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IAS अफसर अभिषेक सिंह ने रचा इतिहास, Cannes में पहुंची फिल्म ‘1946’, देखकर विदेशी भी बोले- Wow!

भारत के लिए ये बड़े गर्व की बात है! देश के पहले ऐसे IAS अफसर रहे अभिषेक सिंह, जिन्होंने कान फिल्म फेस्टिवल के रेड कार्पेट पर कदम रखा.

IAS अफसर अभिषेक सिंह ने रचा इतिहास, Cannes में पहुंची फिल्म ‘1946’, देखकर विदेशी भी बोले- Wow!
IAS अफसर अभिषेक सिंह ने Cannes में रचा इतिहास
नई दिल्ली:

भारत के लिए ये बड़े गर्व की बात है! देश के पहले ऐसे IAS अफसर रहे अभिषेक सिंह, जिन्होंने कान फिल्म फेस्टिवल के रेड कार्पेट पर कदम रखा. लेकिन बात सिर्फ यहीं तक नहीं है, उनकी पहली फिल्म ‘1946: डायरेक्ट एक्शन डे- द इरेज़्ड हिस्ट्री ऑफ बंगाल' भी इस मौके पर दिखाई गई, जिसे देख दुनियाभर के दर्शकों ने खूब तारीफ की. ये फिल्म भारत के बंटवारे से पहले बंगाल में हुए राजनीतिक और सांप्रदायिक तनाव की सच्ची और असरदार कहानी है.

1946 में जो कुछ हुआ, उस पर बहुत कम बात हुई है, लेकिन ‘1946: डायरेक्ट एक्शन डे' उसी भूले-बिसरे इतिहास को सामने लाती है. फिल्म की कहानी ना सिर्फ इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों को जोड़ती है, बल्कि आज के दौर में पहचान, नागरिकता और देशभक्ति जैसे मुद्दों पर भी सवाल खड़े करती है.

स्क्रीनिंग के बाद अपनी खुशी ज़ाहिर करते हुए अभिषेक सिंह ने कहा, “कांस के रेड कार्पेट पर चलना कई लोगों का सपना होता है और मेरे लिए ये बहुत गर्व की बात है कि मैं वहां भारत का प्रतिनिधित्व कर पाया ना सिर्फ एक एक्टर या फिल्ममेकर के तौर पर, बल्कि एक ऐसे इंसान के रूप में जिसने सिस्टम के अंदर से देश की सेवा की है. ब्यूरोक्रेसी से सिनेमा की तरफ मेरा सफर हमेशा एक मक़सद से जुड़ा रहा है, ऐसी कहानियां बताने के लिए जो वाकई मायने रखती हैं.”

अभिषेक का सफर, जो पहले एक काबिल IAS अफसर थे, अब एक कहानी सुनाने वाले बन गए हैं, ये बहुत प्रेरणादायक और खास बात है. अपनी सरकारी नौकरी में जबरदस्त फैसले लेने और नई-नई जन सेवा योजना चलाने के लिए पहचाने जाने वाले अभिषेक अब सिनेमा के जरिए अपने देश और संस्कृति की बातें सबके सामने ला रहे हैं. कान्स फिल्म फेस्टिवल में फिल्म के जानकारों ने ‘1946: डायरेक्ट एक्शन डे' को बहुत ही खूबसूरत और साहसी फिल्म बताया है. उन्होंने इस फिल्म की कला और इतिहास दोनों की बहुत तारीफ की है. इस फिल्म स्क्रीनिंग में अलग-अलग देशों के फिल्म मेकर्स, इतिहास जानने वाले और संस्कृति के बारे में बताने वाले आए थे, जिन्होंने इस फिल्म को भारत के एक भूल गए इतिहास को दिखाने के लिए सराहा.

जैसे-जैसे भारत अपनी सांस्कृतिक पहचान दुनिया में बढ़ा रहा है, अभिषेक सिंह का कान्स में जाना सिर्फ नए भारतीय कहानीकारों की आवाज़ को ही नहीं बढ़ाता, बल्कि ये भी दिखाता है कि सरकारी सेवा और कला का मेल कैसे दुनिया के मंच पर एक साथ चल सकता है. यह कान्स का मुकाम अभिषेक सिंह के लिए एक बड़ी फिल्मी सफर की शुरुआत है, जहां उनका करियर सरकार, आम लोगों की सेवा और दुनिया की सिनेमा का अनोखा मेल है.

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