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This Article is From Apr 26, 2022

रात के अंधेरों में गलती से मत सुन लेना इन तरानों को, नहीं तो उड़ जाएगी नींद

क्या गीत-संगीत हमें डरा भी सकता है. इसका जवाब है 'हां'. हिन्दी फिल्मों की ही बात करें तो कई ऐसे गाने बने हैं जो सुनने में मधुर तो हैं, लेकिन मखमली संगीत और लफ्जों के बावजूद इन्हें सुनकर पूरे शरीर में एक सिरहन सी दौड़ सकती है.

रात के अंधेरों में गलती से मत सुन लेना इन तरानों को, नहीं तो उड़ जाएगी नींद
बॉलीवुड के ऐसे गीत जो खड़े कर देंगे आपके रोंगटे
नई दिल्ली:

सुर, संगीत और गीतों की हमारे जिंदगी में काफी अहमियत होती है. गीत-संगीत कई बार हमारी खुशियों, हुल्लड़ और मस्ती का साथी बनता है. कभी-कभी संगीत हमें दुख और दर्द के पलों से उबरने में मदद भी करता है, लेकिन क्या गीत-संगीत हमें डरा भी सकता है. इसका जवाब है 'हां'. हिन्दी फिल्मों की ही बात करें तो कई ऐसे गाने बने हैं जो सुनने में मधुर तो हैं, लेकिन मखमली संगीत और लफ्जों के बावजूद इन्हें सुनकर पूरे शरीर में एक सिरहन सी दौड़ सकती है. खास तौर पर यदि आपने गाने से संबंधित फिल्म देखी है तो निश्चित ही ये गाने आपको रोमांच से भरे उस घटनाक्रम की याद दिलाएंगे. तो अगर आप अकेले बैठकर रात के अंधेरे में इन गानों का लुत्फ उठाना चाहते हैं तो एक बार फिर से सोच लीजिए. 

गुमनाम है कोई...

एक वीरान द्वीप पर फंसे कुछ लोगों की रहस्यमयी कहानी है 'गुमनाम'. एक-एक कर सभी साथियों की हत्या हो रही है, लेकिन हत्या करने वाला गुमनाम है. सभी लोगों के मन में ख्याल है कि कहीं ये किसी रूहानी ताकत का काम तो नहीं. और ऐसी हालत में रात के सन्नाटे को चीरती हुई एक आवाज ये गाना गा रही है ये गाना. भले ही ये गाना लता मंगेशकर की शहद सी मीठी आवाज में गाया गया हो, लेकिन फिल्म की सिचुएशन और पिक्चराइजेशन कुछ ऐसा है कि अच्छे-अच्छों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाए.

आएगा आने वाला...

'दीपक बगैर कैसे परवाने जल रहे हैं, कोई नहीं चलाता पर तीर चल रहे हैं....' गाना फिल्म महल का है और शौकत अली 'नाशाद' ने सिचुएशन के मुताबिक बोल कुछ ऐसे लिखे हैं कि हर एक लाइन किसी रहस्य की ओर इशारा कर रही है. लता जी के सुरों से सजा ये गाना सुनने वाले को फिल्म के उसी रहस्य, रोमांच, डर और दहशत की सिचुएशन में ले जाता है. 

कहीं दीप जले कहीं दिल

'बीस साल बाद...' एक ऐसी फिल्म जिसका टाइटल ही रहस्य की ओर संकेत कर रहा है. इस गाने ने उस वक्त थिएटर में लोगों का खून जमा दिया था. ब्लैक एंड व्हाइट सिनेमा के जमाने में जब तकनीक बहुत ज्यादा एडवांस नहीं थी, तब केवल धुन, गाने के बोल और आवाज के जरिए लोगों को डराना आसान काम कतई न था.  शकील बदायुनी के बोलों पर हेमंत दा ने ऐसी धुन रची जो दर्शकों के दिल में आज भी सिरहन पैदा कर देती है.

मेरे ढोलना...

पुरानी फिल्मों से हटकर कुछ नई फिल्मों की बात करें तो भूल-भुलैया फिल्म का ये गाना कैसे छूट सकता है. श्रेया घोषाल की आवाज में इस गाने के बोल सुनते ही विद्या बालन का वो चेहरा सामने आता है जिसे याद करते ही दिल धक्क रह जाता है. अब अकेले में आप विद्या बालन का वो रूप याद करना चाहें तो आपकी मर्जी. 

भूत हूं मैं... 

भूत अगर खुद  ही ये गाने लगे कि वो भूत है, तो सुनने वाले के पास डरने के सिवाय और चारा भी क्या रह जाता है. ये गाना हमें उस रामगोपाल वर्मा की 'भूत, की याद दिलाता है. उर्मिला मातोंडकर, रेखा, अजय देवगन जैसे सितारों से भरी इस फिल्म के जरिए शायद हॉरर फिल्मों की वापसी हुई थी. वरना एक समय था जब हॉरर फिल्में अक्सर दोयम दर्जे की ही मानी जाती थीं.  क्या आप रात के अंधेरे में इस गाने को सुनना चाहेंगे..?

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