चलाते थे और इकबाल उर्फ ​​​​बाबू डकैत, और हाजी लालू के नेतृत्व वाले गिरोहों के साथ हिंसक प्रतिद्वंद्विता में उलझे हुए थे. ड्रग्स के धंधे के साथ जबरन वसूली रैकेट चलते थे.

पूर्व ल्यारी एसपी फैयाज खान ने बीबीसी को बताया, "एक ही धंधे में शामिल कई गिरोहों के बीच प्रतिद्वंद्विता के साथ-साथ क्षेत्रीय संघर्ष भी था. ये प्रतिद्वंद्विता अक्सर खूनी झड़पों में बदल जाती थी. ऐसी ही एक झड़प में रहमान बलूच के चाचा, ताज मोहम्मद, प्रतिद्वंद्वी बाबू डकैत गिरोह द्वारा मारे गए." रहमान की दुनिया में हिंसा कोई अजीब बात नहीं थी. यह उसे विरासत में मिली थी.

खून-खराबे में खोया बचपन
रहमान डकैत का जुर्म की दुनिया में जाना चौंकाने वाली बात थी. सिर्फ़ 13 साल की उम्र में, उसने एक आदमी को चाकू मारकर घायल कर दिया था, जिसने उसे ल्यारी में पटाखे फोड़ने से रोका था. दो साल बाद वह हिंसा से हत्या तक पहुंच गया, एक झगड़े के बाद उसने दो दुश्मन ड्रग पेडलर्स को मार डाला. उसकी ज़िंदगी का सबसे परेशान करने वाला अध्याय 1995 में सामने आया. पुलिस हिरासत से भागने के महीनों बाद रहमान ने अपने ही घर में अपनी मां, खदीजा को मार दिया. उसने पुलिस को बताया कि उसने उसे इसलिए मारा, क्योंकि "वह पुलिस की मुखबिर बन गई थी". हालांकि, यह व्यापक रूप से माना जाता है कि उसे शक था कि उसका किसी दुश्मन गैंग के सदस्य के साथ रिश्ता है.  

गैंग लॉर्ड का बनना
1995 में रहमान को हथियार और ड्रग्स रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उसने कराची जेल से कोर्ट ले जाते समय एक नाटकीय तरीके से भागने से पहले लगभग ढाई साल जेल में बिताए. वह बलूचिस्तान भाग गया, जहां उसने  क्रूरता के साथ अपना आपराधिक साम्राज्य फिर से बनाना शुरू किया. 2000 के दशक की शुरुआत तक रहमान डकैत ल्यारी के सबसे शक्तिशाली गैंग लॉर्ड्स में से एक के रूप में उभरा था. 2006 तक उसने बहुत ज़्यादा दौलत, प्रॉपर्टी और राजनीतिक प्रभाव जमा कर लिया था. उसने तीन बार शादी की और 13 बच्चे हुए. रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया गया कि उसके पास न सिर्फ़ कराची और बलूचिस्तान में, बल्कि ईरान में भी प्रॉपर्टी थी.

ल्यारी गैंग वॉर्स और आतंक का राज
रहमान का उदय खून से लिखा गया था. शुरुआत में ड्रग्स और जुए के रैकेट चलाने में हाजी लालू के साथ गठबंधन करने के बाद यह साझेदारी जल्द ही खत्म हो गई, जिससे ल्यारी में हिंसा फैल गई. अनुमान है कि इसके बाद हुए गैंग वॉर्स में 3,500 से ज़्यादा लोग मारे गए. 2000 के दशक की शुरुआत तक रहमान ने ज़्यादातर विरोधियों को खत्म कर दिया था और खुद को ल्यारी का निर्विवाद 'किंग' घोषित कर दिया था.

इसी दौरान रहमान की महत्वाकांक्षाएं बढ़ीं. अंडरवर्ल्ड पर राज करने से संतुष्ट न होकर, उसने खुद को सरदार अब्दुल रहमान बलूच के रूप में रीब्रांड किया और पीपल्स अमन कमेटी बनाई.ल्यारी लंबे समय से एक राजनीतिक गढ़ रहा है, जो MQM और पीपल्स पार्टी दोनों से जुड़ा हुआ है - संयोग से यह जुल्फिकार अली भुट्टो और बेनजीर भुट्टो का राजनीतिक जन्मस्थान भी था. रहमान सिर्फ प्रभाव नहीं, बल्कि वैधता चाहता था. जैसे-जैसे उसकी महत्वाकांक्षा बढ़ी, वैसे-वैसे हिंसा का पैमाना भी बढ़ा.

ल्यारी टास्क फोर्स और चौधरी असलम
2006 में लियारी को जकड़ने वाले गैंग नेटवर्क को खत्म करने के लिए चौधरी असलम के नेतृत्व में ल्यारी टास्क फोर्स का गठन किया गया. धुरंधर में यह भूमिका संजय दत्त निभाते हैं, जिन्हें एक मेहनती और गोली चलाने में माहिर पुलिस वाले के रूप में दिखाया गया है. खबरों के अनुसार, रहमान ने मामला सुलझाने के लिए पैसे देने की पेशकश की, लेकिन असलम ने मना कर दिया.रहमान डकैत और उसके तीन साथियों को बाद में 2009 में एक पुलिस एनकाउंटर में मार दिया गया. पुलिस के बयानों में दावा किया गया कि वह हत्या और अपहरण सहित 80 से ज़्यादा मामलों में वॉन्टेड था. हालांकि, यह एनकाउंटर अभी भी विवादों में है.

पीपल्स अमन कमेटी के पूर्व चेयरमैन मौलाना अब्दुल मजीद सरबाजी ने द एक्सप्रेस ट्रिब्यून को बताया, "ऑटोप्सी रिपोर्ट्स कहती हैं कि रहमान पर तीन फीट की दूरी से गोली चलाई गई थी. एनकाउंटर में लोग ऐसे नहीं मरते. यह बहुत दुख की बात है कि सात साल तक दो ग्रुप्स के बीच लड़ाई चलती रही और किसी ने दखल नहीं दिया, और जब हालात बेहतर हुए तो उन्होंने खान भाई को मार दिया. हमें समझ नहीं आता कि ऐसा क्यों हुआ, या इसके पीछे कौन था."


 

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