अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 8 मार्च को मनाया जाया है. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2022 (Women's Day 2022) के महिला दिवस का थीम 'जेंडर इक्वेलिटी टुडे फॉर अ सस्टेनेबल टुमारो' है. महिला दिवस के इस मौके पर हमने कुछ महिला फिल्म निर्देशकों और निर्माताओं से बात की है, जिन्होंने बताया कि किस तरह मनोरंजन उद्योग में महिलाओं की उपस्थिति बदली है और ओटीटी के आने से तो महिला केंद्रित कंटेंट आ रहा है और दर्शकों को भी पसंद आ रहा है. महिला दिवस पर खास बातचीत...
करिश्मा कोहली, डायरेक्टर, द फेम गेम
कंटेंट की दुनिया महिलाओं के लिए बदल रही है और यह दो बातों की वजह से है. एक महिला को अपने 'बड़े' ब्रेक का इंतजार नहीं करना पड़ता है. पहले हमारे पास केवल दो माध्यम थे- फिल्म या टेलीविजन. और एक निर्देशक के रूप में मैंने फिल्मों में अपना ब्रेक पाने का इंतजार किया, मैंने एक सहयोगी निर्देशक के रूप में काम करना जारी रखा, और छोटे स्वतंत्र काम को चुना. लेकिन ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की बदौलत अब उन्होंने कई महिला क्रिएटर्स के लिए दरवाजे खोल दिए हैं. समान वेतन…हम समान मात्रा में काम और समय लगाते हैं, तो यह अंक असमानता क्यों है? साथ ही बजट, मुझे लगता है कि एक पुरुष निर्देशक को एक महिला से बड़ा बजट दिया जाएगा. इस पहलू को बदलने की जरूरत है. लंबे समय तक हमारा सिनेमा केवल पुरुष दृष्टिकोण से कहानियां सुनाता था, हमने भी केवल एक नायक को एक पुरुष के रूप में देखा था, लेकिन यह तब से बदल गया है जब बहुत सी महिला लेखकों, निर्देशकों, निर्माताओं, डीओपी ने उद्योग में कदम रखा है. दर्शक भी इन्हें पसंद कर रहे हैं. महिला मेकर्स की फिल्मों की बात करें तो इनमें जिंदगी ना मिलेगी दोबारा मेरी पसंदीदा है.
सोफिया पॉल, प्रोड्यूसर, मिन्नल मुरली
दर्शक अब महिला केंद्रित फिल्मों को पसंद करने लगे हैं. पीकू, क्वीन, कहानी और गंगूबाई काठियावाड़ी के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन इस बात का सबूत भी हैं. इसके साथ ही लेखन में आ रही विविधता ने भी महिला केंद्रित किरदारों को प्रमुखता दी है. इसके साथ ही ओटीटी के आने से कंटेंट क्रिएटर्स के लिए बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के दबाव के बिना कंटेंट बनाना आसान हो गया है. हिंदी सिनेमा में एडिटिंग, राइटिंग और मेकिंग के मामले में महिलाओं को लेकर कई बदलाव हुए हैं. लेकिन अभी यह साउथ में होना बाकी है. इस बदलाव को मैं साउथ में भी होता देखना चाहती हूं. फिर भी गुड कंटेंट ही कामयाबी की कुंजी है. बैंगलोर डेज के अलावा मुझे महिला क्रिएटर गौरी शिंदे की बनाई श्रीदेवी की फिल्म 'इंग्लिश विंग्लिश' बेहद पसंद है.
सरिता पाटिल, प्रोड्यूसर, जमताड़ा और शी वेब सीरीज
कैमरे के पीछे महिलाओं के प्रतिनिधित्व में इजाफा हुआ है. इसकी एक वजह ओटीटी भी है. हमें अब भी इस दिशा में काफी कुछ करना है. वैसे भी काम को लेकर स्त्री-पुरुष में विभाजित करना ठीक नहीं है. 1990 के दशक में जो शो बन रहे थे वह काफी विमेन सेंट्रिक थे, जैसे तारा और हसरतें. लेकिन 2000 के बाद पूरा नैरेटिव बदल गया. ओटीटी का फायदा यह है कि आप पर बॉक्स ऑफिस का प्रेशर नहीं होता है.
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