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91 साल पहले हिंदी के मशहूर साहित्यकार प्रेमचंद की कलम ने जब बॉम्बे में ला दिया था भूचाल, फिल्म करनी पड़ी बैन

हिंदी के प्रमुख साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने फिल्मी दुनिया में भी हाथ आजमाया था. वे फिल्म के राइटर थे और कैमियो भी किया था. इस फिल्म ने ऐसा हंगामा बरपाया कि इसे बैन करना पड़ा, जानें क्यों?

91 साल पहले हिंदी के मशहूर साहित्यकार प्रेमचंद की कलम ने जब बॉम्बे में ला दिया था भूचाल, फिल्म करनी पड़ी बैन
प्रेमचंद की वो फिल्म जिसे करना पड़ा था बैन
नई दिल्ली:

हिंदी साहित्य के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश के लमही में हुआ था. प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव है. प्रेमचंद ने अपनी कहानियों और उपन्यासों में उस समाज की कहानियों को कहा जो उन्होंने अपने आसपास देखीं. उनकी उपन्यास जैसे गोदान, गबन, निर्माल और कहानियों कफन और शतरंज के खिलाड़ी ने ना सिर्फ साहित्य में, बल्कि सिनेमा में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि प्रेमचंद ने खुद एक फिल्म में एक्टिंग की थी और उनके इस रोल ने हंगामा बरपा दिया था.

मुंबई में प्रेमचंद
1934 में, प्रेमचंद आर्थिक संकट से जूझ रहे थे. उनकी प्रिंटिंग प्रेस सरस्वती प्रेस घाटे में थी, और उनकी पत्रिकाएं हंस और जागरण भी बहुत अच्छा नहीं कर पा रही थीं. ऐसे में, उन्होंने बम्बई जाकर किस्मत आजमाने का फैसला लिया. अजंता सिनेटोन नामक प्रोडक्शन हाउस ने उन्हें स्क्रिप्ट राइटर का ऑफर दिया. प्रेमचंद ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और बॉम्बे पहुंचे. यहां उन्होंने फिल्म 'मजदूर' की कहानी और पटकथा लिखी. यह फिल्म श्रमिक वर्ग की दयनीय स्थिति को दर्शाती थी, जो प्रेमचंद की लेखनी का मूल स्वर था.

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मजदूर में प्रेमचंद का कैमियो और फिल्म हुई बैन
'मजदूर' की कहानी एक मिल मालिक के बिगड़ैल बेटे की थी, जो अपने पिता की मौत के बाद मिल मालिक बनता है और मजदूरों का शोषण करता है. उसकी बहन मजदूरों के साथ मिलकर हड़ताल करती है. इस फिल्म में प्रेमचंद ने ना सिर्फ पटकथा लिखी, बल्कि एक छोटा सा कैमियो भी किया. उन्होंने हड़ताली मजदूरों के नेता का रोल किया. प्रेमचंद की मजदूर फिल्म का निर्देशन मोहन भवनानी ने किया था, और इसे बॉम्बे के एक टेक्सटाइल मिल में शूट किया गया. फिल्म की रिलीज मुश्किलों भरी थी. फिल्म को बॉम्बे में रिलीज होने से रोका गया. इसे लाहौर, दिल्ली और लखनऊ में रिलीज किया गया, लेकिन वहां भी इसे जल्द ही बैन कर दिया गया. माना गया कि फिल्म मजदूरों को हड़ताल के लिए प्रेरित करती है. 

जब बॉम्बे से बनारस वापस लौटे प्रेमचंद
प्रेमचंद का सिनेमाई दुनिया में यह सफर बहुत लंबा नहीं चल सका. फिल्मी दुनिया उन्हें रास नहीं आई. वे बॉम्बे छोड़कर बनारस लौट आए. इसके बाद वे फिर से अपनी लेखनी की दुनिया में व्यस्त हो गए और साहित्य सृजन में लग गए. प्रेम का निधन 8 अक्तूबर 1936 को 56 वर्ष की आयु में निधन हो गया. 

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