‘ग्लोबल स्टॉकटेक' के नये मसौदा में कोयले के बेरोकटोक इस्तेमाल को ‘पूरी तरह से' रोकने और जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को ‘‘व्यवस्थित और न्यायसंगत'' तरीके से समाप्त करने के विकल्पों का उल्लेख किया गया है. यह वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित करने को लेकर वैश्विक प्रयासों पर पहली सामूहिक आवधिक समीक्षा है, जो मंगलवार को जारी की गई. वार्ताकारों द्वारा जारी ग्लोबल स्टॉकटेक (जीएसटी) पाठ को सीओपी28 का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जाता है और इसे यहां जारी दो सप्ताह के वार्षिक जलवायु सम्मेलन के अंत में अंतिम रूप दिया जाना है.
भारत और अन्य ‘ग्लोबल साउथ' देश लगातार मांग कर रहे हैं कि केवल कोयला ही नहीं बल्कि तेल और गैस के इस्तेमाल में भी चरणबद्ध तरीके से कटौती की जाए. यह मांग इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए की गई है कि अमीर देश खुद तेल और गैस का इस्तेमाल करते हैं लेकिन गरीब देशों के कोयले के उपयोग पर सवाल उठाते हैं.
‘ग्लोबल साउथ' शब्द आम तौर पर लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया के क्षेत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. खासकर इसका मतलब, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बाहर, दक्षिणी गोलार्द्ध और भूमध्यरेखीय क्षेत्र में स्थित ऐसे देशों से है जो ज्यादातर कम आय वाले हैं और राजनीतिक तौर पर भी पिछड़े हैं.
ग्लासगो में 2021 में आयोजित सीओपी की बैठक में भारत ने कोयले के इस्तेमाल को ‘रोकने के बजाय कम करने पर जोर दिया था.
वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के तहत 190 से अधिक देश औद्योगिक क्रांति से पूर्व (1850-1900) की तुलना में वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने पर सहमत हुए. इसलिए ‘ग्लोबल स्टॉकटेक' की पहल की गई जिसका बड़ा महत्व है क्योंकि इससे देशों को गंभीर जलवायु प्रभावों को और अधिक बढ़ने से रोकने के लिए अपनी कार्य योजनाओं में आवश्यक बदलाव करने में मदद मिलेगी.
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