मशहूर शायर और बॉलीवुड राइटर जावेद अख्तर (Javed Akhtar) की शायदी को जिंदगी के बेहद करीब माना जाता है. जावेद अख्तर का जन्म 17 जनवरी 1945 को हुआ. जावेद अख्तर न सिर्फ अपनी शायरी की वजह से सुर्खियों में रहते हैं बल्कि समसामयिक मसलों पर बेबाकी से राय रखने की वजह से भी सोशल मीडिया पर छाए रहते हैं. जावेद अख्तर अपनी शानदार लेखनी की वजह से 1999 में पद्म श्री और 2007 में पद्म भूषण से सम्मानित किए जा चुके हैं. जावेद अख्तर को 2013 में उनका काव्य संग्रह 'लावा' के लिए उर्दू के साहित्य अकादेमी पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है. जावेद अख्तर 1996 से लेकर 2001 के बीच अपनी लिरिक्स के लिए नेशनल फिल्म पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुके हैं. यह फिल्में थीं: साज (1996), बॉर्डर (1997), गॉडमदर (1998), रिफ्यूजी (2000) और लगान (2001). जावेद अखतर की पहली पत्नी हनी ईरानी थीं, जिनसे उनके दो बच्चे फरहान अख्तर और जोया अख्तर हैं. हनी से तलाक के बाद जावेद अख्तर ने 1984 में शबाना आजमी से शादी की थी. सलीम-जावेद की जोड़ी बॉलीवुड की मशहूर राइटर जोड़ी रह चुकी है जिसने दीवार, शोले और जंजीर जैसी फिल्में दीं.
जावेद अख्तर की मशहूर शायरी (Javed Akhtar Shayari)...
ख़ून से सींची है मैं ने जो ज़मीं मर मर के
वो ज़मीं एक सितम-गर ने कहा उस की है
इन चराग़ों में तेल ही कम था
क्यूँ गिला फिर हमें हवा से रहे
मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं
ऊँची इमारतों से मकाँ मेरा घिर गया
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं
होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं
धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है
न पूरे शहर पर छाए तो कहना
तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे
अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती है
अक़्ल ये कहती है दुनिया मिलती है बाज़ार में
दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिए
उस की आँखों में भी काजल फैल रहा है
मैं भी मुड़ के जाते जाते देख रहा हूँ
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