महागठबंधन नाम अब बीजेपी के गठबंधन को दिया जाना चाहिए. क्योंकि भारत भर में जितने दलों के साथ बीजेपी ने गठबंधन किया है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि उसका गठबंधन अब सिर्फ पांच सात दलों से होना रह गया है जो उसके विरोध में है. दरअसल 2019 के चुनावी संग्राम का सबसे दिलचस्प पहलू ये है कि बीजेपी को रोकने निकले दल आपस में भी एक दूसरे को रोकने में लगे हैं. मायावती बीजेपी के साथ कांग्रेस को भी रोकना चाहती हैं. लेफ़्ट बीजेपी के साथ तृणमूल कांग्रेस को भी रोकना चाहता है. कांग्रेस बीजेपी के अलावा आम आदमी पारटी को भी रोकना चाहती है. यानी एक बड़े महाभारत के भीतर कई छोटे-छोटे महाभारत हैं. जिसे तीसरा मोर्चा या महागठबंधन- या हमारे प्रधानमंत्री के शब्दों में महामिलावट कहा जाता है- उसके सामने ये वास्तविक संकट है. मोर्चा बनने से पहले बिखर जा रहा है. जहां बन रहा है, वहां आधा-अधूरा लग रहा है. मामला यहीं ख़त्म नहीं होता. कई पार्टियां ऐसी हैं जो न कांग्रेस के साथ हैं और न बीजेपी के साथ. अलग-अलग राज्यों और इलाकों में ऐसे कम से कम 11 दल हैं जो अपने समय और अपने निशाने का इंतज़ार कर रहे हैं. चाहें तो इसे आप भारतीय लोकतंत्र की मुश्किल भी कह सकते हैं और उसकी सुंदरता.