वक्त ने किया 'क्या हसीं सितम, तुम रहे न तुम, हम रहे न हम', कागज के फूल फिल्म का ये गीत सिर्फ एक गाना नहीं है. एक हकीकत है. फिल्मी दुनिया की ऐसी हकीकत जो बयां करती है कि रंगीन पर्दे के पीछे असल किरदार कितने बेरंग है. चमचमाती और चकाचौंध से भरी फिल्मी दुनिया के असल चेहरे कितने बेनूर कितने उदास हैं. मायानगरी के ये राज कभी खुल ही नहीं पाते अगर चंद फिल्में परदे पर न उतरतीं और दर्शकों को बताती कि जिस दौलत, शोहरत की चाह में वो मायानगरी तक खिंचे चले आते हैं वहां जब लाइट, कैमरे और एक्शन का दौर थमता है तब हर चेहरा सपाट नजर आता है. हर मुस्कान झूठी नजर आती है. ग्लैमर के पीछे कितनी मायूसी है ये इन फिल्मों को देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है.
कागज के फूल
बेपनाह खूबसूरती की मल्लिका वहीदा रहमान और हुनरमंद गुरुदत्त एक साथ मिलते हैं तो ऐसी नायाब फिल्म तैयार होती है. महकती हुई फिल्मी दुनिया कितनी झूठी है उसका अंदाजा इस फिल्म के टाइटल से ही लगाया जा सकता है जिसके फूल ही कागज के हैं. वक्त के सितम कितने भी हसीन हों आखिर में दर्द ही दर्द है. एक डायरेक्टर का फर्श से अर्श तक का सफर और फिर उसी कुर्सी पर बैठे बैठे अलविदा कह जाना. गोया कि आखिरी सांस तक डायरेक्शन का फितूर और सर्वश्रेष्ठ देने की तमन्ना कायम रही. बस इसी अधूरी आस के साथ फिल्म खत्म हो जाती है.
पेज थ्री
पेज थ्री यानी खबरनवीसों की दुनिया का वो पन्ना जिसमें सितारे ही सितारे छाए रहते हैं. फिल्मी दुनिया की रंगीनियत, उनका ग्लैमर इस पेज की शान बढ़ाते हैं. लेकिन जब पन्ना पलट कर देखते हैं तो रंगीन पिक्चर के रंग उड़े हुए नजर आते हैं. पेज थ्री के पीछे की कुछ ऐसी ही कड़वी हकीकतों की कहानी बताती है फिल्म पेज थ्री.
डर्टी पिक्चर
सिल्क स्मिता, ये नाम तो सुना ही होगा. सीधे तौर पर नहीं पर विद्या बालन की डर्टी पिक्चर फिल्मी दुनिया की इसी ग्लैमरस एक्ट्रेस सिल्क स्मिता की लाइफ से इंस्पायर थी. जो अपनी अदा और नजरों के जादू से फिल्मी पर्दे पर आग लगा देती थीं. लेकिन जिंदगी खत्म होने से पहले ऐसे दिन दिखा कर गई कि पूरी जिंदगी ही डर्टी पिक्चर बन कर रह गई.
ओम शांति ओम
ये फिल्म सीधे सीधे फिल्मी दुनिया पर ही बेस्ड नहीं थी. कहानी रीइनकारनेशन पर थी. पर पुनर्जन्म के बहाने फिल्मी दुनिया का एक सच ओम शांति ओम में भी था. बड़ी बड़ी लाइट्स की रोशनी में कुछ चेहरे कहां गुम हो जाते हैं. और किन स्याह कहानियों का बोझ ढोते हैं. इसी फिल्म से अंदाजा लगाया जा सकता है.
हीरोइन
मैं हीरोइन हूं. बड़ी शान से खुद को हीरोइन कहते हुए अगर एक हसीना इतराए तो इसमें बुरा ही क्या है. पर हकीकत ये है कि हीरोइन जब तक हिट है तब तक शान है. फ्लॉप फिल्मों का दौर शुरू होता है तब अच्छी अच्छी हीरोइन्स का संभलना मुश्किल हो जाता है. फिल्मी खानदान से ताल्लुक रखने वाली करीना कपूर ने बेहद करीब से ये सब देखा ही होगा. जिन्होंने फिल्म में बेहद उम्दा काम किया. पर, अफसोस कि मधुर भंडारकर की ये फिल्म दर्शकों को खास पसंद नहीं आई.
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