लालू यादव के घर पर छापेमारी पर सुशील मोदी के सवालों का शिवानंद तिवारी ने क्या दिया जवाब?

शिवानंद तिवारी ने कहा कि सवाल तो यह है कि जब 2008 में आरोप लगा तो उसके बाद से अब तक, यानी 14 वर्षों तक सीबीआई इन आरोपों पर क्यों सोई रही?

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राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी (फाइल फोटो).
पटना:

पिछले शुक्रवार को सीबीआई (CBI) ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू यादव (Lalu Yadav) के दिल्ली से पटना तक उनके और उनके परिवार के सदस्यों के आवास पर नौकरी के बदले जमीन घोटाले के सम्बंध में छापेमारी की. बिहार बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी इस पर लगातार राष्ट्रीय जनता दल और शिवानंद तिवारी से सवाल पूछ रहे हैं. अब शिवानंद तिवारी ने उनके सभी सवालों का एक बयान में जवाब दिया है.

सुशील मोदी ने शनिवार और रविवार को अलग-अलग दो बयानों में कहा कि लालू प्रसाद ने रेलवे में नौकरी देने के बदले लाभार्थी से जमीन नहीं लिखवाई थी, तो शिवानंद तिवारी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ज्ञापन देकर सीबीआई जांच की मांग क्यों की थी? मोदी  ने पूछा- क्या यह सही नहीं कि कांति सिंह ने  पटना का अपना करोड़ों का मकान और रघुनाथ झा ने गोपालगंज का अपना कीमती मकान केंद्रीय मंत्री बनवाने के बदले लालू के परिवार को गिफ्ट किया था?  सुशील मोदी ने कहा, लालू प्रसाद बताएं कि उनका परिवार 141 भूखंड, 30 से ज्यादा फ्लैट और पटना में आधा दर्जन से ज्यादा मकानों का मालिक कैसे बन गया?  मोदी ने कहा कि शिवानंद तिवारी ने ही 2008 में लालू प्रसाद के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की थी, और जब सबूत के आधार पर कार्रवाई हो रही है, तब वे इसे राजनीतिक रंग दे रहे हैं.

आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने इसका जवाब देते हुए कहा कि ''बिहार की राजनीति में एक नमूना हैं सुशील कुमार मोदी. अभी-अभी अतीत में उन्होंने गोता लगाया और खोज निकाला कि 2008 में हमने लालू यादव पर जमीन वाला आरोप लगाया था. सवाल तो यह नहीं था. सवाल तो यह था कि जब 2008 में आरोप लगा तो उसके बाद से अब तक यानी 14 वर्षों तक सीबीआई उन आरोपों पर क्यों सोई रही? उसकी नींद तब क्यों खुली जब बिहार में मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के बीच जाति आधारित जनगणना कराने की सहमति बनी है. छापेमारी के लिए यह समय क्यों चुना गया?'' 

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उन्होंने कहा कि ''इसके दो स्पष्ट मकसद दिखाई दे रहे हैं. पहला उद्देश्य तो जाति आधारित जनगणना को रोकना है, क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जाति आधारित जनगणना का घोर विरोधी है. यह उन्हीं तबकों का समर्थक है जो देश के संसाधनों पर अपनी संख्या के अनुपात से कहीं ज्यादा संसाधनों पर कब्जा जमाए बैठे हैं. जातीय जनगणना से इसका खुलासा हो जाएगा और वंचित समाज अपनी संख्या के अनुपात में हिस्सेदारी की मांग करने लगेगा. दूसरी ओर जातीय  जनगणना के सवाल पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता विरोधी दल तेजस्वी यादव के बीच नजदीकी बढ़ती हुई दिखाई दे रही है. भारतीय जनता पार्टी इससे सशंकित है. भाजपा को 2015 के विधानसभा चुनाव का नतीजा अच्छी तरह याद है. अनुमान लगाया जा रहा है कि छापेमारी द्वारा कहीं परोक्ष रूप से नीतीश कुमार को चेतावनी देने की कोशिश तो नहीं की जा रही है?''

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शिवानंद के अनुसार ''सवाल यही था, जिसका जवाब सुशील मोदी ने नहीं दिया है. हम लोग उनसे जानना चाहेंगे कि 2008 में लगाए गए आरोपों पर अब तक सोने वाली सीबीआई चौदह बरस बाद अचानक कैसे और क्यों सक्रिय हो गई? इसका मकसद राजनीति के अलावा और क्या हो सकता है सुशील जी? इस सवाल पर कृपया हमारा ज्ञानवर्धन करें.''

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