5 जुलाई को दो फिल्में रिलीज होनी थीं जिनमें एक थी 'औरों में कहां दम था' और दूसरी 'किल' लेकिन औरों में कहा दम था की रिलीज को आगे किसका दिया गया और इस हफ्ते रह गई सिर्फ ‘किल'. निखिल नागेश भट्ट द्वारा निर्देशित किल का निर्माण किया है करण जौहर और अपनी डायक्यूमेंट्री एलिफैंट व्हिस्परर्स के लिए ऑस्कर जीतने वाली निर्माता गुनीत मूंगा ने.
कास्ट - लक्ष्य , राघव जुयाल, आशीष विद्यार्थी, हर्ष छाया और तान्या मानिकतला
सिनेमेटोग्राफी - राफे महमूद
साउंड डिजाइन - सुभाष साहू
फौली आर्टिस्ट - गिरीश सिंह
कहानी
अमृत और वीरेश दो एनएसजी कमांडो हैं जब वो अपने मिशन से वापस लौटते हैं तो उन्हें पता लगता है की अमृत जिस लड़की से प्यार करते हैं उसकी सगाई हो रही है और ये जानते ही ये दोनों कमांडो उस शहर के लिए निकल पड़ते हैं जहां सगाई है. अमृत वहां पहुंचकर तुलिका यानी जिस से वो प्यार करते है कहते हैं की वो उनके साथ चले पर तुलिका उन्हें ये कहकर वापस भेज देती है की सगाई चाहे किसी से भी हो शादी वो अमृत से ही करेंगी. सगाई के बाद तुलिका और उनका परिवार वापस जाने के लिए ट्रेन से सफर कर रहे होते हैं और उसी ट्रेन में अमृत और उनका कमांडो दोस्त वीरेश भी हैं और तभी कुछ डाकू इस ट्रेन को लूटने के लिए इसमें चढ़ जाते हैं और फिर शुरू होती है एक एक्शन और थ्रिलर फिल्म.
खामियां
- ये फिल्म यूं तो ज्यादा लंबी नहीं है पर कहानी के नाम पर इसमें खास कुछ नहीं .
- डाकू और डैकैतियों पर बहुत सी फिल्में आई हैं तो आईडिया के नाम पर इसमें फ्रेशनेस नहीं है.
- फिल्म में गुनीत मूंगा का नाम जुड़ने से उम्मीदें बढ़ जाती हैं की शायद ये फिल्म कुछ कहती होगी, कोई गहरा मुद्दा होगा फिल्म में पर ऐसा नहीं है.
खूबियां
- इस फिल्म में शायद 20 या 25 मिनट के बाद एक्शन शुरू हो जाता है और इस फिल्म की ताकत है इसका एक्शन. शायद इतना क्रूर एक्शन किसी फिल्म में देखा गया हो. सबसे बड़ी बात ये की फिल्म में एक घंटे और बीस मिनट से ज्यादा का एक्शन है पर ये आपको पलकें नहीं झपकाने देता. इतने एक्शन को इतनी देर तक जमा के रखना और दर्शकों को बांधे रखना कबीले तारीफ है. इसके अलावा जिस तरह से एक्शन को कोरियोग्राफ किया गया है फिर चाहे वो हाथ की लड़ाई हो, दरांती, चाकू, गंडासा या फिर लाइटर , एक्शन डायरेक्टर से यांग हो और परवेज शेख ने बड़ी खूबी और नयेपन के साथ इनका इस्तेमाल किया है.
- दूसरी तारीफ बनती है सिनेमेटोग्राफर राफे महमूद की क्योंकि ट्रेन के सेट पर इतनी लंबी फाइट को शूट करते हुए इस बात का खयाल रखना की वो रोचक बनी रहे साथ ही इतनी कम जगह में कैमरा मूवमेंट्स और लाइटिंग करना बहुत मुश्किल काम था जो उन्होंने बखूबी किया है.
- इस फ़िल्म में सिनेमेटोग्राफर , एक्शन डायरेक्टर के अलावा साउंड डिजाइन का बहुत बड़ा हाथ है क्योंकि एक्शन का दम और उसका इफेक्ट साउंड डिजाइन के बिना उभर नहीं सकता था तो सुभाष साहू की साउंड डिजाइन की तारीफ बनती है.
- साउंड डिजाइन के साथ एक और महत्वपूर्ण चीज है जो की साउंड का ही हिस्सा है और वो है फौली साउंड यानी वो आवाजें जो आपको तलवार , चाकू कोई भी हथियार चलने की सुनाई देती हैं. मुक्का, ट्रेन या खून निकालने की आवाज, टूटने , चीरने की आवाज, अगर ये सारी आवाजें ना हों तो ये एक्शन फीका पड़ जाये और सबसे बड़ी बात इतने एक्शन में हर आवाज में एक अलग इफेक्ट देना बहुत मुश्किल काम है जो फॉली आर्टिस्ट गिरीश सिंह ने बेहद खूबसूरती से किया है.
- अब बात कलाकारों की लक्ष्य एक्शन में कन्विंसिंग लगते है और उनका गुस्सा, एक्शन, इमोशन बेहतरीन है. राघव जुयाल अपनी एक्टिंग से फिल्म में छाप छोड़ते हैं खासतौर पर उनकी डायलॉग डिलीवरी. आशीष विद्यार्थी कमाल के एक्टर है और यहां डकैत होते हुए भी उन्होंने अपने इमोशंस को अपने परिवार और बेटे के लिए बड़े सधे हुई एक्टिंग से जाहिर किया है. फिल्म में वो जबर्दस्त छाप छोड़ते हैं.
- अंत में तारीफ डायरेक्टर निखिल नाग भट्ट की जिन्होंने सिर्फ एक्शन के बल पे एक कसी हुई फिल्म बनाई. ये बहुत मुश्किल काम था पर उन्होंने बखूबी इस फिल्म का डायरेक्शन किया है और हर कलाकार और क्रू से कमाल का काम निकलवाया है.
इस फ़िल्म में अगर कुछ गहराई, संदेश या मसौदा और होता तो और अच्छा होता बस फिल्म की यही कमी मुझे इसे सिर्फ 3 स्टार देने पर मजबूर करती है.
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