इंडियन सिनेमा में वैसे तो कई विलन रहे हैं, लेकिन उनमें से कुछ खलनायक ऐसे भी थे, जो अपनी बेहतरीन अदाकारी से लोगों के जहन में दहशत छोड़ गए. आज हम बॉलीवुड के एक ऐसे ही खूंखार विलेन से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं, जिनकी आंखों को देख कर ही डर लगने लगता था. हम बात कर रहे हैं 40-50 के दशक में अपनी खलनायकी से बॉलीवुड में मशहूर हुए कृष्ण निरंजन सिंह उर्फ के एन सिंह की. एक वक्त ऐसा था जब हर एक डायरेक्टर केएन सिंह को अपनी फिल्म में लेना चाहते थे. खास बात ये है कि उनके अभिनय के साथ-साथ उनकी उनके व्यक्तित्व और आंखों की भी चर्चा होती थी. उनकी आंखों में खौफ पैदा करने का हुनर था.
1936 के बर्लिन ओलंपिक में हुआ था सिलेक्शन
1 सितंबर 1960 को देहरादून में बॉलीवुड के इस बेहतरीन अभिनेता का जन्म हुआ था. बहुत कम लोग ये जानते हैं कि वो न सिर्फ शानदार अभिनेता थे, बल्कि एक बेहतरीन एथलीट भी थे. केएन सिंह का बॉलीवुड में बहुत लंबा करियर था. साल 1936 से 1980 के दशक तक उन्होंने बॉलीवुड में कई बेहतरीन फिल्में दीं. आपको बता दें कि उनके पिता पेशे से लॉयर हुआ करते थे. शुरुआत में सिंह स्पोर्ट्समैन बनना चाहते थे और वो बेहतरीन वेटलिफ्टिंग भी करते थे. साल 1936 में उनका सिलेक्शन बर्लिन ओलंपिक में हो गया था, लेकिन बहन की तबीयत इतनी बिगड़ गई कि उन्होंने बर्लिन ना जाने का फैसला लिया.
He excelled at weight-lifting and shot put. He could not be a part of 1936 Berlin Olympics, because he went to Calcutta to look up an ailing sister.
— Film History Pics (@FilmHistoryPic) September 1, 2023
KN SINGH, born on this day! pic.twitter.com/RWGWW3JOBq
करियर के अंतिम दिनों में हो गए थे ब्लाइंड
केएन सिंह के परिवार की बात करें तो उनके 6 भाई बहन थे. एक बहन और पांच भाई, लेकिन वो पिता नहीं बन सकते थे, इसलिए उन्होंने पुष्कर नाम के बच्चे को गोद लिया था. कहा तो यह भी जाता है कि करियर के अंतिम दिनों में केएन सिंह बिल्कुल ब्लाइंड हो गए थे. दरअसल रिपोर्ट की मानें तो उनका उनका मोतियाबिंद का मामूली सा ऑपरेशन हुआ था. इसके बाद उन्हें कम दिखाई देने लगा और फिर कुछ वक्त बाद उन्हें बिल्कुल दिखना बंद हो गया..
केएन सिंह का करियर
केएन सिंह ने साल 1936 में फिल्म सुनहरा संसार से अपने बॉलीवुड करियर की शुरुआत की थी. फिर मुक्ति, ठोकर, आपकी मर्जी, तकदीर, जवार भाटा, हुमायूं, बरसात की रात, कभी अंधेरा कभी उजाला जैसी ढेरों फिल्में में उन्होंने अभिनय किया. उनकी साल 1991 में में आखिरी फिल्म अजूबा रिलीज हुई. 31 जनवरी 2000 को उन्होंने अंतिम सांसे ली.
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