प्रियंका चोपड़ा को इम्प्रेस करने के लिए कुछ ऐसा किया करते थे निरहुआ

प्रियंका चोपड़ा के प्रोडक्शन हाउस की पहली फिल्म "बम बम बोल रहा है काशी" कैसी जाएगी और प्रियंका चोपड़ा की नज़र में क्या छवि बनेगी, यह चिंता का विषय था. लेकिन छवि ऐसी बनी कि निरहुआ का नाम काशी ही पड़ गया.

प्रियंका चोपड़ा को इम्प्रेस करने के लिए कुछ ऐसा किया करते थे निरहुआ

काशी अमरनाथ में निरहुआ

खास बातें

  • प्रियंका चोपड़ा हैं फिल्म की प्रोड्यूसर
  • निरहुआ की दूसरी फिल्म है प्रियंका के बैनर के साथ
  • दूसरी भोजपुरी फिल्मों से हटकर है काशी अमरनाथ
नई दिल्ली:

भोजपुरी सिनेमा के चहेते स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ हमेशा अपने काम से चर्चा में रहते हैं. प्रियंका चोपड़ा की मम्मी डॉ. मधु चोपड़ा की दूसरी भोजपुरी फिल्म "काशी अमरनाथ" में रिपीट होने की वजह से वे खासे सुर्खियों में हैं. पहली फिल्म "बम बम बोल रहा है काशी" कैसी जाएगी और प्रियंका चोपड़ा की नजर में क्या छवि बनेगी, यह चिंता का विषय था. लेकिन छवि ऐसी बनी कि दिनेश का नाम काशी ही पड़  गया. मधु निरहुआ को काशी कहकर ही पुकारती हैं. आलम यह है कि दूसरी फिल्म का नाम काशी से ही शुरू किया "काशी अमरनाथ." फिल्म दिवाली पर रिलीज रही है. बिग बॉस में भी नजर आ चुके निरहुआ से हुई बातचीत के अंशः

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सुना है, मधु चोपड़ा आपको सेट पर काशी ही बुलाती हैं?
जी, यह मेरे लिए यह बहुत सम्मान की बात है.

इसकी असल वजह क्या है?
उनके साथ जब मैं "बम बम बोल रहा है काशी" कर रहा था, तब हम इस बात का खयाल रखते थे कि कुछ भी ऐसा न हो जिससे पीसी मैम (प्रियंका चोपड़ा) और उनकी माताजी की दृष्टि में भोजपुरी सिनेमा का मजाक उड़े. इस काम में फिल्म के लेखक निर्देशक संतोष मिश्रा ने भी बहुत मेहनत की और फिर यूनिट ने उनका दिल जीत लिया. शूटिंग के दौरान ही मैं काशी बन गया था.

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'काशी अमरनाथ' कैसी फिल्म है?
यह एक जागरूकता फैलाने वाली फिल्म है. मैं एक प्लॉट पर अस्पताल बनाना चाहता हूं. तभी अमरनाथ (अमरनाथ) उस जमीन पर गुटखा बनाने की फैक्टरी के लिए दबाव बनाता है. लेकिन, बात सही गलत पर आकर ठहरती है. मैं जीवन बचाने के लिए प्लॉट चाहता हूं, जबकि सामनेवाला मौत का सामान बनाने के लिए.

हीरो के तौर पर आप दर्शकों को नया क्या देनेवाले हैं? 
इसमें मैं एक संयमशील नौजवान के रूप में नजर आऊंगा, जो समाज के लिए कुछ करना चाहता है. युवा पीढ़ी का रोल मॉडल हूं.

और भोजपुरी के लटके झटके कितने हैं ?
नो लटका झटका. नो आइटम सॉन्ग. संदेशपूर्ण फिल्म है. यह फिल्म भोजपुरी सिनेमा में आ रहे बदलाव का प्रतीक होगी. महिला दर्शकों को थिएटर तक खींचकर लाएगी. जो लोग भोजपुरी सिनेमा के भविष्य को लेकर संशय में थे, उनको भरोसा दिलानेवाली है 'काशी अमरनाथ.'

भोजपुरी फिल्मों में दक्षिण की फिल्मों का प्रभाव भी देखने को मिलने लगा था?
यह तो अच्छी बात है. हाल के वर्षों में जितनी हिन्दी में हिट फिल्में हैं, वे या तो साऊथ की रीमेक थीं अथवा उससे प्रभावित. दक्षिण का एक्शन सबको पसंद आता है.

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