Ismat Chughtai Google Doodle: इस्मत चुग़ताई की कहानियां आज भी पॉपुलर हैं
नई दिल्ली:
उर्दू लेखिका (Urdu Author) इस्मत चुग़ताई (Ismat Chughtai) ने कलम थामते ही सबकी नींदें उड़ा दीं. इस्मत चुग़ताई ने समाज के उस सच को लिखा जिससे हमेशा नजरें चुराई जाती रहीं. पद्मश्री से सम्मानित Ismat Chughtai के 107वें जन्मदिवस पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें याद किया है. 21 अगस्त, 1915 को जन्मी भारत की इस मशहूर लेखिका को 'इस्मत आपा' के नाम से भी जाना जाता है. इस्मत चुग़ताई उर्दू साहित्य की सबसे विवादित और सर्वप्रमुख लेखिका थीं, जिन्होंने महिलाओं के सवालों को नए सिरे से उठाया. उन्होंने निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम तबके की दबी-कुचली सकुचाई और कुम्हलाई, लेकिन जवान होती लड़कियों की मनोदशा को उर्दू कहानियों और उपन्यासों में पूरी सच्चाई से बयां किया. उनकी कहानियों पर कई फिल्में बनी, जिसमें दिलीप कुमार, देव आनंद, प्राण सरीके के मशहूर अभिनेताओं ने काम किया. इस्मत चुग़ताई (Ismat Chughtai) का पहला उपन्यास 'जिद्दी' साल 1941 और पहली कहानी 'गेंदा' 1949 में प्रकाशित हुआ. उनकी कहानी 'लिहाफ (Lihaaf)' के लिए इस्मत पर मुकदमा भी चल चुका है. 'लिहाफ' की कहानी एक हताश महिला की थी, जिसके पति के पास समय नहीं है और यह औरत अपनी महिला नौकरानी के साथ में सुख पाती है.
इस्मत चुगताई: शादी से दो महीने पहले लिखी कहानी पर लगा अश्लीलता का आरोप, विवादास्पद रही अंतिम यात्रा
21 अगस्त, 1915 को बदायूं में जन्मी इस्मत चुग़ताई (Ismat Chughtai) ने अपनी बैचलर डिग्री पूरी करने के बाद अलीगढ़ के गर्ल्स स्कूल में पढ़ाना शुरू किया, यहां उनकी मुलाकात शाहिद लतीफ से हुई, जो बाद में उनके शौहर बने. अलीगढ़ में रहते हुए उन्होंने अपनी सबसे विवादित शॉर्ट स्टोरी 'लिहाफ' लिखी, जो साल 1942 में प्रकाशित हुई. इसकी कहानी बेगम और उसकी मालिश करने वाली नौकरानी पर आधारित थी. कहानी एक हताश बेगम की थी जिसके नवाब के पास समय नहीं है और यह औरत अपनी महिला नौकरानी के साथ में सुख पाती है. इस्मत की इस कहानी का जमकर विवाद हुआ और लौहार कोर्ट में उनपर मुकदमा भी चलाया गया. हालांकि, दो साल तक चले केस को बाद में खारिज कर दिया गया.
Ismat Chughtai Google Doodle: कौन थी लेडी चंगेज़ खां इस्मत चुग़ताई, जानिए उनके जीवन से जुड़ी खास बातें
इस्मत की कहानियां, साहित्यिक पत्रिकाएं और उपन्यास में महिलाओं के दर्द की सच्ची झलक मिली. शाहिद लतीफ से शादी करने के बाद वह बॉलीवुड से जुड़ीं. साल 1948 में शाहिद की फिल्म 'जिद्दी' से इस्मत ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बतौर स्क्रीनराइटर कदम रथा. कामिनी कौशल, देव आनंद और प्राण अभिनीत 'जिद्दी' की कहानी इस्मत की इसी नाम की शॉर्ट स्टोरी पर आधारित थी.
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दिलीप कुमार अभिनीत 'आरजू' के लिए इस्मत ने डायलॉग लिखे. साल 1953 में आई फिल्म 'फैराब' के जरिए वह निर्देशन के क्षेत्र में उतरीं. उन्होंने अपने पति शाहिद लतीफ के साथ 'फिल्मिना' नामक प्रोडक्शन कंपनी खोली और 'सोने की चिड़िया' फिल्म का निर्माण किया. नूतन और तलत महमूद अभिनीत यह फिल्म बाल शोषण पर आधारित थी, जिसके दर्शकों से वाहवाही मिली.
इस्मत लगातार कहानी, किताब, उपन्यास लिखती रहीं साथ ही उन्होंने फिल्मों का निर्माण भी किया. साल 1976 में भारत सरकार ने उन्हें पद्माश्री से सम्मानित किया. 24 अक्टूबर, 1991 को 76 की उम्र में उन्होंने दुनिया से अलविदा कह दिया.
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इस्मत लगातार कहानी, किताब, उपन्यास लिखती रहीं साथ ही उन्होंने फिल्मों का निर्माण भी किया. साल 1976 में भारत सरकार ने उन्हें पद्माश्री से सम्मानित किया. 24 अक्टूबर, 1991 को 76 की उम्र में उन्होंने दुनिया से अलविदा कह दिया.
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