भारत में, ज़्यादातर गांव देवी-देवताओं को समर्पित हैं, लेकिन कुछ दुर्लभ अपवाद भी हैं, जैसे उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) का बिसरख (Bisrakh), जहां स्थानीय लोग रावण को पूर्वज मानते हैं और पारंपरिक रूप से दैत्य या पौराणिक राक्षस माने जाने वाले लोगों का सम्मान करते हैं. महाराष्ट्र (Maharashtra) का एक ऐसा ही अनोखा गांव दैत्यों के प्रति अपनी भक्ति के लिए जाना जाता है, जिसके कारण यहां कोई हनुमान मंदिर (Hanuman Temple) नहीं है, क्योंकि हनुमान जी को पारंपरिक रूप दैत्यों का संहारक माना जाता है. इस मान्यता में एक और दिलचस्प बात यह है कि इस गाँव में मारुति (Maruti) ब्रांड की कारें भी नहीं हैं. इस कार का नाम, जो संस्कृत शब्द 'मारुत' (हवा) से लिया गया है, जो 'पवन पुत्र' हनुमान को दर्शाता है.
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नहीं है कोई हनुमान मंदिर
इस गांव का नाम नंदूर निम्बा दैत्य (Nandur Nimba Daitya) है, जो अहमदनगर जिले के पाथर्डी तालुका में स्थित है. ग्रामीण हनुमान जी की पूजा नहीं करते, उनके यहां हनुमान मंदिर नहीं हैं, और यहां तक कि वे अपने बच्चों का नाम भी उनके नाम पर रखने से बचते हैं.
इस मान्यता के पीछे की कथा
इस अनोखी प्रथा से जुड़ी कथा निम्ब दैत्य और भगवान हनुमान के बीच एक संघर्ष से जुड़ी है, जहां निम्ब दैत्य, एक राक्षस होते हुए भी, भगवान राम के भक्त बताए जाते हैं. कथा के अनुसार, निम्ब दैत्य ने भगवान राम से प्रार्थना की, जिन्होंने उन्हें गांव के इष्टदेव का दर्जा दिया.
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मारुति कार से क्यों परहेज?
द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, 2000 के दशक की शुरुआत में यहां डॉ. सुभाष देशमुख गांववालों के बीच काफी लोकप्रिय चिकित्सक थे. उनके मरीज, गांव और आस-पड़ोस के, पूरे दिन उनके क्लिनिक के बाहर धैर्यपूर्वक कतार में खड़े रहते थे. लेकिन अचानक, उनके क्लिनिक के बाहर लगी कतार गायब हो गई. डॉक्टर को यह समझने में देर नहीं लगी कि ऐसा क्यों हो रहा है. दरअसल अचानक लोगों के दूर होने की वजह मारुति 800 कार थी जो उन्होंने कुछ दिन पहले खरीदी थी. इसके बाद उन्होंने अपनी मारुति 800 बेचकर एक टाटा सूमो खरीद ली. और फिर, जादुई रूप से, उसके क्लिनिक के बाहर कतार फिर से लग गई.
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