सैलरी के बदले में रेप कर लो... इस देश की आर्मी को सरकार ने क्यों दी खुली छूट

दुनियाभर में कई ऐसी जगहें हैं, जहां के नियम-कानून जानने के बाद यकीनन किसी का भी कलेजा फट पड़ेगा. एक ऐसी ही गवर्नमेंट है जिसने अपने फाइटर्स को सैलरी के बदले महिलाओं से रेप की परमिशन दी थी. मामला पुराना है, लेकिन दिल दहला देने वाला है.

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इंसानियत की सबसे बड़ी सजा...यहां आर्मी को सैलरी की जगह दी जा रही है महिलाओं की इज्जत!

South Sudan War Crimes: सोचिए, एक ऐसी दुनिया जहां 'वेतन' के बदले किसी औरत की इज्जत दी जाती हो. जहां मासूम बच्चों को जिंदा जला दिया जाता हो और दिव्यांग लोगों को सजा सिर्फ इसलिए मिलती है, क्योंकि वो बोल नहीं सकते. ये कोई फिल्म की कहानी नहीं, बल्कि अफ्रीकी देश साउथ सूडान की सच्चाई है. एक ऐसा देश जो आज भी अपने ही जख्मों से खून भरे आंसू रो रहा है. सालों पुराना ये मामला आज भी लोगों के दिलों में फांस की तरह चुभ रहा है.

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जब 'सैलरी' बन गई औरतें (Al Jazeera South Sudan report)
Al Jazeera और The Guardian की रिपोर्ट्स के मुताबिक, साउथ सूडान की सेना और सरकार समर्थित लड़ाकों को वेतन की जगह महिलाओं से रेप की 'अनुमति' दी गई. संयुक्त राष्ट्र (UN) की रिपोर्ट बताती है कि सरकारी सैनिकों को सैलरी के तौर पर महिलाओं से बलात्कार करने की खुली छूट थी. यह सब 2013 में शुरू हुए गृह युद्ध के दौरान हुआ, जब सत्ता की लड़ाई ने देश को इंसानियत से कोसों दूर कर दिया. एक महिला ने UN की टीम को बताया कि, उसे पांच सैनिकों ने उसके बच्चों के सामने सड़क किनारे नग्न करके रेप किया, फिर झाड़ियों में ले जाकर दोबारा रेप किया गया और जब वो लौटी, उसके बच्चे गायब थे.

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बच्चों को जलाना, दिव्यांगों को मारना (South Sudan UN report)

रिपोर्ट में बताया गया कि सरकारी सैनिकों ने बच्चों और दिव्यांग लोगों को जिंदा जलाया, लोगों को कंटेनरों में बंद कर दम घोंटकर मारा गया, पेड़ों पर लटकाया गया और टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया. UN के मानवाधिकार प्रमुख जैद राद अल हुसैन ने इसे 'दुनिया के सबसे भयानक मानवाधिकार उल्लंघनों में से एक' बताया था.

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आज की स्थिति क्या है? (South Sudan human rights)

2025 में भी हालात बहुत बेहतर नहीं हैं. गृह युद्ध थमा जरूर है, लेकिन रेप, भूख और हिंसा की घटनाएं अब भी जारी हैं. Amnesty International और UNHCR की हालिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि, लाखों लोग अब भी रिफ्यूजी कैंपों में हैं, जहां औरतें और बच्चे असुरक्षित हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की स्थिति बेहद खराब है. साउथ सूडान आज भी दुनिया के सबसे 'कम विकसित' और 'संघर्षग्रस्त' देशों में गिना जाता है.

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आखिर इंसानियत कब जीतेगी? (UN Human Rights Report 2025)

सवाल यही है कि, क्या कोई देश तब तक आजाद कहलाएगा जब तक उसकी औरतें सुरक्षित नहीं हैं? साउथ सूडान की ये कहानी बताती है कि युद्ध सिर्फ सीमाएं नहीं तोड़ता, इंसानियत की नींव भी हिला देता है.

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