अलंकारों और विशेषणों से सजाकर बजट ऐसे पेश किया गया है कि पिछली बार बजट को शानदार बताने वाले इस बार भी इसकी तारीफों के पुल बांध रहे हैं. यह भूल गए कि माइनस जीडीपी वाला बजट पॉजिटिव कैसे हो सकता है. इसमें सरकारी कंपनियों के निजीकरण की तेज तैयारी है. विनिवेश की बेहद तेजी दिखाई देती है. सरकार ने मजबूती के साथ अपने संसाधनों को बेचने का प्रस्ताव रखे हैं. पिछले साल भी सरकार ने विनिवेश के लिए 2.1 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा गया है. लेकिन मिले सिर्फ 15 हजार करोड़. दो सरकारी बैंकों के निजीकरण के साथ एलआईसी के आईपीओ की तैयारी है. लेकिन क्या इससे गरीबों का भला होगा, यह बड़ा सवाल है.