Manto Film Review: नंदिता दास की 'मंटो' में नवाजुद्दीन सिद्दीकी की कमाल एक्टिंग
नई दिल्ली:
सआदत हसन मंटो (Saadat Hasan Manto) उर्दू (Urdu) साहित्य के दिग्गज नाम हैं और उनका साहित्य हिंदी समेत कई भाषाओं में अनूदित हो चुका है. जिस वजह से मंटो को हर भाषा के साहित्य प्रेमी अच्छे से जानते हैं. मंटो की कहानियां तमाचा मारती हुई लगती हैं और वे समाज को उसकी असलियत में दिखाने की वजह से विवादों में भी रहे हैं. इस तरह उनके अफसानों में विभाजन का दर्द और उन लोगों की आवाजें साफ सुनी जा सकती हैं जिन्हें उन्होंने देखा. ये आवाजें उनके जेहन में कुछ इस तरह रच-बस गईं कि जीवन भर उनका साथ नहीं छोड़ा. नंदिता दास (Nandita Das) की फिल्म 'मंटो' उर्दू के इसी अफसाना निगार की जिंदगी के चार साल दिखाती है और मंटो की जिंदगी के साथ उनके अफसानों को भी खूबसूरती से पिरोने की कोशिश की गई है क्योंकि मंटो की कहानियां जितनी सीधी-सपाट भाषा में लिखी गई हैं, उनकी जिंदगी उतनी ही जटिल है. मंटो का किरदार नवाजुद्दीन सिद्दीकी (Nawazuddin Siddiqui) ने निभाया है.
'मंटो' की कहानी उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो और समाज को लेकर उनके बगावती तेवरों की हैं. नंदिता दास ने मंटो की बायोपिक को शानदार अंदाज से पिरोया है. मंटो की कहानी विभाजन से पहले और उसके बाद की है. मंटो की मुंबई की जिंदगी, और विभाजन के बाद उनका लाहौर चले जाना फिल्म का प्रमुख विषय है. विभाजन का मंटो की जिंदगी पर असर और उनकी कहानियों पर अश्लीलता के आरोप, यह सब भी फिल्म में अच्छे ढंग से पिरोया गया है. फिल्म में 'खोल दो', 'ठंडा गोश्त' और 'टोबा टेक सिंह' जैसी कहानियों को मंटो की जिंदगी के साथ सधे हुए ढंग से पिरोया है. मंटो की मनोदशा और उनकी बीवी सफिया (रसिका दुग्गल) की जिंदगी भी कहानी का प्रमुख विषय हैं. हालांकि एक शानदार बायोपिक होने के बावजूद मंटो एक खास वर्ग तक सीमित हो जाती है, क्योंकि इस फिल्म को देखने से पहले मंटो, उनके साहित्य और जिंदगी के बारे में जानकारी न होना, थोड़ी मुश्किलें पैदा कर सकता है.
एक्टिंग के मोर्चे पर सभी कलाकारों ने काबिलेतारीफ काम किया है. फिर नंदिता दास जैसी डायरेक्टर हों तो कैरेक्टर और भी सधे हुए हो जाते हैं. मंटो के किरदार में नवाजुद्दीन सिद्दीकी बेमिसाल हैं. नवाजुद्दीन ने दिखा दिया है कि वे अव्वल दर्जे के एक्टर हैं. फिर नवाज ने जिस तरह से मंटो के किरदार की बारीकियां पकड़ी हैं, और उसे स्क्रीन पर प्रेजेंट किया है, वह हर किसी के बूते की बात नहीं. नवाजुद्दीन सिद्दीकी कई मौकों पर पहले भी कह चुके हैं कि इस किरदार में उतरने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की, मंटो को पढ़ा और समझा. यही नहीं, मंटो की बीवी सफिया के किरदार में रसिका दुग्गल भी गहरे तक उतर गई हैं. मंटो की बीवी होने के मायने भी फिल्म में बखूबी समझ आ जाते हैं. वैसे भी रसिका दुग्गल ने मंटो को पढ़ने और समझने के लिए एक समय उर्दू तक सीख ली थी. श्याम के किरदार में ताहिर राज भसीन ने भी दिल जीता है. फिल्म में जिस तरह से किरदार आते हैं, उनके साथ नंदिता दास कमाल करती हैं.
मंटो एक रूटीन बायोपिक से हटकर है, और मंटो प्रेमियों के लिए मंटो के जिंदगी और मनोदशा को समझने का सटीक माध्यम बनती है. फिर फिल्म में इस्मत चुगताई भी हैं. नंदिता दास ने मंटो की इस बायोपिक को पूरी ईमानदारी के साथ बनाया है. 1940 के दशक का समय उभरकर सामने आता है, और इसे बहुत ही बारीकी के साथ पेश भी किया गया है. मंटो को देखने के बाद यही बात जेहन में आती है कि अगर इसे वेब सीराज में तब्दील कर दिया जाता तो यह और मारक हो जाती.
रेटिंगः 3.5 स्टार
डायरेक्टरः नंदिता दास
कलाकारः नवाजुद्दीन सिद्दीकी, रसिका दुग्गल, ऋषि कपूर, जावेद अख्तर और राजश्री देशपांडे
...और भी हैं बॉलीवुड से जुड़ी ढेरों ख़बरें...
'मंटो' की कहानी उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो और समाज को लेकर उनके बगावती तेवरों की हैं. नंदिता दास ने मंटो की बायोपिक को शानदार अंदाज से पिरोया है. मंटो की कहानी विभाजन से पहले और उसके बाद की है. मंटो की मुंबई की जिंदगी, और विभाजन के बाद उनका लाहौर चले जाना फिल्म का प्रमुख विषय है. विभाजन का मंटो की जिंदगी पर असर और उनकी कहानियों पर अश्लीलता के आरोप, यह सब भी फिल्म में अच्छे ढंग से पिरोया गया है. फिल्म में 'खोल दो', 'ठंडा गोश्त' और 'टोबा टेक सिंह' जैसी कहानियों को मंटो की जिंदगी के साथ सधे हुए ढंग से पिरोया है. मंटो की मनोदशा और उनकी बीवी सफिया (रसिका दुग्गल) की जिंदगी भी कहानी का प्रमुख विषय हैं. हालांकि एक शानदार बायोपिक होने के बावजूद मंटो एक खास वर्ग तक सीमित हो जाती है, क्योंकि इस फिल्म को देखने से पहले मंटो, उनके साहित्य और जिंदगी के बारे में जानकारी न होना, थोड़ी मुश्किलें पैदा कर सकता है.
एक्टिंग के मोर्चे पर सभी कलाकारों ने काबिलेतारीफ काम किया है. फिर नंदिता दास जैसी डायरेक्टर हों तो कैरेक्टर और भी सधे हुए हो जाते हैं. मंटो के किरदार में नवाजुद्दीन सिद्दीकी बेमिसाल हैं. नवाजुद्दीन ने दिखा दिया है कि वे अव्वल दर्जे के एक्टर हैं. फिर नवाज ने जिस तरह से मंटो के किरदार की बारीकियां पकड़ी हैं, और उसे स्क्रीन पर प्रेजेंट किया है, वह हर किसी के बूते की बात नहीं. नवाजुद्दीन सिद्दीकी कई मौकों पर पहले भी कह चुके हैं कि इस किरदार में उतरने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की, मंटो को पढ़ा और समझा. यही नहीं, मंटो की बीवी सफिया के किरदार में रसिका दुग्गल भी गहरे तक उतर गई हैं. मंटो की बीवी होने के मायने भी फिल्म में बखूबी समझ आ जाते हैं. वैसे भी रसिका दुग्गल ने मंटो को पढ़ने और समझने के लिए एक समय उर्दू तक सीख ली थी. श्याम के किरदार में ताहिर राज भसीन ने भी दिल जीता है. फिल्म में जिस तरह से किरदार आते हैं, उनके साथ नंदिता दास कमाल करती हैं.
मंटो एक रूटीन बायोपिक से हटकर है, और मंटो प्रेमियों के लिए मंटो के जिंदगी और मनोदशा को समझने का सटीक माध्यम बनती है. फिर फिल्म में इस्मत चुगताई भी हैं. नंदिता दास ने मंटो की इस बायोपिक को पूरी ईमानदारी के साथ बनाया है. 1940 के दशक का समय उभरकर सामने आता है, और इसे बहुत ही बारीकी के साथ पेश भी किया गया है. मंटो को देखने के बाद यही बात जेहन में आती है कि अगर इसे वेब सीराज में तब्दील कर दिया जाता तो यह और मारक हो जाती.
रेटिंगः 3.5 स्टार
डायरेक्टरः नंदिता दास
कलाकारः नवाजुद्दीन सिद्दीकी, रसिका दुग्गल, ऋषि कपूर, जावेद अख्तर और राजश्री देशपांडे
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