टीवी बहुत ही मुश्किल माध्यम है, कई बार लगता है कि काश टीवी के पास भी अख़बारों की तरह पन्ने होते. जब भी राष्ट्रवाद और देशभक्ति को लेकर बहस होती है, रवींद्रनाथ टैगोर का लेख छप जाता है. मैं कई बार सोचता हूं कि राष्ट्रवाद पर लेफ्ट राइट सेंटर की इतनी किताबें हैं, फिर भी रवींद्रनाथ टैगोर के इस लेख की क्या ख़ासियत है, जब भी राष्ट्रवाद पर बहस होती है, उनके लेख का हिस्सा कहीं न कहीं छप जाता है. बार-बार पेश करने वाला इस लेख से क्या ये उम्मीद करता है कि जुनून का उफान कुछ कम होगा, लोग समझ पाएंगे कि राष्ट्रवाद के नाम पर सनक के ख़तरे क्या हैं.