फिल्म मुगल-ए-आजम बॉलीवुड के इतिहास की ऐसी फिल्म है जिसका एक-एक सीन पूरी नफासत से तराशा हुआ सा लगता है. कहां किस किफायत से जज्बात खर्च करने है और उन जज्बातों की गहराइयों को किन प्रोपर्टीज से सजाना है, इसका पूरा पूरा ध्यान रखा गया. दिलीप कुमार और मधुबाला की कभी न भुला पाने वाली इस ऐतिहासिक रोमांटिक फिल्म को बनाया था डायरेक्टर के आसिफ ने. जो अपनी इस पेशकश को लेकर इतने ज्यादा ऑब्सेस्ड थे कि किसी भी चीज पर कंप्रोमाइज करने को तैयार नहीं होते थे. इस फिल्म को लेकर उनकी जिद के कई किस्से मशहूर हैं, जो कई बार किसी सनक से कम नहीं लगते हैं. फिल्म के एक एक सीन से उनका जुड़ाव इस कदर था कि कोई भी चीज कम होती थी वो कई कई दिनों तक शूटिंग ही नहीं करते थे.
इस जिद पर अड़े थे आसिफ
मुगल-ए-आजम फिल्म का एक यादगार सीन है, जिसमें शहजादे सलीम को मोतियों पर चलते हुए महल में अंदर आना था. नकली मोतियों के साथ ये फिल्म शूट हो चुका था. लेकिन अचानक के आसिफ ने फिल्म की शूटिंग रोक दी और फाइनेंसर से पूरे एक लाख रु. की डिमांड कर डाली. उस वक्त एक लाख रु. बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी. फाइनेंसर ने एतराज जताते हुए नकली मोतियों के साथ शूट करने की सलाह दी, लेकिन के आसिफ ऐसी जिद पर अड़े की बीस दिन तक फिल्म की शूटिंग ही रोक दी. फिल्म तब आगे बढ़ी जब के आसिफ की डिमांड पूरी हुई और उन्हें असली मोती मुहैया कराए गए. के आसिफ की दलील थी कि असली मोतियों से ही सलीम के चेहरे पर वो चमक दिख सकती है, जिसकी उन्हें दरकार है.
लग गए थे 14 साल
इस फिल्म को बनाने में 14 साल का लंबा वक्त लगा था. कहा जाता है कि के आसिफ फिल्म में इस कदर परफेक्शन रखना चाहते थे कि लोग उसे कभी भुला न सके, इसलिए समय का तकाजा करने से भी नहीं चूके. फिल्म भले ही 14 साल में बनकर तैयार हुई लेकिन के आसिफ की ख्वाहिश जरूर पूरी हुई. फिल्म के कुछ सीन और गाने वाकई लाजवाब और यादगार बन गए.
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